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गहराई से बैठे नस्लवाद से निपटने के लिये 'व्यवस्थागत उपायों की दरकार'

न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन इलाक़े में पुलिस हिन्सा के विरोध में मार्च निकालते प्रदर्शनकारी.
UN News/Daniel Dickinson
न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन इलाक़े में पुलिस हिन्सा के विरोध में मार्च निकालते प्रदर्शनकारी.

गहराई से बैठे नस्लवाद से निपटने के लिये 'व्यवस्थागत उपायों की दरकार'

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR0 की प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने एक चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि अफ़्रीकी मूल के व्यक्तियों के विरुद्ध क्रूरता और भेदभावपूर्व बर्ताव अब भी जारी है. उन्होंने कहा कि पुलिस हिंसा व क्रूरता से तब तक नहीं निपटा जा सकता, जब तक प्रणाली में समाए हुई नस्लवाद को दूर करने के लिये प्रणालीगत उपायों को नहीं अपनाया जाता. मानवाधिकार परिषद में शुक्रवार को अफ़्रीकी मूल के व्यक्तियों के ख़िलाफ़ पुलिस हिंसाक के मुद्दे पर चर्चा हुई है.

मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने सदस्य देशों से कार्रवाई का आहवान करते हुए कहा, कि कोई भी पुलिस अधिकारी या राज्यसत्ता का प्रतिनिधि या पदाधिकारी, क़ानून से ऊपर कभी नहीं होना चाहिये. 

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उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि पुलिस की ख़ामियों को तब तक दूर नहीं किया जा सकता, जब तक समाज और उसकी संस्थाओं में बैठे हुए व्यापक पूर्वाग्रहों से ना निपटा जाए.

यूएन मानवाधिकार कार्यालय की शीर्ष अधिकारी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका में एक पूर्व पुलिस अधिकारी पर, 2020 में, अफ़्रीकी मूल के एक अमेरिकी नागरिक जियॉर्ज फ़्लॉयड को जान से मारने के आरोप में मुक़दमे की कार्रवाई शुरू हुई है.

अमेरिका के मिनियापॉलिस शहर में, 25 मई 2020 को एक पुलिस अधिकारी ने, 46 वर्षीय, एक काले अफ़्रीकी व्यक्ति जियॉर्ज फ़्लॉयड की गर्दन पर आठ मिनटों से ज़्यादा समय तक अपना घुटना टिकाए रखा था, और हालत बिगड़ने पर बाद में पुलिस हिरासत में ही जियॉर्ज फ़्लॉयड की मौत हो गई थी. 

इस घटना के विरोध में नस्लीय, न्याय की माँग के समर्थन में अमेरिकी संगठन ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे.

जियॉर्ज फ़्लॉयड की मौत के एक महीने बाद, इस विषय पर चर्चा के लिये जिनीवा में मानवाधिकार परिषद का विशेष सत्र बुलाए जाने की भी माँग उठी थी.  

इस बैठक में प्रस्ताव 43/1 पारित किया गया, जिसमें सदस्य देशों से व्यवस्था में समाए नस्लवाद और अफ़्रीकी व अफ़्रीकी मूल के व्यक्तियों के ख़िलाफ़ क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघनों के मामलों को परखने की बात कही गई है. 

साथ ही नस्लीय भेदभाव के पीड़ितों को मरहम लगाने और ऐसे मामलों में जवाबदेही तय किये जाने पर भी ज़ोर दिया गया है.

न्याय तक पहुँच से दूर

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि पुलिस हिंसा का शिकार बहुत से अन्य काले पीड़ितों के परिवारों को, न्यायाधीश के सामने आकर न्याय मांगने का अवसर नहीं मिलता.

उन्होंने कहा कि अफ़्रीकी मूल के लोगों की मौतों के अनेक मामले कभी अदालत तक नहीं पहुँच पाते हैं. 

मिशेल बाशेलेट ने क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा मौत का शिकार हुए काले अमेरिकियों के परिजनों से मुलाक़ातें करने के बाद कहा कि मृतकों के परिजनों को, तथ्य नहीं देखने दिये गए.

साथ ही सामयिक व नियमित सूचना से वंचित रखा गया और ना ही अपने परिजनों के शव को लेने की अनुमति दी गई.

उन्होंने कहा कि इतने सारे परिवारों की पीड़ा को मान्यता या पहचान नहीं मिलती, उसे नकार दिया जाता है. 

बताया गया है कि लम्बी प्रक्रियाओं व देरी के साथ-साथ, पीड़ित परिवारों को, अधिकतर मामलों में, क़ानूनी मदद या वित्तीय और मनोवैज्ञानिक समर्थन भी नहीं मिल पाया.

व्यवस्थागत भेदभाव

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने जीवन के सभी आयामों में विषमताओं को और ज़्यादा गहरा करने वाले ढाँचों की पूर्ण समीक्षा का प्रस्ताव रखा है. मकान बेचने या किराए पर देने में भेदभाव से लेकर शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य देखभाल तक, जिससे ज़िन्दगियों पर असर पड़ता है. 

उन्होंने कहा कि क़ानून प्रवर्तन में नस्लीय अन्याय का अन्त करने के लिये, हिमशिला के एक नुकीले हिस्से को ही नहीं देखा जा सकता - सतह के भीतर के विशाल हिस्से को भी देखा जाना होगा.

मिशेल बाशेलेट ने अफ़्रीकी और अफ़्रीकी मूल के लोगों के ख़िलाफ़ व्यवस्थागत नस्लवाद, पुलिस क्रूरता और दण्डमुक्ति से निपटने के उपाय, जून 2021 में, मानवाधिकार परिषद के समक्ष पेश करने का वादा किया है.  

आगामी रिपोर्ट में नस्लीय न्याय के लिये हाल ही में व्यापक पैमाने पर आयोजित शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों पर सरकारों की ओर से कार्रवाई का भी विश्लेषण होगा.

ग़ौरतलब है कि इन विरोध-प्रदर्शनों के दौरान, क़ानूनी एजेंसियों पर प्रदर्शनकारियों, पत्रकारों व अन्य लोगों के ख़िलाफ़ अनावश्यक व अत्यधिक बल प्रयोग किये जाने के आरोप लगे थे.