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महिला दिवस: लैंगिक समानता के लिये ‘समय यही है’

कैमरून के योको इलाक़े में महिला सहकारी संस्था.
© UN Women/Ryan Brown
कैमरून के योको इलाक़े में महिला सहकारी संस्था.

महिला दिवस: लैंगिक समानता के लिये ‘समय यही है’

महिलाएँ

संयुक्त राष्ट्र के अनेक शीर्ष अधिकारियों ने मंगलवार, 8 मार्च, को ‘अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस’ के अवसर पर जलवायु परिवर्तन व कोविड-19 महामारी से निपटने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया है. उन्होंने पर्यावरण, व्यवसाय और राजनीति में और अधिक संख्या में महिला नेतृत्वकर्ताओं की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि एक टिकाऊ भविष्य के लिये लैंगिक समानता के वादे को अब साकार करना होगा.

इस वर्ष अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम है - "एक स्थाई कल के लिये आज लैंगिक समानता".

जलवायु संकट और आपदा जोखिम न्यूनीकरण के सन्दर्भ में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना, 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौतियों में से है.

संयुक्त राष्ट्र के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने इस दिवस पर मंगलवार को आयोजित एक ऑनलाइन कार्यक्रम में महिला कार्यकर्ताओं, कलाकारों, राजनेताओं और विश्व भर की अन्य हस्तियों के साथ शिरकत की.

यूएन महासचिव ने जीवन के हर आयाम में महिला नेतृत्वकर्ताओं की भूमिका को रेखांकित करते हुए सचेत किया कि, अनेक क्षेत्रों में महिला अधिकारों के मामलों में घड़ी, पीछे की ओर घूम रही है.

उन्होंने कहा वैश्विक महामारी कोविड-19 इसका एक प्रमुख उदाहरण है.

कोरोनावायरस संकट ने महिलाओं व लड़कियों को कक्षाओं व कार्यस्थलों से दूर रखा है, निर्धनता व हिंसा बढ़ी है और महिलाओं को प्रभावित करने वाली चुनौतियाँ गहरी हुई हैं.

“हम लैंगिक समानता के मामले में पीछे की ओर घूमती हुई घड़ी के साथ, वैश्विक महामारी से नहीं उबर सकते हैं.”

“हमें महिला अधिकारों पर घड़ी को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है. यह समय अभी है.”

महिलाओं पर विषम असर

महिला सशक्तिकरण के लिये प्रयासरत यूएन संस्था – यूएन वीमैन की कार्यकारी निदेशक सीमा बहाउस ने क्षोभ व्यक्त किया कि अनेक संकटों की वजह से लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति कमज़ोर पड़ रही है.

यूएन एजेंसी प्रमुख ने कहा कि इस समय यूक्रेन में भयावह हालात हैं, जिनका महिलाओं व लड़कियों पर भीषण असर हुआ है.

लाखों विस्थापित के हालात से नज़र आता है कि यूक्रेन से म्याँमार, अफ़ग़ानिस्तान और यमन तक, हर हिंसक संघर्ष की एक बड़ी क़ीमत महिलाओं व लड़कियों को ही चुकानी पड़ती है.

“महासचिव का स्पष्ट मत है, युद्ध को रोकना होगा.”

जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण के कारण, व्यक्तियों व देशों के लिये असुरक्षा बढ़ रही है, जिसका सर्वाधिक ख़मियाज़ा महिलाओं व लड़कियों को भुगतना पड़ता है.

यूएन महिला संस्था की शीर्ष अधिकारी के मुताबिक़, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के पास यह एक अवसर है कि महिलाओं को योजना व कार्रवाई के केन्द्र में रखा जाए.

साथ ही वैश्विक और राष्ट्रीय क़ानूनों व नीतियों में लैंगिक परिप्रेक्ष्यों को समाहित किया जाना होगा.

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नए सिरे से विचार

सीमा बहाउस ने कहा कि यह समय फिर से सोच-विचार करने, मायने गढ़ने और संसाधनों को फिर से आबण्टित किये जाने का है.

उन्होंने कहा कि यह अवसर पर्यावरण की रक्षा के लिये संघर्षरत महिला कार्यकर्ताओं के नेतृत्व से लाभ उठाने का है ताकि हमारे ग्रह के संरक्षण को दिशा दी जा सके.  

इसके अलावा, आदिवासी महिलाओं का पीढ़ी-दर-पीढ़ी अर्जित ज्ञान, प्रथाओं और कौशलों की भी आवश्यकता होगी.  

संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रमुख अब्दुल्ला शाहिद ने बताया कि विश्व के लिये एक टिकाऊ भविष्य सम्भव है, चूँकि देशों की सरकारों ने टिकाऊ विकास लक्ष्यों, पैरिस जलवायु समझौते और आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेण्डाई फ़्रेमवर्क को अपनाया है.

यूएन महासभा अध्यक्ष ने बताया कि महिलाओं के योगदानों के बावजूद, उन्हें समुचित प्रतिनिधित्व हासिल नहीं है.

उनके मुताबिक़, उन्हें ना तो समर्थन मिल पाता है और ना ही सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक क्षेत्रों में टिकाऊ पुनर्बहाली के लिये प्रयासों को मान्यता मिलती है.

अवरोध हटाने की पुकार

“हमें उन व्यवस्थाओं को मज़बूती देनी होगी, जोकि पटुता, महत्वाकांक्षा और सृजनात्मकता के लिये रास्ते व समर्थन प्रदान करते हैं, उन सभी लोगों के लिये जिनके पास कौशल व लगन है.”

महासभा अध्यक्ष ने उन अवरोधों को भी हटाने पर बल दिया है जोकि महिलाओं को साथ लेकर कार्य करने से रोकते हैं.

महिलाओं की स्थिति पर यूएन आयोग (CSW) का वार्षिक सत्र अगले सप्ताह शुरू हो रहा है, जिसमें जलवायु परिवर्तन, पर्वावरण और आपदा जोखिम न्यूनीकरण नीतियों व कार्यक्रमों में लैंगिक समानता पर भी चर्चा होगी.

आयोग की प्रमुख और दक्षिण अफ़्रीकी राजदूत माथु जोयिनी ने कहा कि एक टिकाऊ कल के लिये, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को लैंगिक परिप्रेक्ष्यों से परखना और निर्णायक ढंग से उनका सामना करना बेहद आवश्यक है.

उन्होंने ऐसे संकल्पों की पुकार लगाई, जिनके ज़रिये महिलाओं व लड़कियों को जलवायु व सततता समाधानों के केन्द्र में मज़बूती से जगह दी जा सके.