खेत से मुँह तक: भोजन व जलवायु कार्रवाई

जलवायु कार्रवाई पर संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि देशों में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति प्रणालियों में सुधार करने के लिये अगर कुछ विशिष्ठ उपाय किये जाएँ तो जलवायु लक्ष्य हासिल करने और वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने में मदद मिल सकती है.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, विश्व वन्यजीव कोष, EAT, और जलवायु फ़ोकस नामक संगठनों द्वारा तैयार की गई ये रिपोर्ट मंगलवार को जारी की गई जिसका नाम है – खाद्य प्रणालियों के लिये राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों में बेहतरी. रिपोर्ट ये भी बताती है कि देश ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के महत्वपूर्ण अवसर गँवा रहे हैं.
By adding diets and food loss and waste to national climate plans, policymakers can improve their mitigation & adaptation contributions from food systems by as much as 25%.More in our 🆕 report with @WWF, @EATforum & @Climate_Focus_ ⬇️#ClimateAction https://t.co/zXZEfOsxfR
UNEP
रिपोर्ट में छह ऐसे उपाय सुझाए गए हैं जो नीति-निर्माता अपने देशों की खाद्य प्रणालियों को राष्ट्रीय जलवायु रणनीतियों में समाहित करने के लिये कर सकते हैं.
उनसे खाद्य सुरक्षा बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है. इसमें खाद्य पदार्थ खेतों में तैयार होने की अवस्था से शुरू होकर खाने के लिये लोगों के हाथों में पहुँचने तक के स्तरों पर ग़ौर किया गया है.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम – यूनेप की अध्यक्ष के अनुसार बेशक, कोविड-19 ने खाद्य आपूर्ति व्यवस्थाओं की कमियाँ उजागर कर दी हैं, लेकिन इस महामारी ने ये भी दिखाया है कि कारोबार और लोग इस मुसीबत से बेहतर तरीक़े से निकलकर पुनर्बहाली के लिये भी तैयार हैं.
यूनेप की कार्यकारी निदेशक इन्गेर एण्डर्सन ने रिपोर्ट की ख़ास बातें पेश करते हुए कहा, “ये संकट हमें इस बारे में बिल्कुल नए सिरे से सोचने का अवसर भी प्रदान करता है कि हम खाद्य पदार्थों का उत्पादन और उपभोग किस तरह करते हैं.”
उन्होंने कहा, “उदाहरण के लिये, खाने-पीने की आदतों पर पुनर्विचार के ज़रिये खाद्य पदार्थों की बर्बादी को 50 प्रतिशत तक कम करने और वनस्पति आधारित ख़ुराकों की तरफ़ ज़्यादा रुख़ करने के रूप में जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने में एक दमदार औज़ार हाथ लग सकता है.”
“ये हम पर निर्भर है कि हम किस हद तक इस अवसर का फ़ायदा उठाते हैं और टिकाऊ खाद्य प्रणालियों को हरित पुनर्बहाली के केन्द्र में रखते हैं.”
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का कहना है कि इस समय स्थिति ये है कि खाद्य पदार्थों की बर्बादी को राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं में बड़े पैमाने पर नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है लेकिन नीति निर्माता चाहें तो इन दोनों क्षेत्रों को आपस में जोड़कर नुक़सान से बचने के रास्ते निकाल सकते हैं.
जलवायु परिवर्तन पर 2015 में हुए पैरिस समझौते के तहत, हर पाँच वर्ष में, देशों से अपेक्षा है कि वो अपने संवर्धित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों में संशोधन करेंगे या नए सिरे से सौंपेंगे.
इस तरह वर्ष 2020, नीति निर्माताओं के सामने ये अवसर है कि वो खाद्य प्रणालियों में बर्बादी और नुक़सान के समाधान तलाश करने के रास्ते निकालें, और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिये और ज़्यादा महत्वाकाँक्षी लक्ष्य तय करें. इसके एवज़ में जैव-विविधता, खाद्य सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य में बेहतरी होगी.
खाद्य प्रणालियाँ तमाम ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लगभग 37 प्रतिशत हिस्से के लिये ज़िम्मेदार हैं. ग़ौरतलब है कि खाद्य व्यवस्थाओं में खाद्य पदार्थों का उत्पादन, प्रसंस्करण, वितरण, तैयारी और उपभोग के स्तर या चरण शामिल हैं. इसका मतलब है कि इस क्षेत्र में काफ़ी ज़्यादा सुधार की गुंजाइश मौजूद है.
विश्व वन्य जीव कोष-अन्तरारष्ट्रीय के महानिदेशक मार्को लैम्बरटिनी ने तमाम देशों की सरकारों का आहवान करते हुए कहा कि वो वर्ष 2020 में संशोधित ये नए सिरे से सौंपे गए एनडीसी में जलवायु और वनस्पति आधारित खाद्य प्रणालियों को ज़्यादा अपनाएँ.
उन्होंने कहा, “हम अपने खाद्य पदार्थों का किस तरह उत्पादन व उपभोग करते हैं, उन आदतों में सुधार किये बिना, हम अपने जलवायु या जैव-विविधता लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते, जोकि खाद्य सुरक्षा हासिल करने और बीमारियों को होने से रोकने व अन्ततः टिकाऊ विकास लक्ष्य हासिल करने के प्रयासों की बुनियाद हैं.”
दुनिया भर में खाद्य प्रणालियों में महत्वपूर्ण सुधारों के लिये काम कर रहे ग़ैर-सरकारी संगठन EAT की संस्थापक और कार्यक्रारी अध्यक्ष डॉक्टर गुनहील्ड स्टॉर्डैलेन का कहना है कि खाद्य प्रणालियों को ठीक करने की मुहिम, केवल 2030 टिकाऊ विकास एजेण्डा और पैरिस समझौते के क्रिन्यान्वयन को समर्थन देने से कहीं आगे तक जाती है.
उनका कहना है, “खाद्य उत्पादन के ऐसे नए तरीक़े अपनाना जिनसे कम कार्बन उत्सर्जन हो, स्वस्थ व वनस्पति आधारित ऐसी ख़ुराक़ें अपनाना जो सस्ती व आसानी से उपलब्ध हों, और खाद्य पदार्थों की बर्बादी को कम से कम 50 प्रतिशत तक कम करना, ये सभी ऐसी कार्रवाइयाँ हैं जिन्हें सभी देशों को एनडीसी में शामिल करना होगा. इन सभी को अपनी जलवायु कार्रवाई योजनाओं व स्पष्ट महात्काँक्षाओं में शामिल करना होगा.”
डॉक्टर गुनहील्ड स्टॉर्डैलेन ने कहा, “हम चूँकि कार्रवाई दशक में प्रवेश कर रहे हैं,
आइये, इस दशक को सभी के लिये एक स्वस्थ, टिकाऊ और न्यायसंगत खाद्य भविष्य सुनिश्चित करने वाला दशक बनाएँ.”
रिपोर्ट में जिन 16 कार्रवाई बिन्दुओं का ज़िक्र किया गया है उनमें ज़मीन को इस्तेमाल करने और प्राकृतिक आवास को बदलने के तरीक़ों में बदलाव करना शामिल है. इन प्रयासों से 4.6 गीगाटन के बराबर कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन कम किया जा सकता है.
तुलनात्मक रूप में देखें तो, ग्रीन हाउस गैसों के कुल उत्सर्जन में खाने-पीने की चीज़ों की बर्बादी से होने वाला उत्सर्जन लगभग 8 प्रतिशत है. इस तरह खाद्य पदार्थों की बर्बादी कम करके हर साल लगभग 4.5 गीगाटन के बराबर कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन कम किया जा सकता है.
इसी तरह से, खाद्य उत्पादन के तरीक़ों में बदलाव करके और मवेशियों से पैदा होने वाले मीथेन उत्सर्जन में कमी करके, हर साल लगभग 1.44 गीगाटन के बराबर कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन कम किया जा सकता है.
जीवों पर आधारित ख़ुराकों से हटकर ज़्यादा स्वस्थ वनस्पति आधारित ख़ुराकें अपनाकर भी कार्बन उत्सर्जन में काफ़ी कमी लाई जा सकती है, जोकि साल भर में लगभग 8 गीगाटन कार्बन डाय ऑक्साइड के उत्सर्जन के बराबर है.
लेकिन इस समय किसी भी देश की राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं में इस तरह की टिकाऊ ख़ुराकों के बारे में बातचीत या प्रोत्साहन को कोई ख़ास जगह नहीं मिली हुई है.
जलवायु फ़ोकस की सह-संस्थापक और निदेशक शारलेट स्ट्रैक का कहना है, “अत्यधिक माँस के उपभोग में कमी करना, खाद्य पदार्थों के भण्डारण में सुधार लाना और खाद्य पदार्थों की बर्बादी कम करना हम सभी के स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के लिये अच्छा है.”
जलवायु फ़ोकस नामक ये संगठन दुनिया भर में सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के संगठनों और संस्थानों को जलवायु नीतियों के बारे में विशेषज्ञ राय मुहैया कराता है.
शारलेट स्ट्रैक ने कहा, “ये रिपोर्ट गतिविधियों की सूची व लक्ष्यों के ठोस उदाहरण पेश करके, नीति-निर्माताओं को खाद्य प्रणालियों को उनके देशों की जलवायु रणनीतियों में समाहित करने के लिये दिशानिर्देश मुहैया कराती है.”