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कोविड-19 महामारी से यमन में मानवीय संकट और गहराया

यमन के अदन में स्थित एक क्वारन्टीन सेन्टर में डॉक्टर.
© UNICEF
यमन के अदन में स्थित एक क्वारन्टीन सेन्टर में डॉक्टर.

कोविड-19 महामारी से यमन में मानवीय संकट और गहराया

मानवीय सहायता

पिछले कई वर्षों से युद्ध से बदहाल यमन में वैश्विक महामारी कोविड-19 का फैलाव पहले से ही गम्भीर हालात को और विकट बना सकता है. देश में स्वास्थ्य सेवाएँ चरमरा रही हैं और अतिरिक्त वित्तीय मदद के अभाव में वे ढह जाँएगी. मानवीय राहत मामलों में समन्वय के संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ने यह चेतावनी शुक्रवार को जारी की है.

महामारी पर नज़र रख रहे विशेषज्ञों ने चिन्ता जताई है कि कई अन्य देशों की तुलना में यमन में नाज़ुक हालात में रह रहे लोगों में वायरस ज़्यादा तेज़ी से और व्यापक स्तर पर फैल सकता है जिसके घातक नतीजे होंगे.

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यूएन एजेंसी के प्रवक्ता येन्स लार्क ने जिनीवा में पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए बताया कि हालात बेहद गम्भीर हैं और देश में मानो स्वास्थ्य प्रणाली ढह गई लगती है. "पर्याप्त ऑक्सीजन उपलब्ध ना होने के कारण लोगों को वापिस लौटाना पड़ रहा है...उनके पास पर्याप्त निजी बचाव उपकरण नहीं हैं."

उनके मुताबिक यूएन एजेंसी यह मानकर चल रही है कि वायरस स्थानीय समुदाय में व्यापक स्तर पर फैल रहा है.

यमन में महज़ आधी संख्या में स्वास्थ्य केन्द्रों पर ही सुविधाएँ उपलब्ध रह गई हैं. ऐसे में देश में राहत अभियान के लिए इस साल के अन्त तक दो अरब डॉलर तक की मदद का उपलब्ध होना अहम बताया गया है.

इस सिलसिले में संयुक्त राष्ट्र और सऊदी अरब 2 जून को एक वर्चुअल संकल्प कार्यक्रम का आयोजन करेंगे ताकि मदद पहुँचाने के लिए संसाधन जुटाए जा सकें.

यूएन एजेंसी प्रवक्ता येन्स लार्क ने बताया कि हम एक वित्तीय चट्टान की दिशा में बढ़े चले जा रहे हैं.

"अगर हमें धन उपलब्ध नहीं होता है तो जो कार्यक्रम लोगों को जीवित रखे हुए हैं और कोविड से लड़ाई में अहम हैं, उन्हें बन्द करना पड़ेगा."

"और तब, दुनिया को देखना पड़ेगा कि सक्षम स्वास्थ्य प्रणाली के बग़ैर कोविड-19 से जूझ रहे किसी देश में क्या होता है."

आने वाले हफ़्तों में वित्तीय संसाधनों के अभाव में 30 प्रमुख यूएन कार्यक्रमों पर बन्द होने का जोखिम मँडरा रहा है. कोविड-19 से निपटने के काम में जुटे कार्रवाई दल अगले छह हफ़्तों तक ही काम जारी रख पाएँगे.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताज़ा आँकड़ों के मुताबिक यमन में संक्रमण के 184 मामलों की पुष्टि हुई है और 30 से ज़्यादा मौतें हुई हैं.

लेकिन आशंका जताई है कि मामलों की वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा है. बीमारी का पता लगाने के लिए किए जाने वाले परीक्षणों की संख्या कम है.

राहत के इन्तज़ाम

इसलिए राहत एजेंसियाँ यह मानकर चल रही हैं कि देश में बड़े पैमाने पर सामुदायिक फैलाव हो रहा है और लोगों से सम्पर्क करने, बीमारी की रोकथाम के उपायों की जानकारी फैलाने के साथ-साथ संक्रमितों को चिकित्सा मदद उपलब्ध करा रही हैं.

कोविड-19 के ख़तरे से निपटने के लिए यमन में स्वास्थ्य प्रणाली को तत्काल मदद मुहैया कराए जाने की ज़रूरत है.

अब तक 125 मीट्रिक टन राहत सामग्री भेजी गई है और साढ़े छह हज़ार मीट्रिक टन से ज़्यादा टेस्ट किटें, निजी बचाव उपकरणऔर आपात चिकित्सा कक्ष के लिए सामग्री अभी और भेजी जानी है.

सबसे ज़्यादा ज़रूरत ऑक्सीजन और निजी बचाव उपकरणों की बताई गई है.

साथ ही बचाव उपायों के तहत स्वास्थ्य, जल, साफ़-सफ़ाई और पोषण सेवाएँ मुहैया कराने वाले कार्यक्रमों का जारी रहना भी अहम होगा क्योंकि लाखों लोगों को संक्रमित होन से बचाने में उनकी प्रमुख भूमिका है.

गुरूवार को यमन के अदन शहर में एक यूएन विमान में अन्तरराष्ट्रीय स्टाफ़ पहुँचा है ताकि लोगों तक ज़रूरी मदद पहुँचाई जा सके.

इस बीच यमन के लिए यूएन के विशेष दूत मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने रमज़ान का पवित्र महीना पूरा होने से पहले अपने संदेश में सभी यमनवासियों को शुभकामना सन्देश भेजा है.

उन्होंने ईद के पर्व पर सभी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के लिए टिकाऊ शान्ति व स्थिरता और देश के बेहतर भविष्य की उम्मीद जताई है.

यमन में वर्ष 2014 से सऊदी अरब के समर्थन वाली राष्ट्रपति अब्द-रब्बू मन्सूर हादी सरकार और हूती विद्रोहियों के बीच युद्धक गतिविधियाँ चल रही हैं.

हूती लड़ाकों ने उत्तरी यमन को अपने क़ब्ज़े में लिया हुआ है और राजधानी सना पर भी नियन्त्रण जमा लिया जिससे यूएन की मान्यता प्राप्त सरकार को हटकर अदन  जाना पड़ा.

इसके बाद वर्ष 2015 से सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबन्धन और हूती लड़ाकों के बीच हिंसा जारी है लेकिन देश में हालात से यमन दुनिया का सबसे ख़राब मानवीय संकट बन गया है.

लाखों लोग हिंसा के अलावा, भुखमरी और बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की पीड़ा झेल रहे हैं.