यमन: कोविड-19 के माहौल में लोग डर, नफ़रत और विस्थापन की भी चपेट में

संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायता कार्यकर्ताओं ने कहा है कि यमन में कोविड-19 महामारी के फैलने के डर ने लोगों को नए सिरे से विस्थापित होने के लिये मजबूर कर दिया है. अनेक वर्षों से युद्धग्रस्त देश यमन में बहुत से लोगों को जीवित रहने की ख़ातिर अपने पास बचा-खुचा सामान बेचने के लिये भी मजबूर होना पड़ा है.
अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन एजेंसी ने यमन में मार्च के अन्त से लेकर 18 जुलाई तक दस हज़ार से भी ज़्यादा लोगों से बातचीत की है.
उन सभी ने कोविड-19 महामारी का संक्रमण फैलने और इसका प्रभाव सेवाओं और अर्थव्यवस्था पर पड़ने के डर व्यक्त किये हैं. इसी डर को उन्होंने संक्रमण वाले स्थानों से कहीं अन्य स्थान के लिये अपने पलायन का भी कारण बताया है.
अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन एजेंसी के प्रवक्ता पॉल डिल्लन ने जिनीवा में पत्रकारों से कहा, “अदन में सलाम नामक एक महिला ने हमारे स्टाफ़ को ऐसे लोगों के बारे में भी बताया जिन्होंने अपनी बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने के लिये अपने बिस्तर, कम्बल और बच्चों के कपड़े तक बेच दिये.”
“रोज़गार कमाने के लिये घरेलू कामकाज करने वाली विस्थापित महिलाओं को सड़कों पर उतरकर भीख तक माँगनी पड़ रही है क्योंकि उन्हें रोज़गार देने वाले इस डर में उन्हें अपने यहाँ काम पर नहीं रख रहे हैं कि वो महिलाएँ कोरोनावायरस की वाहक हैं.“
प्रवासन एजेंसी का कहना है कि विस्थापित लोगों के साथ इंटरव्यू के बाद मालूम हुआ है कि उनमें से कुछ लोग तो अदन और लाहज नामक इलाक़ों से उन्हीं प्रान्तों (गवर्नरेट) के उन अन्य इलाक़ों में पहुँच रहे हैं जहाँ संक्रमण के कम मामले देखे गये हैं; कुछ अन्य लोग अबयान प्रान्त के कुछ ज़िलों में पहुँच रहे हैं जबकि उस प्रान्त के कुछ अन्य इलाक़ों में लड़ाई जारी है.
प्रवक्ता ने कहा कि एक बड़ी चिन्ता जो केवल यमन में ही नहीं बल्कि मानवीय मानवीय सहायता में लगे कार्यकर्ताओं को अन्य देशों में भी देखी गई है, वो कोविड-19 महामारी के बारे में फैलाई जा रही झूठी जानकारी है.
“विभिन्न इलाक़ों में कोरोनावायरस के बारे में जो ग़लत जानकारी फैलाई जा रही है उसके ज़रिए नफ़रत फैलाने के स्पष्ट मामले देखने को मिले हैं और इनके तहत विस्थापित लोगों को हमलों का निशाना भी बनाया जा रहा है.”
अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन एजेंसी के ताज़ा आँकड़े बताते हैं कि जनवरी 2020 केबाद से लड़ाई व असुरक्षा के कारण एक लाख से भी ज़्यादा लोगों को अपने घर व स्थान छोड़कर अन्य स्थानों पर जाना पड़ा है. देश में लगभग छह वर्षों से जारी गृहयुद्ध में हिंसा के डर से ये लाखों लोग बेघर हुए हैं.
एजेंसी के प्रवक्ता ने कहा कि इन विस्थापित लोगों की वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा होने का अनुमान है क्योंकि ये आँकड़े प्रतिबन्धों के कारण देश के 22 प्रान्तों (गवर्नरेट) में से केवल 12 में ही एकत्र किया गया है. जबकि बहुत से अन्य लोग जो कोरोनावायरस के संक्रमण से बचने के लिये अन्य स्थानों पर जा रहे हैं, उनमें से बहुत से लोगों को दूसरी, तीसरी या चौथी बार विस्थापित होना पड़ रहा है.
यमन में कोविड-19 के संक्रमण के मामले अलबत्ता अभी कम ही दर्ज किये गए हैं, लेकिन ऐसा भी समझा जाता है कि अप्रैल में संक्रमण का पहला मामला सामने आने के बाद वास्तविक संख्या कहीं ज़्यादा होगी. क्योंकि देश में संक्रमण के परीक्षण की क्षमता बहुत कम है और स्थानीय आबादी में इसके इलाज को लेकर भी बहुत सी चिन्ताएँ व भ्रान्तियाँ व्याप्त हैं.
प्रवक्ता पॉल डिल्लन ने ध्यान दिलाया कि मार्च 2015 में राष्ट्रपति मंसूर हादजी की वफ़ादार सेनाओं और हूती मिलिशिया के बीच लड़ाई तेज़ होने के बाद से देश में लगभग आधे स्वास्थ्य सुविधा केन्द्र या तो बन्द करवा दिये गए हैं या फिर वो ध्वस्त हो गए हैं.
ध्यान रहे कि राष्ट्रपति मंसूर हादी को सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबन्धन का समर्थन हासिल है, दूसरी तरफ़ हूती विद्रोहियों को भी कुछ अन्तरराष्ट्रीय समर्थन हासिल है जो यमन पर नियन्त्रण स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं.
प्रवक्ता ने कहा, “अदन जैसे स्थानों पर स्थिति बहुत गम्भीर है जहाँ अस्पताल कोरोनावायरस के संक्रमण के सन्देहास्पद व्यक्तियों को बाहर से ही वापिस लौटा रहे हैं, इसके अलावा ऐसी भी ख़बरें मिली हैं कि बड़ी संख्या में क़ब्रें खोदी जा रही हैं.”
प्रवासन एजेंसी का कहना है कि यमन के इस संकट को विश्व की भीषणतम मुसीबत क़रार दिया जा चुका है, और देश में 10 में से लगभग 8 व्यक्तियों को मानवीय सहायता की सख़्त ज़रूरत है.
यमन में इस तबाही से प्रभावित लगभग 50 लाख लोगों को अप्रैल से दिसम्बर 2020 तक मानवीय सहायता उपलब्ध कराने के लिये जो लगभग साढ़े 15 करोड़ डॉलर की रक़म जुटाने की अपील की गई थी, उसमें से अभी लगभग आधी धनराशि ही एकत्र हुई है.
प्रवासन एजेंसी अपनी नौ सचल स्वास्थ्य व सुरक्षा टीमों के ज़रिये मानवीय सहायता गतिविधियाँ चला रही है. साथ ही देश भर में 36 स्वास्थ्य सुविधा केन्द्र व विस्थापितों के लिये 63 इकाइयाँ भी काम कर रही हैं.
प्रवक्ता ने कहा, “अनेक स्थानों पर पहुँचने में आ रही बाधाओं से राहत अभियानों पर बहुत नकारात्मक असर पड़ रहा है लेकिन फिर भी सहायता पहुँचाने की भरपूर कोशिशें जारी हैं.”