महिला सशक्तिकरण में निवेश, शान्ति व समृद्धि के लिये व्यापक लाभ

महिला सशक्तिकरण के लिये प्रयासरत यूएन संस्था – यूएन वीमैन की कार्यकारी निदेशक सीमा बहाउस ने कहा है कि महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में निवेश करके, शान्ति व समृद्धि की दिशा में विशाल प्रगति को साकार किया जा सकता है. उन्होंने मंगलवार को सुरक्षा परिषद को सम्बोधित करते हुए सचेत किया कि जिन देशों में महिलाएँ, कार्यस्थलों से दूर व आर्थिक रूप से वंचित हैं, उनके युद्धग्रस्त होने की आशंका अधिक होती है.
यूएन महिला संस्था की प्रमुख ने 8 मार्च को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सुरक्षा परिषद को सम्बोधित करते हुए कहा कि, “वर्ष 2022 में हमारे पास अलग तरह से काम करने का अवसर है.”
उन्होंने ध्यान दिलाया कि सैन्य व्यय में बढ़ोत्तरियों, सैन्य सत्ता बेदख़लियों, कोविड-19 महामारी के बाद सत्ता पर जबरन क़ब्ज़े किये जाने से लैंगिक समानता पर हुई दशकों की प्रगति मिट गई है.
We cannot expect women to build peace if their lives are constantly under threat. In my address to the @UN #SecurityCouncil, I urged the international community to keep women & girls at the centre of humanitarian efforts & to ensure that all action is gender-responsive #IWD2022 pic.twitter.com/66rRka0CRD
unwomenchief
“मेरे लिये, पहले से कहीं अधिक, यह स्पष्ट है कि हमें एक प्रकार के नेतृत्व की आवश्यकता है.”
यूएन एजेंसी प्रमुख ने आर्थिक पुनर्बहाली में महिलाओं के समावेश को, शान्ति प्रयासों का एक अहम घटक क़रार दिया है.
उन्होंने ध्यान दिलाया कि पारिवारिक ज़रूरतों को पूरा करने में महिलाओं द्वारा अपनी आय ख़र्च किये जाने की सम्भावना अधिक होती है, जिससे पुनर्बहाली में योगदान मिल सकता है.
इसके बावजूद, हिंसक टकराव के बाद पुनर्निर्माण और निवेश में अब भी पुरुषों का ही दबदबा है.
कार्यकारी निदेशक ने बताया कि भेदभाव, बहिष्करण और पुरातनपन्थी प्रथाओं के कारण, महिलाओं को रोज़गार, भूमि, सम्पत्ति, विरासत, क़र्ज़ व टैक्नॉलॉजी से दूर रखा जाता है.
सीमा बहाउस ने अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं के लिये हालात पर विशेष रूप से चिन्ता जताई, जहाँ सत्ता पर तालेबान का वर्चस्व स्थापित होने के बाद से ही महिला रोज़गारों में तेज़ गिरावट दर्ज की गई है.
वहीं यमन में, कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने से देश के सकल घरेलू उत्पाद में 27 प्रतिशत की वृद्धि सम्भव थी.
उन्होंने कहा कि विश्व बैंक के अनुसार, नाज़ुक और हिंसक संघर्ष प्रभावित देशों में से आधे से अधिक सब-सहारा अफ़्रीका में हैं, जहाँ लैंगिक विषमता के कारण ढाई हज़ार अरब डॉलर की आर्थिक क्षति हुई है.
बताया गया है कि हिंसक टकराव प्रभावित देशों में महिलाओं का भूमि-स्वामित्व बेहद कम है. उदाहरणस्वरूप, माली में इसे केवल तीन प्रतिशत आँका गया है.
सीमा बहाउस ने महिलाओं को साथ लेकर चलने, जवाबदेही सुनिश्चित करने व दायित्व साझा करने और शान्तिनिर्माण, हिंसक संघर्ष रोकथाम व पुनर्बहाली में महिलाओं के अर्थपूर्ण समावेशन के लिये प्रस्ताव पर बल दिया.
यूएन संस्था प्रमुख ने निजी सैक्टर से महिलाओं के लिये स्थापित शान्ति व मानवीय कोष में ज़्यादा बड़ी भूमिका निभाने का आग्रह किया.
इस कोष के ज़रिये, वर्ष 2016 से अब तक 26 देशों में 500 से अधिक महिला संगठनों को समर्थन दिया गया है.
महिला, शान्ति व सुरक्षा और मानवीय कार्रवाई पर कॉम्पैक्ट का उद्देश्य, इन मुद्दों पर अगले पाँच वर्षों में प्रगति की रफ़्तार तेज़ करना है.
इस क्रम में बहुपक्षीय विकास बैंकों, निजी सैक्टर के साथ मिलजुलकर प्रयास किये जाने होंगे, ताकि सामाजिक संरक्षा ढाँचों को मज़बूती, महिला-स्वामित्व वाले सामाजिक उपक्रमों को बढ़ावा और भेदभावपूर्ण क़ानूनों से निपटा जा सके.
उन्होंने कहा कि महिलाओं के आर्थिक समावेशन को सुनिश्चित करने के लिये ब्लूप्रिण्ट मौजूद है, जिसे आगे बढ़ाने के लिये अब राजनैतिक इच्छाशक्ति की दरकार है.
अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबन्ध निदेशक क्रिस्टालिना जियॉर्जियेवा ने कहा कि यूक्रेन में युद्ध, ध्यान दिलाता है कि नाज़ुक हालात और हिंसक संघर्ष की एक बड़ी मानवीय क़ीमत है.
उन्होंने सीधे-सीधे यूक्रेन की महिलाओं को सम्बोधित करते हुए कहा, “हम आपके साहस की सराहना करते हैं. हम आपकी पीड़ा साझा करते हैं. हम आपके साथ खड़े हैं. हम आपका समर्थन करते हैं.”
यूक्रेन में मौजूदा घटनाक्रम के मद्देनज़र, अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जल्द से जल्द समर्थन उपाय तैयार किये जाने पर काम कर रहा है.
प्रबन्ध निदेशक ने कहा कि हिंसक टकराव, महामारी या फिर आर्थिक व व्यापार आपात हालात के कारण उपजे संकटों से, लैंगिक समानता के क्षेत्र में वर्षों की प्रगति पर जोखिम मंडरा रहा है.
एक अनुमान के अनुसार, कोविड-19 संकट के दौरान, पुरुषों की तुलना में दोगुनी संख्या में महिलाओं को रोज़गार की हानि हुई है.
श्रम बाज़ार में भागीदारी में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत कम है.
उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस संकट के दौरान, पढ़ाई-लिखाई में भी भीषण व्यवधान आया है और वैश्विक महामारी के कारण, शिक्षा हानि के कारण प्रभावित पीढ़ी को कुल 17 हज़ार अरब डॉलर का नुक़सान होने की आशंका है.
उन्होंने कहा कि विकासशील देशों में दो करोड़ से अधिक लड़कियाँ, शायद फिर स्कूल नहीं लौट पाएंगी. लिंग आधारित हिंसा अपना कुरूप सिर फिर उठा रही है, जिसके गम्भीर आर्थिक दुष्परिणाम होंगे.
उन्होंने ध्यान दिलाया कि इन नाटकीय प्रभावों की आशंका के बावजूद, उन पर क़ाबू पाने से समृद्धि का एक विशाल झोंका सुनिश्चित किया जा सकता है.
आईएमएफ़ की शीर्षतम अधिकारी ने बताया कि अगर सब-सहारा देशों में लिंग आधारित हिंसा में कमी आती है और यह आँकड़ा वैश्विक औसत के बराबर होता है, तो वहाँ दीर्घकाल में जीडीपी में 30 प्रतिशत की वृद्धि होने की सम्भावना है.
क्रिस्टालिना जियॉर्जियेवा ने ज़ोर देकर कहा कि प्रगति, सहनक्षमता और सामाजिक-आर्थिक स्थिरता के लिये प्रगति बेहद अहम है.
उन्होंने बताया कि यह तब और मायने रखती है, जब महिलाएँ और लड़कियाँ अपनी पूर्ण सम्भावनाओं को साकार कर सकें.
लैंगिक समानता में बेहतरी लाकर आर्थिक प्रगति में तेज़ी, पारिवारिक व सामुदायिक सहनक्षमता में मज़बूती और वित्तीय स्थिरता बढ़ाई जा सकती है.
उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय संगठनों, देशों की सरकारों और निजी सैक्टर से, एक दूसरे के साथ मिलकर प्रयासों पर बल दिया ताकि लैंगिक खाई को दूर करने के साथ-साथ, विकास सम्भावनाओं को बेहतर बनाया जा सके.
आईएमएफ़ प्रमुख ने बताया कि उनका संगठन अपने सदस्यों को ऐसी आर्थिक नीतियाँ करने पर ज़ोर दे रहा है जिससे ज़्यादा सहनक्षमता और प्रगति सुनिश्चित किये जा सकेंगे.
इस पृष्ठभूमि में, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक संरक्षा को बेहतर बनाने में सामाजिक व्यय पर ध्यान केन्द्रित करना होगा, ताकि मज़बूत समाजों का निर्माण किया जा सके.