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म्याँमार: ‘क्रूर दमनात्मक कार्रवाई’ पर विराम के कोई आसार नहीं

म्याँमार में, 1 फ़रवरी 2021 को सेना द्वार तख़्तापलट के बाद शुरू हुए राजनैतिक संकट ने भी खाद्य असुरक्षा की स्थिति को और कठिन बना दिया है.
Unsplash/Gayatri Malhotra
म्याँमार में, 1 फ़रवरी 2021 को सेना द्वार तख़्तापलट के बाद शुरू हुए राजनैतिक संकट ने भी खाद्य असुरक्षा की स्थिति को और कठिन बना दिया है.

म्याँमार: ‘क्रूर दमनात्मक कार्रवाई’ पर विराम के कोई आसार नहीं

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) ने आगाह किया है कि ऐसे समय जब दुनिया की नज़रें, म्याँमार में शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध दमनात्मक कार्रवाई पर टिकी हैं, देश में सैन्य नेतृत्व ने, अपनी ही जनता के ख़िलाफ़ मानवाधिकारों के अन्य उल्लंघनों को अंजाम देना जारी रखा है. यूएन प्रवक्ता ने म्याँमार में, सैन्य तख़्ता पलट के 100 दिन पूरे होने पर  कहा कि विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोगों को दबाने की कार्रवाई में कमी आने के कोई संकेत नहीं हैं.

मानवाधिकार कार्यालय के प्रवक्ता रूपर्ट कोलविल ने मंगलवार को पत्रकारों को बताया कि 10 मई तक, सुरक्षा बलों द्वारा प्रदर्शनों को दबाने के दौरान अनावश्यक, ग़ैर-आनुपातिक और घातक बल प्रयोग के कारण कम से कम 782 लोगों की मौत हो चुकी है.

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"दुनिया का ध्यान, सुरक्षा बलों के हाथों जान गँवाने वाले शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों और मूकदर्शकों की संख्या पर टिका है, जबकि सैन्य प्रशासन म्याँमार की जनता के ख़िलाफ़ अन्य मानवाधिकारों के उल्लंघनों को जारी रखे हुए है."

मानवाधिकार कार्यालय प्रवक्ता ने मौजूदा हालात को और ख़राब होने से रोकने के लिये अन्तरराष्ट्रीय भूमिका की अपील की है.

रूपर्ट कोलविल ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के समूह – आसियान (ASEAN) से प्रतिक्रिया में तेज़ी लाने और गहन कार्रवाई का आग्रह किया है.

उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना होगा कि म्याँमार में सैन्य नेतृत्व, उस पाँच सूत्री योजना का अनुपालन करे, जिस पर 24 अप्रैल को जकार्ता में संगठन की बैठक के दौरान रज़ामन्दी हुई थी.

इस बैठक में म्याँमार में हिंसा को तत्काल रोके जाने और जनता के हितों के अनुरूप, सभी पक्षों में सम्वाद के ज़रिये शान्तिपूर्ण समाधान की तलाश किये जाने पर सहमति बनी.

रूपर्ट कोलिवल ने चिन्ता जताई कि घरों व कार्यालयों पर, रोज़ाना छापे मारे जा रहे हैं, और फ़िलहाल तीन हज़ार 740 लोग से ज़्यादा हिरासत में हैं.

इनमें से अनेक मामलों को जबरन गुमशुदगी की श्रेणी में रखा जा सकता है.

"जो लोग हिरासत में हैं, उनमें से अधिकाँश को न्यायाधीश के समक्ष पेश नहीं किया गया है. 86 लोगों पर चलाए गए मुक़दमों में अधिकतर गुपचुप ढँग से कार्रवाई हुई है, और किसी भी प्रकार की क़ानूनी मदद तक पहुँच या तो सीमित है या फिर उपलब्ध नहीं है."

पिछले एक महीने में, सैन्य नेतृत्व ने डेढ़ हज़ार से ज़्यादा नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं, श्रम संगठनों, पत्रकारों, शिक्षाविदों और अन्य हस्तियों को गिरफ़्तारी का वॉरण्ट जारी किये हैं.

इसके बाद से बड़ी संख्या में लोग भूमिगत हो गए हैं. बताया गया है कि दबाव बढ़ाने के लिये, सैन्य प्रशासन अब वाँछित लोगों के परिजनों को हिरासत में ले रहा है, ताकि लोगों पर आत्मसमर्पण का दबाव डाला जा सके.

हाल के हफ़्तों में, सैन्य नेतृत्व ने तीन हज़ार से ज़्यादा सिविल कर्मचारियों को बर्ख़ास्त या निलम्बित किया है जिनमें 70 फ़ीसदी से अधिक महिलाएँ हैं.

इस बीच यूएन शरणार्थी एजेंसी ने बताया है कि पिछले कुछ हफ़्तों में म्याँमार से सैकड़ों लोगों ने सीमा पार भारत और थाईलैण्ड में शरण ली है.

रूपर्ट कोलविल ने ध्यान दिलाया कि जो लोग म्याँमार से बाहर शरण व सुरक्षा की तलाश कर रहे हैं, उन्हें पड़ोसी देशों द्वारा समर्थन व संरक्षण मुहैया कराया जाना होगा.