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महिला क़ैदियों की संख्या वृद्धि और कोविड-19 के बचाव उपाय - सज़ा हुई और सख़्त

अफ़ग़ानिस्तान के हेरात में एक महिला क़ैदी खिड़की के पास खड़ी है.
© UNICEF/Sebastian Rich
अफ़ग़ानिस्तान के हेरात में एक महिला क़ैदी खिड़की के पास खड़ी है.

महिला क़ैदियों की संख्या वृद्धि और कोविड-19 के बचाव उपाय - सज़ा हुई और सख़्त

मानवाधिकार

विश्व भर में सात लाख से ज़्यादा महिलाएँ जेलों में बन्द हैं और पुरुष क़ैदियों की तुलना में उनकी संख्या तेज़ी से बढ़ रही है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में कोविड-19 महामारी के दौरान हिरासत में रखे जाने के हालात और महिला बन्दियों की सुरक्षा के उपायों पर गुरूवार को एक चर्चा के दौरान यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने सचेत किया है कि जेलों में भीड़-भाड़ बढ़ने से गम्भीर नुक़सान हुआ है. 
 

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) में फ़ील्ड ऑपरेशन एवँ टैक्नीकल सहयोग मामलों के अध्यक्ष जॉर्जेट गैगनन ने बताया, “विश्व में कुल क़ैदियों में 2 से 10 फ़ीसदी तक महिलाएँ हैं लेकिन उनकी संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, पुरुष क़ैदियों की संख्या में बढ़ोत्तरी से भी ज़्यादा तेज़ी से.

जॉर्जेट गैगनन ने क्षोभ जताते हुए कहा कि अनेक महिला बन्दियों को गिरफ़्तार किये जाने, पूछताछ और हिरासत के दौरान अमानवीय व अपमानजक बर्ताव सहना पड़ता है.

उनके कपड़े उतरवाए जाते हैं, शरीर की तलाशी ली जाती है, बलात्कार की धमकियाँ दी जाती हैं और बलात्कार किया भी जाता है, कथित कौमार्य परीक्षण कराया जाता है और यौन सम्बन्धी अन्य अपमान झेलने पड़ते हैं. 

जिनीवा में मानवाधिकार परिषद के सत्र के दौरान वक्ताओं ने कहा कि महामारी के कारण जेल में क़ैदियों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को ख़तरा बना हुआ है. संक्रमण का फैलाव रोकने के लिये उठाए गए क़दमों के कारण क़ैदियों की सजाएँ और भी ज़्यादा कठोर हो गई हैं.

मादक पदार्थों एवँ अपराध पर यूएन कार्यालय (UNODC) के एक पदाधिकारी स्वेन फ़ाइफ़र ने कहा कि जिन व्यवस्थागत चुनौतियों ने जेलों को दशकों से जकड़ रखा था, महामारी ने उन्हें सामने लाकर रख दिया है.

“जेलों में क्षमता से ज़्यादा क़ैदियों को ख़राब हालात में रखा जाना और प्रबन्धन क्षमता व संसाधनों की कमी अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुपालन में मुख्य अवरोध हैं.”

विश्व में कुल क़ैदियों में से केवल छह फ़ीसदी को ही कोविड-19 संक्रमण के फैलाव को रोकने के उपायों के तहत रिहा किया गया है. 

व्यवस्थागत सुधारों की माँग

ग़ैरसरकारी संगठन Penal Reform International की नीति व अन्तरराष्ट्रीय पैरोकारी मामलों की निदेशक ओलिविया रोप ने सरकारों से हिरासत में रखे गए लोगों के लिये तत्काल और प्रणालीगत सुधारों की पुकार लगाते हुए अन्तरराष्ट्रीय सहमति प्राप्त न्यूनतम मानदण्डों को पूरा करने का आहवान किया है.

इन्हें ‘मण्डेला नियम’ (Mandela Rules) और ‘बैंकॉक नियम’ (Bangkok Rules) के नाम से जाना जाता है.

उन्होंने कहा कि पिछले दशक में महिला बन्दियों की ज़रूरतों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में ‘बैंकॉक नियमों’ का बड़ा योगदान है जबकि एकान्तवात में रखे जाने की परिस्थितियों में सुधार, बेहतर स्वास्थ्य सेवा और जेल कर्मचारियों के लिए ट्रेनिंग में ‘मण्डेला नियमों’ की अहम भूमिका रही है.

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अन्य वक्ताओं ने ध्यान दिलाया कि महिला क़ैदियों की संख्या में बढ़ोत्तरी आपराधिक मामलों की वजह से नहीं बल्कि राजनैतिक फ़ैसलों के कारण हुई है. बताया गया है कि क़ैदियों के साथ अच्छा बर्ताव सुनिश्चित करने के प्रयासों में निवेश के अभाव में उनके रिहा होकर फिर जुर्म करने की आशंका बढ़ जाती है.

मादक पदार्थों एवँ अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ने क़ैदियों के अधिकारों के मुद्दे को लैंगिक परिप्रेक्ष्य की मदद से निपटने पर ज़ोर दिया ताकि कोई पीछे ना छूटने पाए. 

उन्होंने यूएन एजेंसी द्वारा संचालित ‘Global Prison Challenges’ कार्यक्रम और 40 सदस्य देशों में अन्य परियोजनाओं का हवाला देते हुए बताया कि बोलीविया में किस तरह महिला क़ैदियों ने निर्माण कार्य, धातु और बढ़ई कारीगरी सीखी और जेल से रिहा होने के बाद भी वो इन हुनरों का उपयोग कर सकती हैं.