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कोविड-19: बाल देखभाल संस्थानों पर भारी असर, करोड़ो बच्चे प्रभावित

चीन के एक प्री-स्कूल में बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं.
© UNICEF/Nyan Zay Htet
चीन के एक प्री-स्कूल में बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं.

कोविड-19: बाल देखभाल संस्थानों पर भारी असर, करोड़ो बच्चे प्रभावित

एसडीजी

 संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) का नया अध्ययन दर्शाता है कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण विश्व भर में चार करोड़ से ज़्यादा बच्चों को शुरुआती पढ़ाई-लिखाई से वंचित होना पड़ा है. महामारी से बचाव के ऐहतियाती उपायों के मद्देनज़र - औपचारिक स्कूली शिक्षा की शुरुआत से ठीक पहले वाले साल (प्री-स्कूल वर्ष) में बाल देखभाल संस्थानों और आरम्भिक शिक्षा केन्द्रों के बन्द होने के कारण यह अवरोध पैदा हुआ है. 

इटली के फ़्लोरेंस शहर में यूनीसेफ़ के इनोचैन्टी शोध कार्यालय ने इस अध्ययन के नतीजे जारी किये हैं जिनमें बाल देखभाल संस्थानों और बचपन में आरम्भिक शिक्षा प्रदान करने वाले केन्द्रों के हालात को समझने का प्रयास किया गया है.

साथ ही इन सुविधाओं के बन्द होने से परिवारों पर पड़ने वाले असर का भी विश्लेषण किया गया है.  

यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फ़ोर ने बताया, “कोविड-19 महामारी के कारण शिक्षा में व्यवधान बच्चों को अपनी शिक्षा की सर्वश्रेष्ठ सम्भव शुरुआत करने से रोक रहा है.”

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“बाल देखभाल और शुरुआती सालों में बाल शिक्षा एक ऐसी नींव का निर्माण करते हैं जिस पर बच्चों के विकास का हर पहलू टिका है. इस महामारी के कारण उस नींव पर गम्भीर ख़तरा है.” 

रिपोर्ट के मुताबिक तालाबन्दी से अनेक अभिभावकों को बाल देखभाल और वैतनिक रोज़गार के बीच सन्तुलन साधने में संघर्ष करना पड़ रहा है.  

पुरुषों की तुलना में महिलाएँ इससे ज़्यादा प्रभावित हैं और उन्हें पुरुषों की अपेक्षा् औसतन तीन गुना ज़्यादा समय देखरेख और घरेलू कामों में व्यतीत करना पड़ता है. 

इन केन्द्रों के बन्द होने से छोटे बच्चों के परिवारों के लिए एक गहरा संकट भी उजागर हुआ है, विशेषत: निम्न और मध्य आय वाले देशों में,जहाँ पहले से ही सामाजिक सुरक्षा सेवाओं का अभाव था. 

बच्चों को एकीकृत सेवाएँ प्रदान करना, जैसेकि लाड़-प्यार, सुरक्षा, प्रोत्साहन और पोषण अहम है, और इसके साथ-साथ उन्हें सामाजिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक (Cognitive) कौशल विकसित करने में मदद मिलती है.

कोविड-19 से पहले महँगी, ख़राब गुणवत्ता वाली या पहुँच से बाहर चाइल्ड केयर और शुरुआती बाल शिक्षा केन्द्रों की वजह से अभिभावकों को अपने छोटे बच्चों को ऐसे स्थानों पर छोड़ना पड़ता था जहाँ प्रोत्साहन या समुचित देखरेख की कमी है. 

पाँच साल की उम्र के साढ़े तीन करोड़ से ज़्यादा बच्चे अक्सर किसी वयस्क की निगरानी के बिना ही रहते हैं.  

166 देशों में से आधे से भी कम देश कम से कम एक साल के लिये ट्यूशन-मुक्त प्राथमिक कार्यक्रम प्रदान करते हैं, जबकि निम्न आय वाले देशों में यह आँकड़ा 15 फ़ीसदी से भी कम है. 

घर पर रहने के लिये मजबूर बच्चों को अक्सर खेलने या फिर सीखने के लिये माहौल नहीं मिलता जबकि उनके स्वस्थ विकास के लिये यह बेहद आवश्यक है.

54 निम्न और मध्य आय वाले देशों में तीन से पाँच साल की उम्र के 40 प्रतिशत से ज़्यादा बच्चों को किसी वयस्क से सामाजिक-भावनात्मक या प्रेरणादायी प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है.

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बाल देखभाल केन्द्र और शुरुआती शिक्षा के विकल्पों के अभाव से अनौपचारिक सैक्टर में कार्य कर रहे अभिभावकों को, (विशेषत: महिलाएँ) अपने बच्चों को कामकाज के स्थानों पर अपने साथ लाने के लिये मजबूर होना पड़ता है.  

अफ़्रीका में हर दस में से 9 महिलाएँ और एशिया-पैसेफ़िक में हर दस में 7 महिलाएँ अनौपचारिक सैक्टर में काम करती हैं और सामाजिक संरक्षा योजनाएँ उनके लिये उपलब्ध नहीं है. 

अभिभावकों को भरोसे की कमी वाले और बेहद ख़राब वेतन वाले रोज़गारअपनाने पड़ते हैं और फिर वे उनमें फँसकर ग़रीबी के गर्त में धँसे रहते हैं.

किफ़ायती, गुणवत्तापरक बाल देखभाल केन्द्र और बचपन में शुरुआती शिक्षा से परिवारों के विकास और सामाजिक जुड़ाव वाले समाजों का निर्माण करने में मदद मिलती है. 

शोध में सरकारों व नियोक्ताओं (Employers) के लिये दिशानिर्देश जारी किये गए हैं ताकि इस सम्बन्ध में नीतियों को बेहतर बनाया जा सके और सभी बच्चों को उच्च-गुणवत्ता वाले, उम्र के अनुरूप, किफ़ायती और सुलभ देखभाल केन्द्र उपलब्ध कराए जा सकें.