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वैश्विक बेरोज़गारी में मामूली गिरावट आने की सम्भावना, नई ILO रिपोर्ट

लेसोथो की एक परिधान फ़ैक्ट्री में कर्मचारी सिलाई मशीन के नज़दीक खड़ी हैं.
© ILO/Marcel Crozet
लेसोथो की एक परिधान फ़ैक्ट्री में कर्मचारी सिलाई मशीन के नज़दीक खड़ी हैं.

वैश्विक बेरोज़गारी में मामूली गिरावट आने की सम्भावना, नई ILO रिपोर्ट

आर्थिक विकास

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के एक नए अध्ययन में इस वर्ष, विश्व भर में बेरोज़गारों की संख्या में इस वर्ष मामूली गिरावट आने का अनुमान व्यक्त किया गया है. मगर, रोज़गार अवसरों तक पहुँच में पसरी असमानता अब भी एक बड़ी समस्या है, विशेष रूप से निर्धन देशों में.

‘विश्व रोज़गार एवं सामाजिक दृष्टिकोण’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2024 में वैश्विक बेरोज़गारी की दर 4.9 प्रतिशत पर पहुँचने की सम्भावना है. 2023 में यह दर 5.0 आंकी गई थी.

यह आँकड़ा इस वर्ष जनवरी में 5.2 प्रतिशत के अनुमान में बदलाव को दर्शाता है. हालांकि, बेरोज़गारी में गिरावट का यह रुझान 2025 में रुकने की सम्भावना है, जब यह दर 4.9 प्रतिशत पर बनी रहेगी.

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यूएन श्रम एजेंसी की इस रिपोर्ट में रोज़गार अवसरों में व्याप्त कमी के प्रति सचेत किया गया है.

फ़िलहाल, विश्व भर में ऐसे लोगों की संख्या 40.2 करोड़ है, जो काम करना चाहते हैं, मगर उनके पास नौकरी नहीं है. इनमें 18.3 करोड़ वे लोग भी हैं, जिन्हें बेरोज़गार के रूप में गिना जाता है.

महिलाएँ, विशेष रूप से निम्न-आय वाले देशों में, रोज़गार अवसरों के अभाव से ग़ैर-आनुपातिक ढंग से प्रभावित होती हैं.

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन के महानिदेशक गिल्बर्ट हॉन्गबो ने कहा कि वैश्विक असमानताओं को घटाने के लिए किए गए प्रयासों के बावजूद, श्रम बाज़ार अब भी एक असमानता भरा क्षेत्र है, विशेष तौर पर महिलाओं के लिए.

समावेशी नीतियों की दरकार

निम्न-आय वाले देशों में, हर पाँच में से एक से अधिक महिलाएँ, 22.8 प्रतिशत, काम ढूँढ पाने में असमर्थ हैं, जबकि पुरुषों के लिए यह आँकड़ा 15.3 प्रतिशत है, यानि क़रीब हर सात में से एक पुरुष. 

इसके उलट, उच्च-आय वाले देशों में, महिलाओं के लिए यह आँकड़ा 10 प्रतिशत और पुरुषों के लिए 7.3 प्रतिशत है.

अध्ययन के अनुसार, उच्च-आय वाले देशों में महिलाएँ, पुरुषों द्वारा कमाए गए हर एक डॉलर के मुक़ाबले 73 सैन्ट्स कमाती हैं, निम्न-आय वाले देशों में यह घटकर 44 सैन्ट्स तक रह जाती है.

इस अन्तर की एक बड़ी वजह के रूप में पारिवारिक दायित्वों को गिना गया है. अवैतनिक देखभाल कार्य में महिलाओं का बहुत अधिक हिस्सा है, जोकि रोज़गार क्षेत्र में पसरी लैंगिक खाई का एक मुख्य कारण है.

यूएन एजेंसी प्रमुख हॉन्गबो का कहना है कि देशों को ऐसी समावेशी नीतियाँ अपनानी होंगी, जिसमें कार्यस्थलों पर सभी व्यक्ति की ज़रूरतों का ख़याल रखा जाए.

इस क्रम में, नीतियों व संस्थाओं की नींव में समावेशन व सामाजिक न्याय को स्थान देना होगा. और यदि ऐसा नहीं किया गया तो एक मज़बूत व समावेशी विकास का लक्ष्य पहुँच से दूर रह जाएगा.