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कोविड-19 के कारण, टीबी से होने वाली मौतों में, एक दशक में पहली बार वृद्धि

भारत में टीबी से पीड़ित लोगों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है.
ILO Photo/Vijay Kutty
भारत में टीबी से पीड़ित लोगों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है.

कोविड-19 के कारण, टीबी से होने वाली मौतों में, एक दशक में पहली बार वृद्धि

स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण तपेदिक (टीबी) के ख़िलाफ़ लड़ाई में, वर्षों से दर्ज की जा रही प्रगति को एक बड़ा झटका लगा है. एक दशक से ज़्यादा समय में पहली बार टीबी से होने वाली मौतों की संख्या में वृद्धि हुई है. 

टीबी की बीमारी ‘Mycobacterium tuberculosis’ नामक बैक्टीरिया से संक्रमित होने के कारण होती है, जिससे सबसे अधिक फेफड़े प्रभावित होते हैं.

टीबी अक्सर इसके मरीज़ों द्वारा खाँसने, छींकने या थूकने से निकलने वाली बैक्टीरिया के हवा में फैलने से होती है.

तपेदिक से हर साल बीमार पड़ने वाले क़रीब 90 फ़ीसदी मरीज़ केवल 30 देशों से हैं, जिनमें भारत, इण्डोनेशिया, चीन, पाकिस्तान, फ़िलिपीन्स, तन्ज़ानिया, नाइजीरिया, केनया सहित अन्य देश हैं.

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गुरूवार को जारी रिपोर्ट दर्शाती है कि वर्ष 2019 की तुलना में, 2020 में ज़्यादा लोगों की मौत हुई है, और अपेक्षाकृत कम लोगों में इस बीमारी का पता चल पाया है. 

इसके अलावा, कम मरीज़ों का इलाज या रोकथाम के लिये उपचार हुआ है, और टीबी के लिये अतिआवश्यक सेवाओं में कुल व्यय में भी गिरावट आई है.    

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा कि यह रिपोर्ट महामारी के कारण, अतिआवश्यक सेवाओं में आए व्यवधान के प्रति उपजी उन आशंकाओं की पुष्टि करती है, जिनमें टीबी के विरुद्ध प्रगति पर असर होने का भय व्यक्त किया गया था.  

वर्ष 2020 में कोविड-19 के कारण अन्य कई स्वास्थ्य सेवाओं पर भी असर हुआ है, मगर टीबी सेवाओं पर होने वाले असर को विशेष रूप से गम्भीर माना गया है.  

रिपोर्ट के अनुसार टीबी के कारण पिछले वर्ष क़रीब 15 लाख लोगों की मौत हुई – इनमें से अधिकतर मौतें मुख्य रूप से उन 30 देशों में हुई हैं, जहाँ टीबी एक बड़ी समस्या है. 

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने अनुमान जताया है कि तपेदिक से पीड़ित लोगों और मृतक संख्या, वर्ष 2021 और 2022 में, और भी अधिक होने की आशंका है. 

टीबी सेवाओं में व्यवधान 

बताया गया है कि महामारी के कारण अतिआवश्यक सेवाओं में आए व्यवधान की वजह से टीबी के नए मरीज़ों का रोग निदान नहीं हो पाया.

वर्ष 2019 में नए मरीज़ों की संख्या 71 लाख थी, लेकिन 2020 में 58 लाख नए मरीज़ों का ही पता चला.

संगठन का अनुमान है कि फ़िलहाल टीबी के 41 लाख मरीज़ ऐसे हैं जिन्हें या तो अपनी बीमारी के बारे में जानकारी नहीं है या फिर सरकारी एजेंसियों को इसकी सूचना नहीं है.

वर्ष 2019 में यह संख्या 29 लाख आँकी गई थी.  

वर्ष 2019 और 2020 के बीच, टीबी के नए मामलों की दर्ज संख्या में गिरावट मुख्यत: इन देशों में देखी गई है: भारत (41 प्रतिशत), इण्डोनेशिया (14 प्रतिशत), फ़िलिपीन्स (12 प्रतिशत) और चीन (8 प्रतिशत).   

टीबी की रोकथाम के लिये उपचार पाने वाले लोगों की संख्या में भी कमी आई है. वर्ष 2020 में 28 लाख लोगों में बीमारी की रोकथाम के लिये उपचार हुआ, जो कि 2019 से 21 फ़ीसदी की गिरावट है. 

निवेश में गिरावट

रिपोर्ट बताती है कि टीबी के 98 फ़ीसदी मामलों के लिये ज़िम्मेदार देशों के लिये निवेश एक चुनौती बना हुआ है. वर्ष 2020 में उपलब्ध कुल धनराशि में से, 81 प्रतिशत राशि घरेलू स्रोतों से थी. 

कुल घरेलू धनराशि में भी भारत, रूस, ब्राज़ील, चीन और दक्षिण अफ़्रीका, ब्रिक्स देशों, का हिस्सा 65 प्रतिशत है. 

वैश्विक स्तर पर टीबी के निदान, उपचार व रोकथाम सेवाओं में वैश्विक व्यय पाँच अरब 80 करोड़ से गिरकर पाँच अरब 30 करोड़ रह गया है. 

वर्ष 2022 तक टीबी पर जवाबी कार्रवाई के लिये ज़रूरी वित्त पोषण के वार्षिक 13 अरब डॉलर के लक्ष्य की यह आधी धनराशि है. 

रिपोर्ट में सभी देशों से अति-आवश्यक टीबी सेवाओं की पुनर्बहाली के लिये तत्काल उपाय किये जाने की पुकार लगाई गई है. 

इसके समानातन्तर, टीबी शोध एवँ नवाचार में निवेश को दोगुना किया जाना होगा और स्वास्थ्य व अन्य सैक्टरों में समन्वित कार्रवाई के ज़रिये टीबी के लिये ज़िम्मेदार सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक कारणों से निपटना होगा.