कोविड-19: स्वास्थ्य प्रणालियों पर बोझ से बाल स्वास्थ्य के लिए गहराया संकट

वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण दुनिया के अनेक देशों में स्वास्थ्य प्रणालियों पर बोझ बढ़ा है और ज़रूरी सेवाओं में व्यवधान आया है. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने गम्भीर हालात के मद्देनज़र आशंका जताई है कि तत्काल उपायों के अभाव में अगले छह महीनों के दौरान हर दिन पॉंच साल से कम उम्र के छह हज़ार बच्चों की अतिरिक्त मौतें हो सकती है जबकि इन्हें टाला जा सकता है. बच्चों को राहत प्रदान करने के लिए यूएन एजेंसी ने एक अरब 60 करोड़ डॉलर की रक़म जुटाने की अपील की है.
यूनीसेफ़ ने इससे पहले मार्च 2020 में 65 करोड डॉलर की राहत के लिए अपील जारी की थी लेकिन राहत सामग्री की बढ़ती क़ीमतों और उसके परिवहन की लागत में बढ़ोत्तरी के कारण अपील का दायरा बढ़ाकर डेढ़ अरब किया है.
The #COVID19 pandemic is a health crisis which is quickly becoming a child rights crisis.@UNICEF is appealing for US$1.6 billion to help us respond to the crisis, recover from its aftermath, and protect children from its consequences. https://t.co/2CscJOuQ4T
unicefchief
यूएन एजेंसी ने कहा है कि वैश्विक महामारी स्वास्थ्य संकट के अलावा तेज़ी से बाल अधिकारों के संकट में तब्दील हो रही है.
अगले छह महीनों में टाली जा सकने वाली हर दिन इन आशंकित छह हज़ार अतिरिक्त मौतों का यह अनुमान ‘जॉन हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ़ पब्लिक हैल्थ’ के शोधकर्ताओं के एक विश्लेषण पर आधारित है जो ‘लान्सेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल’ में प्रकाशित हुआ है.
कम और मध्य आय वाले 118 देशों में हालात के विश्लेषण में तीन परिदृश्य उभरे हैं जिनमें सबसे ख़राब परिस्थितियों से ये आँकड़े लिए गए हैं.
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फ़ोर ने कहा, “स्कूल बन्द हैं, अभिभावकों के पास काम नहीं है और परिवारों पर दबाव बढ़ रहा है.”
“कोविड-19 के बाद की दुनिया की कल्पना करते समय इस धनराशि से हमें संकट से निपटने, उससे उपजे हालात और बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव से निपटने में मदद मिलेगी.”
यूएन एजेंसी प्रमुख ने कहा कि पाँच साल की उम्र से पहले ही बच्चों की मौतों के आँकड़ों में बढ़ोत्तरी पिछले कई दशकों में पहली बार होगी और महिलाओं व बच्चों को इस वायरस की भेंट चढ़ने से रोका जाना होगा.
नियमित टीकाकरण सहित अन्य ज़रूरी सेवाओं की सुलभता करोड़ों बच्चों के लिए पहले ही प्रभावित हो चुकी है जिससे उनके जीवन पर संकट खड़ा हो गया है.
यूनीसेफ़ के एक विश्लेषण के अनुसार दुनिया भर में 18 वर्ष से कम आयु वर्ग में 77 फ़ीसदी बच्चे उन 132 देशों में रह रहे हैं जहाँ कोविड-19 के कारण आवाजाही पर पाबंदियाँ हैं.
यूएन एजेंसी ने बताया कि गतिविधियों पर पाबन्दी, स्कूल बन्द होने और अलग-थलग पड़ जाने का मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर हुआ है और इससे नाज़ुक हालात में रह रहे युवाओं में तनाव का स्तर और बढ़ सकता है.
उन्होंने कहा कि आवाजाही पर पाबन्दियों और बिगड़ती सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था में रह रहे बच्चों का हिंसा व उपेक्षा का शिकार बनने की आशंका ज़्यादा है.
महिलाओं व लड़कियों के लिए यौन व लिंग आधारित हिंसा का जोखिम भी बढ़ गया है.
यूनीसेफ़ के मुताबिक कई मामलों में शरणार्थी, प्रवासी और घरेलू विस्थापित बच्चों की संरक्षण और अन्य सेवाओं तक पहुँच नहीं है और उन्हें भेदभाव व विदेशियों के प्रति नापसन्दगी जैसे माहौल का सामना करना पड़ रहा है.
“हम देख चुके हैं कि यह महामारी विकसित स्वास्थ्य प्रणालियों वाले देशों में क्या कर रही है और हमें चिंता है कि उन देशों में क्या होगा जहाँ कमज़ोर प्रणाली और संसाधनों की उपलब्धता कम है.”
मानवीय संकटों से जूझ रहे देशों में यूएन एजेंसी संक्रमण के फैलाव और उसके बच्चों, महिलाओं व निर्बल समुदायों पर असर को कम करने के लिए प्रयासरत है.
इसके तहत स्वास्थ्य, पोषण, जल, साफ़-सफ़ाई, शिक्षा और संरक्षण सेवाओं को मुहैया कराने पर ज़ोर दिया जा रहा है.
अभी तक यूनीसेफ़ को कोविड-19 से मुक़ाबले के लिए 21 करोड़ डॉलर से ज़्यादा धनराशि मिली है और अतिरिक्त धनराशि से इन प्रयासों को और मज़बूती दी जाएगी.
यूनीसेफ़ के मुताबिक कोविड-19 से बचाव के उपाय और संदेश डेढ़ अरब से ज़्यादा लोगों तक पहुँचाए गए हैं जिनमें नियमित रूप से हाथ धोना, खाँसते या छींकते हुए कोहनी से मुँह ढँकना अहम हैं.
एक करोड़ से ज़्यादा बच्चों को जल, साफ़-सफ़ाई और स्वच्छता बरतने के लिए ज़रूरी सामग्री उपलब्ध कराई गई है और आठ करोड़ से ज़्यादा बच्चों को घर बैठे शिक्षा सुनिश्चित की जा रही है.
यूएन एजेंसी ने 52 देशों में 66 लाख दस्ताने, 13 लाख सर्जिकल मास्क और 34 हज़ार से ज़्यादा टेस्ट किटों के अलावा अन्य सामग्री भेजी है.
इसके अलावा एक करोड़ से ज़्यादा बच्चों व महिलाओं को ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाएँ और आठ लाख से ज़्यादा बच्चों, अभिभावकों को देखभाल प्रदान करने वाले कर्मियों को मानसिक स्वास्थ्य और मनो-सामाजिक सहारा उपलब्ध कराया गया है.