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कोविड-19: जेलों व बंदीगृहों में रोकथाम के त्वरित उपायों की पुकार

हेती की एक जेल में बन्द एक लड़का बाहर की दुनिया से सम्पर्क बनाने की कोशिश करता हुआ, तस्वीर 2005 की है.
© UNICEF/Roger LeMoyne
हेती की एक जेल में बन्द एक लड़का बाहर की दुनिया से सम्पर्क बनाने की कोशिश करता हुआ, तस्वीर 2005 की है.

कोविड-19: जेलों व बंदीगृहों में रोकथाम के त्वरित उपायों की पुकार

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने बुधवार को एक चेतावनी जारी करते हुए कहा कि कोविड-19 अब बंदीगृहों, जेलों और आप्रवासन हिरासत केंद्रों को अपनी चपेट में ले रहा है. उन्होंने सरकारों से आग्रह किया है कि सलाख़ों के पीछे बंद लोगों को भी ध्यान में रखने की ज़रूरत है और महामारी पर क़ाबू पाने में ऐसे केंद्रों में काम करने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित किया जाना महत्वपूर्ण है.

यूएन में मानवाधिकार मामलों की प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने चिंता जताते हुए कहा, “अनेक देशों में हिरासत केंद्रों में भीड़भाड़ है, कुछ मामलों में तो यह ख़तरों भरा है.”  उन्होंने कहा कि शारीरिक दूरी क़ायम रखना और ख़ुद को अलगाव में रखना इन हालात में व्यावहारिक रूप से असंभव है.

लोगों को अक्सर साफ़-सफ़ाई के अभाव में रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है. स्वास्थ्य सेवाएं अपर्याप्त हैं या उपलब्ध नहीं है और ऐसे में वायरस के संवेदनशील समुदायों तक पहुंचने की आशंका बढ़ जाती है.

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कोविड-19 पर क़ाबू पाने के लिए सरकारें कड़े क़दम उठा रही हैं और उन्होंने अनुरोध किया है कि इस प्रक्रिया में जेल में बंद लोगों, मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों, नर्सिंग होम और अनाथालयों में रह रहे लोगों को नहीं भूला जाना चाहिए. 

“उन्हें नज़रअंदाज़ किए जाने के विनाशकारी नतीजे हो सकते हैं.”

सरकारों से पुकार लगाई गई है कि जल्द क़दम उठाकर हिरासत केंद्रों में लोगों की संख्या में कमी लाई जानी अहम है और इस सिलसिले में कुछ देशों ने पहले ही समुचित कार्रवाई की है. 

उन्होंने संबंधित प्रशासन से ऐसे रास्तों को तलाश करने की अपील की है जिससे उम्रदराज़, बीमारी का शिकार बंदियों और कम गंभीर मामलों में बंद अपराधियों को रिहा किया जा सके.

साथ ही महिलाओं, विकलांगों और नाबालिग बंदियों की स्वास्थ्य ज़रूरतों को भी ध्यान में रखा जाना होगा. 

यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को बिना किसी ठोस आधार के हिरासत में लिया गया है तो उसे रिहा किए जाने की ज़रूरत अब पहले से कहीं ज़्यादा है.

इनमें राजनैतिक बंदी और आलोचना करने या असहमतियाँ प्रकट करने के लिए हिरासत में लिए गए लोग भी शामिल हैं. 

रिहा किए जाने के बाद ऐसे लोगों की मेडिकल जॉंच होनी चाहिए और ज़रूरत पड़ने पर रिहाई के बाद भी स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित की जानी चाहिए. 

उन्होंने ध्यान दिलाया कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के तहत देशों का दायित्व बनता है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए पनपते ख़तरों की रोकथाम की जाए और ज़रूरतमंदों को ज़रूरी चिकित्सा उपलब्ध कराई जाए.

संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित ‘मानक न्यूनतम नियमों’ में बंदीगृहों में क़ैद लोगों की रक्षा के उपायों का उल्लेख है जिन्हें नेलसन मंडेला नियम भी कहा जाता है. 

उन्होंने कहा ऐहतियाती क़दमों के मद्देनज़र शारीरिक दूरी बरते जाने के उपायों को लागू करना आवश्यक है.

लेकिन साथ ही चिंता भी जताई कि कुछ देश इन नियमों की अवहेलना किए जाने पर लोगों को जेल में बंद करने की भी धमकी दे रहे हैं. 

मानवाधिकार प्रमुख ने इसे एक ऐसा क़दम बताया जिनसे जेलों में हालात और गंभीर होंगे और बीमारी के फैलने पर रोक लगाने में ज़्यादा मदद नहीं मिलेगी.

उन्होंने कहा कि किसी को भी जेल में बंद करने का विकल्प आख़िरी उपाय के तौर पर ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए. 

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन जल्द ही इस संबंध में दिशानिर्देशों के लिए एक अंतरिम दस्तावेज – COVID 19: Focus on persons deprived of their liberty – जारी करेंगे जिसमें यूएन एजेंसियों, सरकारों, राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं और नागरिक समाज के लिए मुख्य संदेश और कार्रवाई की सलाह उपलब्ध कराई जाएगी.