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विकसित देशों से, निर्बल देशों को जलवायु वित्त का वादा तेज़ी से पूरा करने का आग्रह

दुनिया भर में चरम मौसम की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो रही है.
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दुनिया भर में चरम मौसम की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो रही है.

विकसित देशों से, निर्बल देशों को जलवायु वित्त का वादा तेज़ी से पूरा करने का आग्रह

जलवायु और पर्यावरण

ऐसे में जबकि विश्व नेतागण ने ये उम्मीद जताई है कि विकासशील देशों को, जलवायु वित्तीय मदद के रूप में हर वर्ष 100 अरब डॉलर की रक़म अदा करने का लक्ष्य पहुँच में नज़र आता है, तो संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने मंगलवार को चेतावनी भरे शब्दों में कहा कि ये लक्ष्य, वर्ष 2023 तक तो पूरा होने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे हैं, और उसके बाद के समय के लिये भी अतिरिक्त धनराशि की ज़रूरत होगी.

यूएन प्रमुख ने कहा, “मैं इस अपर्याप्त धनराशि की तुलना, खरबों डॉलर की उस धनराशि के साथ कर रहा हूँ जो विकसित देश अपने यहाँ कोविड-19 महामारी से उबरने में कर रहे हैं.”

एंतोनियो गुटेरेश ने ये विचार, मंगलवार को कॉप26 जलवायु सम्मेलन के दौरान, ऐसे देशों के नेतागण के एक उच्चस्तरीय सम्वाद में व्यक्त किये, जो जलवायु परिवर्तन से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं.

मीडिया ख़बरों के अनुसार, जर्मनी व कैनेडा के नेतृत्व में ताज़ा कूटनैतिक प्रयास का मक़सद, ज़रूरी वित्तीय मदद व धनराशि का लक्ष्य 2023 तक हासिल करना है, जोकि पेरिस जलवायु समझौते में दी गई समय सीमा से, तीन वर्ष देरी से होगा.

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि इस लक्ष्य प्राप्ति को सम्भव बनाने के लिये, दुनिया भर के देशों से और ज़्यादा कार्रवाई की ज़रूरत है; अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के विशेष जलवायु परिवर्तन दूत, जॉन कैरी ने भी इसी मंशा की पुष्टि की है.

एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, “मैं विकसित दुनिया से, भरोसा बहाल करने की ख़ातिर, 100 अरब डॉलर की राशि के प्रतिवर्ष योगदान की योजना पर तेज़ी से अमल शुरू करने का आग्रह करता हूँ.”

अनुकूलन कार्य

यूएन महासचिव ने इन निवेशों की अहमियत पर जोर देते हुए कहा कि अनुकूलन कार्यों और पूर्व चेतावनी प्रणालियों से लोगों की ज़िन्दगियाँ बचती हैं, और जलवायु स्मार्ट कृषि व बुनियादी ढाँचों की बदौलत आजीविकाएँ व रोज़गार बचते हैं.

उन्होंने कहा कि इसीलिये वो, दानदाता देशों से, उनके जलवायु वित्त का आधा हिस्सा, अनुकूलन कार्यों के लिये आबण्टित करने के लिये कहते हैं.

इस समय, कुल जलवायु वित्त का केवल एक चौथाई हिस्सा अनुकूलन कार्यों की तरफ़ जाता है जोकि लगभग 20 अरब 10 करोड़ डॉलर है. ऐसा अनुमान है कि विकासशील देशों के लिये अनुकूलन लागत, वर्ष 2030 तक बढ़कर 300 अरब डॉलर प्रतिवर्ष तक हो जाएगी.

यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश, स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में कॉप26 सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए. (नवम्बर 2021)
UNFCCC/Kiara Worth
यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश, स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में कॉप26 सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए. (नवम्बर 2021)

यूएन प्रमुख ने जलवायु अनुकूलन कार्यों में संसाधन निवेश की तुलना, उस धनराशि से की जो कुछ सम्पन्न देश, अपने यहाँ कोविड-19 से उबरने के उपायों पर ख़र्च कर रहे हैं.

अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश, आर्थिक पुनर्बहाली में अपने सकल घरेलू उत्पाद की लगभग 28 प्रतिशत धनराशि लगा रहे हैं. मध्यम आय वाले देशों में ये धनराशि कम होकर साढ़े छह प्रतिशत ही है. कम विकसित देशों में तो ये केवल दो प्रतिशत ही है.

यूएन प्रमुख ने तर्क दिया कि जलवायु परिवर्तन के कारण कमज़ोर हालात का सामना कर रहे देशों को, ये वित्तीय मदद त्वरित व आसानी से मिलनी चाहिये. 

जलवायु लक्ष्य

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के फ़्रेमवर्क कन्वेन्शन (UNFCCC) के ताज़ा आँकड़ों के अनुसार, मौजूदा राष्ट्रीय निर्धारित योगदानों (NDCs) के परिणामस्वरूप, अब भी 2.7 डिग्री सेल्सियस डिग्री की विनाशकारी तापमान वृद्धि होगी.

एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि पिछले कुछ दिनों के दौरान जो घोषणाएँ की गई हैं, उन्हें देखते हुए अभी ये कहना मुश्किल है कि इस समय दुनिया की क्या स्थिति है, मगर वो इस बारे में अवश्य आश्वस्त हैं कि जी20 देशों की तरफ़ से और ज़्यादा महत्वाकांक्षा की आवश्यकता है, जोकि कुल कार्बन प्रदूषण के लगभग 80 प्रतिशत हिस्से के लिये ज़िम्मेदार हैं.

उन्होंने कहा, “तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का युद्ध इसी दशक के दौरान जीता या हारा जाएगा.”

लघु द्वीपीय देश

कॉप26 सम्मेलन के दौरान ही, यूएन महासभा अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद ने, सुबह लघु द्वीपीय देशों के संगठन के सरकार व राष्ट्राध्यक्षों के साथ मुलाक़ात की थी.

अब्दुल्ला शाहिद ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि कोई अन्य देश या समूह, जलवायु प्रभाव से इतने तत्काल व गम्भीर जोखिमों का सामना नहीं कर रहे हैं, और लघु द्वीपीय देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बिल्कुल अग्रिम मोर्चे पर हैं.

उन्होंने ज़ोर देकर ये भी कहा कि राष्ट्रीय निर्धारित योगदानों में, बहुत कम देशों ने ही इतनी महत्वाकांक्षा दिखाई है, जितनी कि द्वीपीय देशों ने दिखाई है.