मानवाधिकार हैं वैश्विक चुनौतियों के समाधान की बुनियाद - यूएन महासचिव

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने मानवाधिकार परिषद के 49वें सत्र के लिये अपने वीडियो सन्देश में कहा है कि मानवाधिकारों पर हर कहीं प्रहार हो रहा है, निरंकुशताएँ बढ़ रही हैं, और लोकप्रियतावाद, नस्लवाद व चरमपंथ से समाज कमज़ोर हो रहे हैं. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इन सभी विशाल चुनौतियों के समाधानों की बुनियाद, मानवाधिकारों में है.
महासचिव ने बताया कि कोविड-19 महामारी, विषमताएँ और जलवायु संकट के कारण सम्पूर्ण महाद्वीपों और क्षेत्रों के सामाजिक व आर्थिक अधिकार छिन्न-भिन्न हो रहे हैं.
The 49th session of the United Nations🇺🇳 Human Rights Council heard from @antonioguterres, Secretary-General of the @UN.#HRC49:ℹ️https://t.co/JC0SjIQm8P📺https://t.co/CruTB2BL5g pic.twitter.com/002Cw1Mv9o
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“विभाजन गहरे हो रहे हैं, संशय और स्व-हित उभार पर हैं.”
महासचिव ने ऐसे समाधानों पर ध्यान केन्द्रित करने का आहवान किया, जो बुनियादी व चिरस्थाई मानवाधिकारों पर आधारित हों.
यूएन प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा कि मानवाधिकारों को कोई भी तानाशाह ज़ब्त नहीं कर सकता और ना ही उन्हें ग़रीबी द्वारा मिटाया जा सकता है.
“तानाशाह जानते हैं, मानवाधिकार, उनके शासन के लिये सबसे बड़ा ख़तरा पैदा करते हैं.”
उन्होंने कहा कि आमजन में अपने अधिकारों व आज़ादियों के लिये चेतना अन्तर्निहित है और दमन के विरुद्ध हर आन्दोलन, अन्याय के विरुद्ध हर प्रदर्शन मानवाधिकारों को पुष्ट करता है.
महासचिव ने पिछले महीने यूएन महासभा में सम्बोधन के दौरान उल्लेखित अपनी पाँच प्राथमिकताओं का ज़िक्र किया, जोकि विश्व के समक्ष बड़े ख़तरों की ओर इंगित करती हैं.
कोविड-19, वैश्विक वित्त पोषण, जलवायु कार्रवाई, साइबर जगत में अराजकता, और शान्ति व सुरक्षा.
उन्होंने कहा कि इन सभी संकटों के समाधानों की बुनियाद, मानवाधिकार आधारित उपायों में मौजूद है.
यूएन प्रमुख ने ध्यान दिलाया कि कोविड-19 महामारी के दौरान निर्बल व हाशिये पर मौजूद समुदाय सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं.
वैश्विक टीकाकरण में भी विषमता व्याप्त है और उच्च-आय वाले देशों में निम्न-आय वाले देशों की तुलना में, प्रति व्यक्ति 13 गुना अधिक ख़ुराक़ें दी गई हैं.
महासचिव गुटेरेश ने कहा कि स्वास्थ्य देखबाल अधिकार, मानवाधिकार हैं, और सार्वजनिक रक़म से विकसित गई वैक्सीन का उपयोग, न्यायसंगत ढँग से सार्वजनिक भलाई के रूप में किया जाना चाहिये.
उन्होंने देशों की सरकारों, कम्पनियों व साझीदार संगठनों से यूएन स्वास्थ्य एजेंसी को हरसम्भव राजनैतिक व वित्तीय समर्थन देने का आग्रह किया ताकि हर देश में 70 फ़ीसदी आबादी का टीकाकरण किया जा सके.
उन्होंने कहा कि नागरिक व राजनैतिक अधिकारों के उल्लंघन, सामूहिक निगरानी, भेदभाव और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर रोक जैसी चुनौतियों से निपटने के लिये कार्रवाई को मानवाधिकारों पर आधारित बनाना होगा.
यूएन प्रमुख के मुताबिक़, मानवाधिकारों पर कार्रवाई की पुकार, 2030 एजेण्डा और टिकाऊ विकास लक्ष्यों में इसे स्पष्टता से पेश किया गया है.
“हमें अधिकार-आधारित समाधानों और समावेशी, टिकाऊ विकास, और सर्वजन के लिये अधिकारों व अवसरों पर आधारित उपायों की आवश्यकता है.”
यूएन प्रमुख ने सचेत किया कि वैश्विक महामारी से असमान पुनर्बहाली, वैश्विक वित्तीय प्रणाली के नैतिक दिवालियेपन को दर्शाती है. महामाही के कारण विकासशील देशों के समक्ष चुनौतियाँ पैदा हुई हैं, वे कर्ज़ अदायगी में लड़खड़ा रहे हैं और कुछ ही देश टिकाऊ व मज़बूत पुनर्बहाली में निवेश में सक्षम हो पाएंगे.
यूएन प्रमुख ने कहा कि इन सभी अन्यायों का समाधान, मानवाधिकारों में निहित हैं.
“सत्ता, सम्पदा और अवसरों को व्यापक व निष्पक्ष रूप से साझा किये जाने के लिये एक नया वैश्विक समझौता, एक मानवाधिकार अनिवार्यता है.”
इसके लिये, वैश्विक वित्तीय प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन करना होगा, और एक नए सामाजिक अनुबन्ध में फिर से ऊर्जा भरनी होगी ताकि निर्धनता व भुखमरी में लड़ा जा सके. शिक्षा व जीवन-पर्यन्त सीखने में निवेश हो और सामाजिक जुड़ाव व भरोसा बहाल किया जा सके.
यूएन प्रमुख का मानना है कि जलवायु संकट, मानवाधिकारों का भी संकट है.
जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और प्रकृति स्वास्थ्य से जुड़े संकटों से मानवाधिकारों के लिये भी चुनौती पैदा हो रही है.
बाढ़, सूखे और बढ़ते समुद्री जलस्तर से व्यापक मानवीय विनाश होने, भोजन की क़िल्लत होने और प्रवासन की आशंका है.
उन्होंने इस चुनौती से निपटने में युवजन, महिलाओं, लघु द्वीपीय देशों और आदिवासी समुदायों के प्रयासों का स्वागत किया और कहा कि यूएन उनके साथ खड़ा है.
महासचिव ने स्वस्थ पर्यावरण के लिये अधिकार को मानवाधिकार परिषद द्वारा मान्यता दिये जाने का स्वागत किया, और कहा कि यह जवाबदेही और जलवायु न्याय के लिये एक अहम औज़ार है.
महासचिव ने कहा कि पैरिस जलवायु समझौते में, वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना बेहद अहम है, ताकि मानवता के विरुद्ध अपराध से भी भी गम्भीर मानवीय पीड़ा को टाला जा सके.
यूएन प्रमुख के अनुसार, दो अरब 90 करोड़ लोगों के बीच पसरी डिजिटल खाई, इण्टरनैट में अवरोध, भ्रामक सूचना का फैलना, और स्पाईवेयर के इस्तेमाल से मानवाधिकारों को चोट पहुँचा रहा है.
उन्होंने कहा कि जातीय व धार्मिक अल्पसंख्यकों, एलजीबीटीआईक्यू+, युवजन, आदिवासी समुदाय व महिला अधिकार कार्यकर्ताओं के विरुद्ध सेन्सरशिप व ऑनलाइन हमले बढ़े हैं.
कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) के इस्तेमाल से भेदभाव और बहिष्करण बढ़ रहा है और एआई पर आधारित हथियारों से मानवाधिकारों के लिये बड़ा जोखिम है.
इन चुनौतियों पर पार पाने के लिये डिजिटल माध्यमों को सर्वजन के लिये समावेशी व सुरक्षित बनाने का आग्रह किया गया है और आगाह किया गया है कि सतर्कता बरतने के साथ-साथ जायज़ चर्चा को बढ़ावा दिया जाना होगा.
इसके लिये, नियामक फ़्रेमवर्कों को मानवाधिकारों पर आधारित बनाना होगा और इसके लिये समावेशी चर्चा को बढ़ावा दिया जाना होगा.
यूएन प्रमुख ने कहा कि दुनिया भर में हिंसक संघर्षों व टकरावों का दायरा बढ़ा है जिससे लाखों-करोड़ों लोगों के मानवाधिकारों पर संकट है.
यूक्रेन में रूसी महासंघ के सैन्य अभियान में तेज़ी से मानवाधिकार हनन के मामले बढ़े हैं. उन्होंने कहा कि युद्धों में आम नागरिक हताहत होते हैं और पत्रकारों व कार्यकर्ताओं की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमले होते हैं.
यूएन प्रमुख के मुताबिक़, हिंसक टकराव में फँसे आमजन के लिये, सुरक्षा व संरक्षण के अधिकारों के हनन के साथ-साथ, भोजन, स्वच्छ जल, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा व रोज़गार सम्बन्धी अधिकार प्रभावित होते हैं.
उन्होंने म्याँमार से लेकर अफ़ग़ानिस्तान, इथियोपिया और अन्य देशों में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा किये जाने, और युद्ध के दौरान व उसके बाद, सर्वजन के अधिकार सुनिश्चित किये जाने का आग्रह किया.