म्याँमार में बदतर हुए हालात, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से सहायता का आग्रह
म्याँमार के लिये स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ टॉम एण्ड्रयूज़ ने आगाह किया है कि कोविड-19 के डेल्टा वेरिएंट के तेज़ फैलाव, संक्रमण मामलों में उछाल और बदहाल स्वास्थ्य प्रणाली के बीच म्याँमार में संकट, और ज़्यादा गहरा हो रहा है.
उन्होंने चिन्ता जताई है कि स्थानीय लोगों का सैन्य नेतृत्व में भरोसा नहीं है और इन सभी वजहों से बड़े पैमाने पर जीवन की क्षति हो सकती है.
#Myanmar: @RapporteurUn calls for emergency international engagement to address a “perfect storm” of factors that are fuelling the deepening COVID-19 crisis. Learn more: https://t.co/omGMXF9aGp pic.twitter.com/wTqwqrFjn2
UN_SPExperts
म्याँमार के विशेष रैपोर्टेयर टॉम एण्ड्रयूज़ ने बुधवार को जारी एक वक्तव्य में कहा कि देश में ज़िन्दगियों की रक्षा के लिये आपात सहायता की तत्काल आवश्यकता है.
“स्वास्थ्य का उच्चतम साध्य मानक, हर मनुष्य के बुनियादी अधिकारों में से है, और म्याँमार में अधिकतर लोगों का यह अधिकार नकारा जा रहा है.”
“अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को कार्रवाई करनी होगी.”
यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ ने पिछले सप्ताह की अपनी अपील दोहराते हुए म्याँमार की जनता के लिये आपात गठबंधन की आवश्यकता पर बल दिया है.
म्याँमार से महत्वपूर्ण चिकित्सा सामग्री और ऑक्सीजन की भारी क़िल्लत की ख़बरें मिल रही हैं. इसके मद्देनज़र, इस पहल का लक्ष्य, देश में आपात मानवीय राहत प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया है.
पिछले बुधवार, यूएन के विशेष रैपोर्टेयर ने बताया था कि “म्याँमार में टीकाकरण और परीक्षण क्षमता बेहद सीमित है. जिन लोगों की जाँच हो रही है, उनमें से 26 प्रतिशत को संक्रमण पाया जा रहा है, जोकि चिन्ता का कारण है.”
यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ के मुताबिक़, देश में सैन्य नेतृत्व के पास इस संकट पर नियंत्रण पाने के लिये, संसाधनों, क्षमताओं और वैधता की कमी है.
उन्होंने बताया कि म्याँमार में संकट ज़्यादा घातक है, चूँकि सैन्य नेतृत्व के प्रति व्यापक स्तर पर भरोसे का अभाव है.
समन्वित प्रयासों की पुकार
टॉम एण्ड्रयूज़ ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से राजनैतिक रूप से तटस्थ निकाय के गठन का आग्रह किया ताकि कोविड-19 से निपटने के लिये टीकाकरण सहित पुख़्ता जवाबी कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके.
विशेष रैपोर्टेयर ने कहा कि सहायता प्रदान करने के इच्छुक व सक्षम, सभी सदस्य देशों, अन्तरराष्ट्रीय संगठनों, क्षेत्रीय निकायों, और ग़ैरसरकारी संगठनों, को ऐसा जल्दी करना होगा.
उन्होंने सचेत किया कि अगर इस कार्रवाई में देरी हुई तो बड़ी संख्या में लोगों की जान जाने का जोखिम है और म्याँमार इस घातक वायरस को व्यापक स्तर पर फैलाने वाला देश बन जाएगा.
यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ ने म्याँमार में निर्बल समुदायों के हालात पर भी चिन्ता व्यक्त की है. इनमें भीड़भाड़ भरे बन्दीगृहों में रह रहे क़ैदी भी हैं.
बताया गया है कि म्याँमार में बन्दीगृहों में बड़ी संख्या में लोगों को रखा गया है, जिनमें वे राजनैतिक बन्दी भी हैं जिन्हें सैन्य तख़्तापलट के बाद मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया था.
उन्होंने क्षोभ जताया कि पहले से ही बीमार चल रहे बन्दियों को, हिरासत में रखा जाना, एक मौत की सज़ा के समान है.
एक फ़रवरी को म्याँमार में, सेना ने लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को सत्ता से बेदख़ल करते हुए देश का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया था.
इसके बाद दे अब तक छह हज़ार लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया जा चुका है और लगभग 900 लोगों की मौत हुई है, जिनमें बच्चे भी हैं.
स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतन्त्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतन्त्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिये कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतन्त्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.