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भारत: शिल्पा तटकरे को कहाँ से मिली उम्मीद की किरण

पिछले 20 सालों से शिल्पा एक सफ़ाईकर्मी के रूप में काम कर रही हैं.
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पिछले 20 सालों से शिल्पा एक सफ़ाईकर्मी के रूप में काम कर रही हैं.

भारत: शिल्पा तटकरे को कहाँ से मिली उम्मीद की किरण

महिलाएँ

भारत में सफ़ाई कर्मियों को अनौपचारिक अपशिष्ट अर्थव्यवस्था का हिस्सा होने के कारण, अक्सर सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इन्हीं मुद्दों पर ध्यान देने के लिए, भारत में यूएनडीपी ने उत्थान परियोजना चलाई है. सफ़ाई साथी, शिल्पा तटकरे के लिए, उत्थान परियोजना एक उम्मीद की किरण है...

 

शिल्पा तटकरे कहती हैं, “इस क्षेत्र की जानकारी नहीं होने के कारण, मैंने कभी बुरे वक़्त के लिए धन बचाकर नहीं रखा.” 

ऐसे में कम आमदनी होने की वजह से उन्हें अपने बच्चों की शिक्षा के लिए ऋण लेना पड़ा. "मुझे कहीं से भी वित्तीय मामलों की सलाह नहीं मिल पा रही थी."

शिल्पा तटकरे 20 वर्षों से अधिक समय से सफ़ाई साथी के रूप में काम कर रही हैं और आवासीय भवनों से कूड़ा एकत्र करती है. “मैंने बहुत कम उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया था. मेरी माँ भी यही काम करती थीं और उनके साथ जाकर मैंने भी यही काम सीख लिया. मुझे कभी शिक्षा हासिल करने का मौक़ा ही नहीं मिला.”

शिल्पा के पति को उनका यह काम करना नागवार गुज़रा, इसलिए शादी के बाद उन्होंने यह काम छोड़ दिया. लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ ही समय बाद उनके पति का निधन हो गया. तब तक वो एक लड़के व एक लड़की की माँ बन चुकी थीं. शिल्पा, अपने परिवार के भरण-पोषण की ज़िम्मेदारी अपने कन्धों पर पड़ने पर, फिर से इस काम पर वापस लौट गईं.

उसी दौरान, सफ़ाई साथियों के लिए उत्थान का एक संगठित क्षमता निर्माण सत्र आयोजित किया गया, जिससे शिल्पा को बैंक खाते चलाने व वित्त के बेहतर प्रबन्धन की जानकारी मिली.

उनका मानना ​​है कि यह परियोजना उनके जीवन में बिल्कुल सही समय पर आई है, “जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ रही है, मुझे अपने व अपने परिवार के भविष्य को लेकर अधिक चिन्ता सताने लगी है. यह कल्याणकारी कार्यक्रम, हमें आर्थिक रूप से सुरक्षित रहने में मदद करता है और परस्पर जुड़े अनगिनत लाभों के बारे में शिक्षित करता है, जिससे पहले हम अनजान थे.”

उन्हें लगता है कि अपने काम के ज़रिए वो समाज में भी उचित योगदान दे रही हैं.

दूसरों की भी काम का नुस्ख़े

“मेरे काम का एक हिस्सा, अन्य लोगों को अपशिष्ट के पृथक्कीकरण का महत्व समझाना भी है. मैं स्थानीय लोगों को कूड़े-कचरे के उचित निपटान के बारे में सलाह देती हूँ और समझाती हूँ कि गीले कचरे को सूखे कचरे से अलग करना लाभदायक क्यों है और ऐसा करने से श्रमिक समुदाय और पर्यावरण दोनों की मदद होती है."

वह बताती हैं कि महामारी के बाद, लोग ज़्यादा समझदार हो गए हैं और जैसा उन्हें बताया जाए वैसा करने के लिए तैयार रहते हैं. “मुझे विश्वास है कि हम अपने जीवन में मिले कई सबक़ों का श्रेय महामारी को दे सकते हैं. मुझे ख़ुशी है कि अब लोग हमारे काम को अधिक सम्मान देने लगे हैं."

उनके प्रयासों से अब उनके दोनों बच्चे शिक्षित होकर, समाज में योगदान दे रहे हैं. शिल्पा आज भी काम करती हैं. “अच्छे और बुरे समय में, मेरे काम ने हमेशा मेरा साथ दिया है. इसलिए मेरे लिए काम जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.”

शिल्पा अपने काम को लेकर उत्साहित रहती हैं और अपने बच्चों के लिए उत्कृष्ट उदाहरण पेश करना चाहती हैं.

मेरी बेटी बिक्री क्षेत्र में काम करती है, और मैं वो क्षण कभी नहीं भूल सकती, जब मैं पहली बार उसे काम करते देखने के लिए मॉल में गई थी. अपने पहनावे में वो एक़दम पेशेवर लग रही थी, और मुझे उस पर बहुत गर्व महसूस हुआ. जब मेरी बेटी ने मुझे बताया कि उनकी आदर्श मैं हूँ, तो मुझे बहुत बड़ी उपलब्धि का अहसास हुआ.”