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कोविड-19: उपायों में ढिलाई के लिये, मौसमी कारकों को वजह ना बनाएँ

बांग्लादेश की राजधानी ढाका के एक पार्क में सैर करते हुए एक माँ-बच्ची, दोनों मास्क पहने हुए हैं. महामारी का मुक़ाबला करने के प्रयासों में, इस तरह के ऐहतियाती उपाय, अहम बताए गए हैं.
UNICEF/Habibul Haque
बांग्लादेश की राजधानी ढाका के एक पार्क में सैर करते हुए एक माँ-बच्ची, दोनों मास्क पहने हुए हैं. महामारी का मुक़ाबला करने के प्रयासों में, इस तरह के ऐहतियाती उपाय, अहम बताए गए हैं.

कोविड-19: उपायों में ढिलाई के लिये, मौसमी कारकों को वजह ना बनाएँ

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र की मौसम एजेंसी (WMO) ने आगाह करते हुए कहा है कि उत्तरी गोलार्द्ध में गर्मी का मौसम शुरू होने के मौक़े को, कोरोनावायरस महामारी से बचने के उपायों में ढिलाई बरते जाने के लिये, किसी कारण या बहाने के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये. 

यूएन मौसम संगठन ने एक ताज़ा रिपोर्ट में ध्यान दिलाया है कि ये लोकप्रिय धारणा रही है कि गरम मौसम में, वायरस के फैलाव में कमी आएगी, जबकि इस धारणा के उलट, बीते वर्ष बसन्त के मौसम में, संक्रमण के मामलों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई थी.

साथ ही, ऐसा भी कोई प्रमाण नहीं हैं कि इस वर्ष भी हालात, पिछले वर्ष की तुलना में कुछ भिन्न होंगे.

ये रिपोर्ट विश्व मौसम संगठन  (WMO) के अन्तरराष्ट्रीय कार्य दल ((Task Force) ने तैयार की है. इस कार्य दल के सह अध्यक्ष बैन ज़ायशिक ने कहा, “अभी तक तो ऐसे कोई सबूत उपलब्ध नहीं है जिनके आधार पर, सरकारें, वायरस संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिये लागू किये गए उपायों में ढील देने के लिये, मौसम सम्बन्धी कारकों या वायु गुणवत्ता को एक वजह बता सकें.”

जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के भूमण्डलीय विज्ञान विभाग में कार्यरत बैन ज़ायशिक ने बताया, “हमने महामारी फैलने के पहले वर्ष में, गरम मौसमों और गरम क्षेत्रों में भी संक्रमण बढ़ते हुए देखा है, और ऐसे कोई प्रमाण नहीं हैं कि आने वाले समय में भी, वैसे ही हालात फिर नहीं हो सकते हैं.” 

रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि वर्ष 2020 के दौरान नज़र आए समीकरणों में प्रतीत होता है कि, कोविड-19 महामारी के संक्रमण पर, सरकारों द्वारा उठाए गए क़दमों से नियन्त्रण पाया जा सका, ना कि मौसम सम्बन्धी कारकों से.

अन्य प्रासंगिक प्रभावशाली कारकों में, इनसानी बर्ताव में बदलाव और प्रभावित आबादियों की बनावट, व हाल ही में, वायरस द्वारा अपना रूप बदलना, शामिल रहे हैं. 

संक्रमण का मौसम मिज़ाज अभी समझ से परे

रिपोर्ट में, मौसम की सम्भावित भूमिका पर भी ध्यान दिया गया है क्योंकि सर्दी-ज़ुकाम या फ़्लू जैसे साँस सम्बन्धी वायरल संक्रमणों में, कुछ ना कुछ योगदान मौसमों का भी रहता है.

इसी कारण, इन अटकलों को बल मिला कि अगर कोविड-19 बीमारी भी अनेक वर्षों तक मौजूद रहती है, तो ये भी मौसम सम्बन्धी बीमारी का रूप धारण कर सकती है.

विश्व मौसम संगठन ने कहा है, “अभी, कोविड-19 वायरस के बारे में इस तरह के निष्कर्ष निकालना जल्दबाज़ी होगी.”

रिपोर्ट के अनुसार, “साँस सम्बन्धी वायरल संक्रमण के मौसम कारक को आगे बढ़ाने वाली प्रक्रिया को, अभी पूरी तरह नहीं समझा गया है.”

रिपोर्ट में ध्यान दिलाते हुए कहा है कि कोविड-19 के प्रयोगशालाओं में हुए अध्ययनों में ऐसे कुछ प्रमाण सामने आए हैं जिनसे झलकता है कि ये वायरस सर्दी, सूखे और कम अल्ट्रावॉयलेट रेडियेशन वाली परिस्थितियों में, ज़्यादा समय तक जीवित रहता है.

हालाँकि रिपोर्ट ये भी कहती है कि इन अध्ययनों से अभी ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता है कि वायरस पर मौसम सम्बन्धी कारकों के सीधे प्रभाव से, वास्तविक परिस्थितियों में, इसका संक्रमण फैलने की दर पर कोई सार्थक असर पड़ता भी है या नहीं. 

वायु गुणवत्ता कारक अभी अनिर्णीत

टास्क टीम ने आगे ध्यान दिलाया है कि वायु गुणवत्ता कारकों के प्रभाव सम्बन्धी सबूत अब भी अनिर्णीत हैं यानि उनके बारे में कोई पक्की या प्रामाणिक राय नहीं बनी है.

इस तरह के आरम्भिक सबूत मिले हैं कि ख़राब गुणवत्ता वाली वायु के कारण, कोविड-19 से मृत्यु होने की दर बढ़ती है, मगर ऐसे कोई ठोस सबूत नहीं हैं जिनसे ये साबित हो कि वायु के ज़रिये इस संक्रमण के फैलाव में, प्रदूषण का कोई सीधा प्रभाव हो.

रिपोर्ट में ये भी रेखांकित किया गया है कि इस वायरस के, वायु के ज़रिये फैलाव पर प्रदूषण के प्रभाव के बारे में, फ़िलहाल, कोई सीधे या विशेषज्ञों द्वारा समीक्षा किये हुए सबूत उपलब्ध नहीं हैं.

Meteorological and Air Quality factors affecting the COVID-19 pandemic - English