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कोविड-19: बाल मन में पनपी बेचैनियों को शांत करने के उपाय

यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि बच्चों को तनाव की अवस्था में ना छोड़ा जाए.
© UNICEF/Meng Cui
यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि बच्चों को तनाव की अवस्था में ना छोड़ा जाए.

कोविड-19: बाल मन में पनपी बेचैनियों को शांत करने के उपाय

स्वास्थ्य

दुनिया के 150 से ज़्यादा देशों में कोविड-19 के मामलों की पुष्टि होने से लोगों में भय, बेचैनी और अनिश्चितता का माहौल है और इस भावना से बच्चे भी अनछुए नहीं है. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने इस कठिन समय में बच्चों के मन में चल रही उथल-पुथल को समझने का प्रयास किया है. साथ ही अभिभावकों को बच्चों के साथ खुले  व सौम्य ढंग से बातचीत कर उनकी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए भी प्रोत्साहित किया है. 

कोरोनावायरस से बचाव के लिए दिन में ज़्यादा से ज़्यादा समय तक घर में बंद रहने की मजबूरी और सूचना माध्यमों पर कोविड-19 पर न्यूज़ रिपोर्टों की भरमार है. सूचनाओं व उनसे उपजती आशंकाओं की बाढ़ से बच्चे भी संशकित और बेचैन महसूस करने लगे हैं, जोकि स्वाभाविक है.

यूनीसेफ़ का कहना है कि ऑनलाइन माध्यमों व टेलीविज़न पर बच्चे जो कुछ भी देख रहे हैं उससे उनमें बेचैनी, तनाव और दुख घर कर सकता है.

यूएन एजेंसी का कहना है कि बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए और उनके मन में उठते सवालों का जवाब देने के लिए इस कठिन विषय पर बातचीत की जानी चाहिए. इस संबंध में एजेंसी ने कुछ ख़ास उपाय सुझाए हैं. 

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-    पहले बच्चों से पूछें कि वे इस विषय में कितना जानते हैं. अगर उनकी उम्र कम है और उन्हें इस महामारी के बारे में जानकारी नहीं है तो ज़्यादा बात करने की ज़रूरत नहीं है. लेकिन इस अवसर का लाभ उठाते हुए उन्हें साफ़-सफ़ाई की अहमियत के बारे में ज़रूर बताना चाहिए. 
-    ड्राइंग, कहानियों व अन्य गतिविधियों से बातचीत की शुरुआत करने का प्रयास होना चाहिए. उनकी चिंताओं को कम करके आंकने या ख़ारिज करने से बचना करना चाहिए. उन्हें बताना चाहिए कि इन परिस्थितियों में व्यग्रता महसूस करना स्वाभाविक है.
-    वैसे तो बच्चों को सही सूचना पाने का अधिकार है लेकिन उन्हें तनावग्रस्त होने से बचाना भी अभिभावकों की ज़िम्मेदारी है.
-    बच्चों की उम्र के अनुरूप भाषा का उपयोग किया जाना चाहिए, उनकी प्रतिक्रियाओं को परखा जाना चाहिए और उनकी बेचैनियों के प्रति संवेदनशीलता बरती जानी चाहिए.
-    अगर उनके किसी सवाल का जवाब आपके पास नहीं है तो अनुमान पर आधारित जानकारी देने के बजाय यूनीसेफ़, विश्व स्वास्थ्य संगठन या अन्य किसी विश्वसनीय वेबसाइट की मदद ली जानी चाहिए. 

बचाव के उपाय बताएँ

बच्चों को कोविड-19 संक्रमण से बचाने का सर्वश्रेष्ठ उपाय उन्हें नियमित रूप से साबुन से हाथ धोने की अहमियत को समझाना है.

हाथ धोने की प्रक्रिया को गानों व नृत्य के साथ मनोरंजक भी बनाया जा सकता है.

साथ ही उन्हें बताना ज़रूरी है कि छींक या खॉंसी को बाँह से ढकना चाहिए और बुखार या सांस लेने में तक़लीफ़ महसूस होने पर अभिभावकों को सूचित करना चाहिए.

टीवी या इंटरनेट पर लगातार ख़बरों के कारण बच्चे ख़ुद पर ख़तरा मंडराता महसूस कर सकते हैं इसलिए उन्हें तनावरहित करने का हरसंभव प्रयास होना चाहिए.

अगर स्थानीय इलाक़े में महामारी फैलने के मामलों का पता चले तो बच्चों को बताया जाना चाहिए कि उनको व उनके परिवार को सुरक्षित रखने के लिए अनेक लोग प्रयास कर रहे हैं और वे बीमार नहीं होंगे.

लेकिन फिर अगर वे बीमारी का शिकार हों, तो उन्हें बताना चाहिए कि घर पर आराम करना ही बेहतर है, और मुश्किल महसूस होने पर भी नियमों का पालन करना सभी के हित में है.

यह सुनिश्चित करना भी अहम है कि कोरोनावायरस पर बच्चे ना तो बुलीइंग (डराए-धमकाए जाने) का शिकार हो रहे हैं और ना ही ऐसा करने में शामिल हैं.

उनको बताया जाना चाहिए कि इस बीमारी का किसी के रंग-रूप, मूलस्थान या भाषा से कोई संबंध नहीं है. अगर कोई बुलीइंग की घटना का अनुभव करता है तो उसे जल्द से जल्द किसी वयस्क को सूचित करना चाहिए.

बच्चों को यह जानना आवश्यक है कि कठिन समय में लोग उदारता से एक दूसरे की मदद कर रहे हैं.

इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए यूनीसेफ़ का कहना है कि बीमारी पर क़ाबू पाने में जुटे स्वास्थ्यकर्मियों, वैज्ञानिकों और युवाओं की कहानियाँ बच्चों को बताई जानी चाहिए.

यह जानना इत्मीनान का एहसास कराता है कि सहानुभूतिपूर्ण रवैया रखने वाले लोग ज़रूरी कार्रवाई में जुटे हैं.

अपना व अपनों का ख़याल रखें

ख़बरों को सुनकर बच्चे उन पर आपकी प्रतिक्रिया जानना चाहेंगे, इसलिए अपना ख़याल रखना और यह प्रदर्शित करना अहम है कि आप स्थिति के नियंत्रण में हैं. इससे बच्चे आश्वस्त महसूस करते हैं.

यूनीसेफ़ के मुताबिक मन को हलका करने के लिए ऐसे कार्य करना बेहतर है जिनसे राहत महसूस होती हो और चिंता से उबरने का मौक़ा मिले. इसके लिए दिन में कुछ समय अलग से निश्चित किया जाना चाहिए.

यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि बच्चों को तनाव की अवस्था में ना छोड़ा जाए, इसलिए उनके साथ बातचीत समाप्त करने से पहले उनकी बेचैनी को परखें और समझने का प्रयास करें कि क्या वे आसानी से बात कर रहे हैं या स्वाभाविक रूप से सांस ले रहे हैं.

“अपने बच्चों को ध्यान दिलाइए कि आप उनके साथ किसी भी कठिन विषय पर बातचीत करने के लिए हर समय तैयार हैं.

उन्हें ये भी बताइए कि आप उनका ख़याल रखते हैं, आप उनकी बात ध्यान से सुन रहे हैं और जब भी वे चिंतित हों तो आप उनके पास हैं.”