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म्याँमार: सेना द्वारा सत्ता नियन्त्रण के बाद, उसके विरुद्ध कड़ी अन्तरराष्ट्रीय कार्रवाई की माँग

म्याँमार की राजनैतिक नेता आंग सान सू ची, संयुक्त राष्ट्र के हेग स्थित अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में पेश होते हुए (10 दिसम्बर 2019)
ICJ/Frank van Beek
म्याँमार की राजनैतिक नेता आंग सान सू ची, संयुक्त राष्ट्र के हेग स्थित अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में पेश होते हुए (10 दिसम्बर 2019)

म्याँमार: सेना द्वारा सत्ता नियन्त्रण के बाद, उसके विरुद्ध कड़ी अन्तरराष्ट्रीय कार्रवाई की माँग

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के एक स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने म्याँमार में सेना द्वारा देश की सत्ता पर नियन्त्रण किये जाने की भर्त्सना करते हुए चिन्ता जताई है कि ऐसा होने से एक बार फिर देश पर काला साया मंडरा रहा है. मानवाधिकार विशेषज्ञ टॉम एण्ड्रयूज़ ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया है कि ताज़ा घटनाक्रम की स्पष्ट और कड़े शब्दों में निन्दा किये जाने के साथ-साथ, प्रासंगिक कार्रवाई भी की जानी चाहिये. 

म्याँमार में मानवाधिकारों की स्थिति पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर टॉम एण्ड्रयूज़ ने सोमवार को जारी अपने वक्तव्य में कहा, “जिस किसी को भी हिरासत में लिया गया है, मैं उसकी तत्काल, बिना शर्त रिहाई, संचार व्यवस्था को बहाल करने और इस क्षुब्धकारी व ग़ैरक़ानूनी कार्रवाई पर विराम लगाने की अपील करता हूँ.”

टॉम एण्ड्रयूज़ ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से सैन्य कार्रवाई की निन्दा करने के लिये संकल्प प्रदर्शित किये जाने और अतीत में मानवाधिकारों के हनन के दोषियों की जवाबदेही तय किये जाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया.

“जब तक लोकतन्त्र की बहाली नहीं होती, तब तक मज़बूत लक्षित पाबन्दियों और हथियारों पर प्रतिबन्ध सहित निर्णायक कार्रवाई अनिवार्य है.”

“चुने हुए नेता और लोकतन्त्र समर्थक कार्यकर्ता हिरासत में हैं और चारों ओर से घिरे हैं. यह दायित्व अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का है कि तत्मादाव (म्याँमार का सैन्य नेतृत्व) की ज़िम्मेदारी तय हो.”

ग़ौरतलब है कि 31 जनवरी को म्याँमार की सेना ने देश की सत्ता अपने हाथों में लेने की घोषणा की थी जिसके बाद – देश के विधायी, न्यायिक और कार्यकारी अंगों पर अब सेना का नियन्त्रण है.

देश में लोकतान्त्रिक सरकार के शीर्ष नेतृत्व को हिरासत में लिया गया है, जिनमें काउंसलर आँग सान सू ची और राष्ट्रपति यू विन म्यिन्त भी हैं.

सेना द्वारा संचालित एक टीवी चैनल पर जारी वीडियो सन्देश में, सेना ने आपातकाल की घोषणा करते हुए एक वर्ष के लिये सत्ता का नियन्त्रण अपने हाथों में लेने की घोषणा की है. 

विशेष रैपोर्टेयर ने मौजूदा घटनाक्रम पर कहा कि लोकतान्त्रिक रूप से चुनी गई सरकार को हटाकर सेना द्वारा सत्ता हथियाए जाने से एक बार फिर देश पर काला साया मँडरा रहा है. 

“सैन्य जनरलों ने भय और बेचैनी का वातावरण पैदा कर दिया है.”

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि म्याँमार की सेना को जल्द ही लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बहाल करना होगा और चुने गए प्रतिनिधियों को सत्ता वापिस सौंपनी होगी. 

“सैन्य नेतृत्व को लोगों की अभिव्यक्ति के अधिकार और शान्तिपूर्ण ढंग से एकत्र होने के अधिकार का पूर्ण सम्मान और रक्षा सुनिश्चित करने होंगे.”

चुनाव नतीजों के बाद से तनाव 

विशेष रैपोर्टेयर ने हिरासत में लिये गए सभी बन्दियों को तत्काल रिहा किये जाने की माँग की है और प्रदर्शनकारियों या आम नागरिकों के ख़िलाफ़ बल प्रयोग से बचे जाने का अनुरोध किया है. 

सेना ने, अपनी कार्रवाई को, नवम्बर 2020 में हुए चुनावों में कथित अनियमिताओं और धाँधली के आरोपों के आधार पर सही ठहराया है. 

समाचारों के अनुसार, उन चुनावों में नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) पार्टी की चुनावों में भारी जीत हुई थी. 

अनेक सांसद नज़रबन्द कर दिये गए हैं जबकि एनएलडी नेता आँग सान सू ची और अन्य वरिष्ठ नेताओं के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है. 

म्याँमार के व्यावसायिक नगर यंगून की सड़कों में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात है, और संचार नैटवर्क व इण्टरनेट व्यवस्था पर रोक लगा दिये जाने की ख़बरें हैं. 

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतन्त्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतन्त्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिये संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतन्त्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.