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'चेचक उन्मूलन से मिले सबक़' काम आएंगे कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में

चेचक से पीड़ित हर 10 में तीन मरीज़ों की मौत हो जाती थी.
WHO/W. WILKIE
चेचक से पीड़ित हर 10 में तीन मरीज़ों की मौत हो जाती थी.

'चेचक उन्मूलन से मिले सबक़' काम आएंगे कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में

स्वास्थ्य

ऐसे समय जब दुनिया वैश्विक महामारी कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में जुटी है, शुक्रवार को चेचक बीमारी के ऐतिहासिक उन्मूलन के 40 साल पूरे हुए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है कि चेचक पर विजय दर्शाती है कि सभी देश एक साथ आकर आपसी एकजुटता से कितना कुछ हासिल सकते हैं. 

ठीक 40 साल पहले 8 मई 1980 को विश्व स्वास्थ्य एसेम्बली ने आधिकारिक रूप से घोषणा की थी कि दुनिया और उसके सभी लोगों ने चेचक से मुक्ति हासिल कर ली है.  

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उन्मूलन से पहले चेचक ने मानवता को तीन हज़ार सालों तक जकड़े रखा और 20वीं शताब्दी में ही 30 करोड़ लोग उसका निवाला बने.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने वर्चुअल कार्यक्रम को संबोधित करते हुए चेचक उन्मूलन को इतिहास में सबसे बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य सफलता क़रार दिया. 

उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक उपलब्धियों से बहुत से सबक़ सीखने के लिए हैं जिनसे कोविड-19 और भविष्य में फैलने वाली महामारियों का मुक़ाबला करने में मदद मिल सकती है.  

यूएन एजेंसी के प्रमुख ने बताया कि चेचक के ख़िलाफ़ लड़ाई में जिन बुनियदी सार्वजनिक स्वास्थ्य औज़ारों का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया था, उनमें अधिकांश वही थे जिन्हें इबोला और कोविड-19 के ख़िलाफ़ भी इस्तेमाल किया गया है. 

बीमारी की निगरानी, मामलों का पता लगाना, संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाना, और सार्वजनिक जागरूकता प्रसार अभियान ताकि प्रभावित समुदायों को ज़रूरी जानकारी दी जा सके.

“चेचक उन्मूलन अभियान में एक अहम औज़ार ऐसा था जो कोविड-19 के लिए फ़िलहाल नहीं है. एक वैक्सीन.”

‘निर्णायक कारक’ 

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के मुताबिक चेचक के लिए टीकाकरण दुनिया की पहली वैक्सीन थी. इसका वायरस बेहद संक्रामक था जिससे बुखार होता था और अलग तरह चकत्ते पड़ जाते थे जो बढ़ते जाते थे.

संक्रमित होने वाले हर 10 मरीज़ों में से तीन की मौत हो जाती थी जबकि बच गए लोगों के शरीरों पर अक्सर हमेशा रहने वाले दाग़ रह जाते थे. कुछ मरीज़ों की आँखों की रौशनी चली जाती थी. 

कोविड-19 के फैलाव पर क़ाबू पाने के लिए यूएन स्वास्थ्य एजेंसी अनेक साझीदारों के साथ मिलकर एक वैक्सीन तैयार करने में जुटी है. लेकिन संगठन के प्रमुख डॉक्टर घेबरेयेसस ने बताया कि महज़ टीकाकरण किया जाना चेचक के अंत के लिए अपने आप में पर्याप्त नहीं था.

चेचक के लिए वैक्सीन दो शताब्दियाँ पहले, 1796 में, ही तैयार कर ली गई थी लेकिन उसे जड़ से उखाड़ फेंकने में 184 साल का समय लगा. 

“चेचक के ख़िलाफ़ लड़ाई में वैश्विक एकजुटता ने निर्णायक भूमिका निभाई.”

उन्होंने ध्यान दिलाया कि शीत युद्ध जब चरम पर था तब सोवियत संघ और अमेरिका साझा दुश्मन पर विजय पाने के लिए एक साथ आए.

दोनों देशों ने यह समझ लिया था कि वायरस ना तो राष्ट्रों की परवाह करते हैं और ना ही विचारधाराओं की.

यूएन एजेंसी प्रमुख के मुताबिक कोविड-19 को हराने के लिए वैसी ही एकजुटता की फिर ज़रूरत है जिसका निर्माण राष्ट्रीय एकता की नींव पर किया जाना होगा.     

उन्होंने कहा कि चेचक के उन्मूलन जैसी गाथाओं में प्रेरित करने की अविश्वसनीय ताक़त है और यह दर्शाता है कि एकजुटता के ज़रिए सभी राष्ट्र साझा दुश्मन के ख़िलाफ़ क्या हासिल कर सकते हैं.

संगठन के प्रमुख ने कोविड-19 को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक ऐसी निर्धारक चुनौती और वैश्विक एकजुटता का परीक्षण बताया जो वैश्विक स्वास्थ्य की दिशा बदल सकता है. 

उन्होंने कहा कि यह सभी के लिए एक स्वस्थ, न्यायसंगत विश्व बनाने, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज सुनिश्चित करने का सपना पूरा करने का अवसर है.

इस अवसर पर यूएन एजेंसी ने एक पोस्टल टिकट जारी किया है जिसे यूएन पोस्टल प्रशासन ने तैयार किया है.

इसके ज़रिए चेचक पर क़ाबू पाने के काम में अथक प्रयास करने वाले लाखों लोगों को याद और सम्मानित किया जा रहा है.