वैश्विक पर्यावरणीय संकटों से निपटने के लिये वायु गुणवत्ता में सुधार ज़रूरी

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एक नई रिपोर्ट में वायु की गुणवत्ता को बेहतर बनाये जाने पर बल दिया गया है ताकि पृथ्वी पर मंडराते तीन बड़े संकटों – जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता को नुक़सान और प्रदूषण व कचरे – से निपटने में मदद मिल सके.
यूएन पर्यावरण एजेंसी द्वारा गुरूवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक पर्यावरणीय घटनाएँ आपस में गुँथी हुई हैं.
Our 🆕 report finds that 🔴 1/3 of the world’s countries have no legally mandated outdoor air quality standards. 🔴 Where such laws exist, standards vary widely & often misalign with @WHO guidelines.Learn more⤵️ #BeatAirPollution #WorldCleanAirDay https://t.co/dOtHIPGJSt
UNEP
संगठन की नई रिपोर्ट, Global Assessment of Air Pollution Legislation, में 194 देशों और योरोपीय संघ में वायु गुणवत्ता सम्बन्धी क़ानूनों की समीक्षा की गई है.
रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषणों के अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर फैलने और वायु गुणवत्ता प्रभावित करने के बावजूद, महज़ एक-तिहाई देशों में ही सीमा पार वायु प्रदूषण से निपटने के लिये क़ानूनी फ़्रेमवर्क मौजूद है.
यूएन पर्यावरण एजेंसी की प्रमुख इन्गर एण्डरसन ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा, “वायु प्रदूषण से निपटने के लिये क़ानूनों और नियामन के बढ़ने के बावजूद, वायु गुणवत्ता लगातार ख़राब होती जा रही है.”
रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विकसित, वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों का इस्तेमाल करते हुए, क़ानूनी उपायों की पड़ताल गई है, जिनसे वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा करना सम्भव हो सके.
अध्ययन के मुताबिक, 43 फ़ीसदी देशों के पास वायु प्रदूषण के लिये कोई क़ानूनी परिभाषा नहीं है, जबकि 31 प्रतिशत देशों को क़ानूनी रूप से ज़रूरी वायु गुणवत्ता मानकों को अभी अपनाना है.
37 प्रतिशत देशों में राष्ट्रीय स्तर पर वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिये क़ानूनी उपाय अनिवार्य नहीं हैं, जबकि उनसे यह समझने में मदद मिल सकती है कि वायु गुणवत्ता किस तरह से राष्ट्रीय आबादियों को प्रभावित करती है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने वायु प्रदूषण को पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिमों के लिये सबसे बड़ा स्रोत माना गया है.
विश्व की 92 फ़ीसदी आबादी ऐसे इलाक़ों में रहती है, जहाँ वायु प्रदूषण सुरक्षित स्तर से कहीं अधिक है. इसका निम्न आय वाले देशों में महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों पर विषमतापूर्ण असर हो रहा है.
दुनिया के 49 फ़ीसदी देशों में वायु प्रदूषण को पूरी तरह से, घर से बाहर होने वाला ख़तरा ही माना गया है.
यूएन पर्यावरण एजेंसी की कार्यकारी निदेशक इन्गर एण्डरसन ने कहा, “हर साल, 70 लाख लोगों की वायु प्रदूषण के कारण, असमय मौतों को टालने के लिये कोई टीका नहीं होगा.”
उन्होंने कहा कि वर्ष 2050 तक इस आँकड़े में 50 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हो सकती है.
“हम जिस हवा में साँस लेते हैं, वो एक बुनियादी सार्वजनिक कल्याण है, और सरकारों को इसकी स्वच्छता व सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये और ज़्यादा प्रयास करने होंगे.”
मानकों को पूरा करने के लिये उनकी निगरानी को बेहद अहम बताया गया है, लेकिन 37 प्रतिशत देशों में यह क़ानूनी रूप से ज़रूरी नहीं है.
वायु प्रदूषण सीमाओं से परे है, इसके बावजूद, महज़ 31 प्रतिशत देशों में ही सीमा पार से होने वाले वायु प्रदूषण से निपटने के लिये क़ानूनी ढाँचा उपलब्ध है.