बढ़ती महंगाई, 'हर किसी के लिये विकास के अधिकार को ख़तरा'
संयुक्त राष्ट्र की कार्यवाहक मानवाधिकार उच्चायुक्त ने आगाह किया है कि विश्व में बढ़ती महंगाई के कारण उभरती हुई और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिये चुनौती पैदा होने की आशंका है. कार्यवाहक उच्चायुक्त नाडा अल-नशीफ़ ने गुरूवार को जिनीवा में मानवाधिकार परिषद को सम्बोधित करते हुए चेतावनी भरे शब्दों कहा कि यह संकटों का एक ऐसा संगम है, जिससे सभी के लिये ख़तरा पैदा हो रहा है.
उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा व्यक्त किये गए पूर्वानुमान का उल्लेख किया, जिसके अनुसार अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं को औसतन 6.6 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर के लिये तैयार रहने को कहा गया है.
🚨 WATCH LIVE at #HRC51Biennial panel discussion on the right to development: "35 years on: policy pathways to operationalizing the right to development"https://t.co/I9VPW53wxh
UN_HRC
वहीं निर्धन देशों के लिये यह दर 9.5 प्रतिशत रहने की सम्भावना है.
नाडा अल-नशीफ़ के अनुसार, विश्व के सर्वाधिक धनी देशों में रोज़गार दर, महामारी से पहले के स्तर पर 2021 के अन्त तक लौट आई थी.
मगर, अधिकांश मध्य-आय वाले देश अब भी कोविड-19 संकट से पूरी तरह उबर नहीं पाए हैं.
कोविड-19 और यूक्रेन संकट का असर
उन्होंने विकास के अधिकार पर मानवाधिकार परिषद में हुई चर्चा के दौरान कहा कि कोरोनावायरस ने विश्व में पहले से ही व्याप्त विषमताओं को उजागर किया है और सतत प्रगति को, दुनिया के अनेक हिस्सों में कई वर्ष पीछे की ओर धकेल दिया है.
अनेक विकासशील देशों ने महामारी के दौरान सामाजिक संरक्षा उपायों के ज़रिये राहत प्रदान की, लेकिन इससे उन पर क़र्ज़ का भार बढ़ा है और अब उनके समक्ष अभूतपूर्व वित्तीय चुनौतियाँ पनपी हैं.
वहीं, 24 फ़रवरी को यूक्रेन पर रूसी आक्रमण, देश में और उसकी सीमाओं के परे बड़े पैमाने पर मानवीय पीड़ा का कारण बना है.
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में आए व्यवधान की वजह से ईंधन और खाद्य क़ीमतों में उछाल आया है, जिससे महिलाएँ व लड़कियाँ विषमतापूर्ण ढंग से प्रभावित हुई हैं.
चरम निर्धनता में वृद्धि
विश्व बैंक के नए आँकड़ों के अनुसार, महामारी से पहले के अनुमान की तुलना में, इस वर्ष साढ़े सात से साढ़े नौ करोड़ अतिरिक्त लोगों के अत्यधिक निर्धनता में जीवन गुज़ारने की सम्भावना है.
उन्होंने कहा कि चरम निर्धनता में रहने के लिये मजबूर 76 करोड़ लोगों में से अधिकांश (83 फ़ीसदी) केवल दो क्षेत्रों में हैं: सब-सहारा अफ़्रीका (62 प्रतिशत), और मध्य व दक्षिण एशिया (20 प्रतिशत).
जलवायु परिवर्तन कोष
मानवाधिकार मामलों के लिये वरिष्ठ अधिकारी ने गुरूवार को एक वैश्विक कोष स्थापित किये जाने जाने का भी आग्रह किया है ताकि जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाओ से पीड़ित देशों के लिये सहायता सुनिश्चित की जा सके.
जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में मानवाधिकारों को बढ़ावा व संरक्षण देने पर विशेष रैपोर्टेयर इयान फ़्राय ने अपने बांग्लादेश दौरे के समापन पर यह अपील जारी की है.
उन्होंने स्पष्ट शब्दों मे कहा कि बांग्लादेश को जलवायु परिवर्तन के बोझ का सामना अकेले नहीं करना चाहिये, और उन्होंने ध्यान दिलाया कि बड़े उत्सर्जक देश लम्बे समय से अपनी ज़िम्मेदारी से बचते रहे हैं.
बाढ़ का असर
उन्हें इस वर्ष मार्च में मानवाधिकार परिषद ने स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त किया था.
इयान फ़्राय ने सचेत किया कि पूर्वोत्तर बांग्लादेश के सिलहट में बार-बार अचानक बाढ़ आने की घटनाएँ हुई हैं, जिससे महिलाएँ विशेष रूप से प्रभावित हुई हैं.
इस आपात स्थिति के कारण उन्हें जल की तलाश में लम्बी दूरी तक जाना पड़ा, जिससे उनके लिये यौन उत्पीड़न का जोखिम बढ़ गया और बाल देखभाल व खेती-बाड़ी के लिये समय नहीं मिल पाया.
विशेष रैपोर्टेयर ने कहा कि जल स्तर बढ़ने से मवेशियों की मौत हुई है, फ़सलें और बीजों के भंडार बर्बाद हुए हैं और समुदाय को फिर से उबरने में दो साल लगेंगे.