शान्ति या युद्ध, दाइयाँ निरन्तर करती हैं सेवा
हर साल करोड़ों ज़िन्दगियाँ, दाइयों की महारत और देखभाल पर निर्भर होती हैं, मगर फिर भी दुनिया भर में दाइयों की क़िल्लत के कारण इस पेशे का आकार व दायरा अभूतपूर्व रूप से सिकुड़ रहा है. संयुक्त राष्ट्र की प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी – UNFPA ने 5 मई को मनाए जाने वाले अन्तरराष्ट्रीय दाई (Midwife) दिवस के अवसर पर रविवार को इस मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया है.
विशेष रूप से जलवायु संकट के दौरान, इस वर्ष दाइयों की महती भूमिका की तरफ़ ख़ास ध्यान खींचा गया है.
हर दो मिनट पर, दुनिया भर में कोई महिला या लड़की की ज़िन्दगी, गर्भ सम्बन्धी जटिलताओं के कारण ख़त्म हो जाती है.
UNFPA का कहना है कि इस संख्या में, जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ोत्तरी होने का जोखिम है. एजेंसी ने इन जोखिमों को कम करने में दाइयों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया है.
UNFPA की मुखिया डॉक्टर नतालिया कैनेम ने इस दिवस के अवसर पर एक सन्देश में कहा है, “जब संकट दस्तक देते हैं तो दाइयाँ ही सबसे पहले घटनास्थल पर मौजूद होती हैं, विशेष रूप से दूर-दराज़ के इलाक़ों में रहने वाले समुदायों में."
"वो जानती हैं कि गर्भवती महिलाओं की परिस्थितियाँ कुछ भी हों, शिशु का जन्म तो होगा ही – चाहे वो महिला अपने घर पर हो या वो किसी युद्धक स्थिति या फिर आपदा से बचने के लिए सुरक्षा की ख़ातिर भाग रही हो.”
दाइयाँ, शिशुओं को जन्म दिलाने के महत्वपूर्ण कार्य के साथ, अन्य लगभग 90 प्रतिशत यौन व प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएँ भी मुहैया कराती हैं.
जब युद्ध चोट करता है
महत्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल करने वालों के रूप में दाइयों की महत्ता, उस समय और बढ़ जाती है जब किसी स्थान पर टकराव या युद्ध की स्थिति बढ़ने की आशंका होती है. उनकी भूमिका किसी गर्भवती महिला के अपने बच्चे को जन्म देने के दौरान उसे सहायता मुहैया कराने से कहीं आगे बढ़ जाती है.
उनकी भूमिका भारी तनाव और दबाव का सामना कर रही महिलाओं और बच्चों को, मनोवैज्ञानिक समर्थन देने तक पहुँच जाती है.
संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस दिवस के अवसर पर एक विशेष वीडियो जारी किया है जिसमें ग़ाज़ा के अल-इमारती अस्पताल में एक दाई और मुख्य नर्स समर नाज़मी मुवाफ़ी को दिखाया गया है.
लगभग 500 महिला मरीज़ हर दिन अस्पताल के आपात कक्ष में आते हैं. समर नाज़मी मुवाफ़ी, उन मरीज़ों की देखभाल की ज़िम्मेदारी के भारी बोझ के बावजूद, उन पर ही ध्यान केन्द्रित करके, अपनी हिम्मत और हौसला बरक़रार रखती हैं.
नर्स समर नाज़मी मुवाफ़ी कहती हैं, “मैंने अपनी मुस्कुराहट बरक़रार रखना सीखा है. मैं हमेशा अपने मरीज़ों को बेहतर महसूस कराने के लिए अपनी मुस्कुराहट बरक़रार रखती हूँ.”
भारी क़िल्लत
दुनिया भर में लगभग 10 लाख दाइयों की भारी क़िल्लत है. चुनौतीपूर्ण कामकाजी परिस्थितियों, लैंगिक भेदभाव के कारण कम पारिश्रमिक और उत्पीड़न की ख़बरों ने, बहुत से लोगों को, दाइ के पेशे में दाख़िल होने से हतोत्साहित किया है.
UNFPA के वर्ष 2023 के आँकड़ों के अनुसार, हर साल लगभग 2 लाख 87 महिलाओं की मौत, अपने शिशुओं को जन्म देने के दौरान हो जाती है.
लगभग 24 लाख बच्चे जन्म के समय अपनी ज़िन्दगी खो देते हैं और उनके अलावा क़रीब 22 लाख बच्चे मृत जन्म लेते हैं.
यूएन यौन व प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी का कहना है कि दुनिया भर में दाइयों की समुचित सेवाएँ मिलने से, जच्चा-बच्चा की ऐसी मौतों को रोकने में मदद मिलती है जिन्हें सही चिकित्सा देखभाल मिलने से रोका जा सकता है.
दाइयों की संख्या और ज़रूरत के अन्तर को पाटने से, जच्चा-बच्चा की दो तिहाई मौतों को रोका जा सकता है, जिससे वर्ष 2035 तक लगभग 43 लाख ज़िन्दगियाँ बचाई जा सकेंगी.
UNFPA ने पहले अनेक देशों में जागरूकता बढ़ाई है और अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप, लगभघ साढ़े तीन लाख दाइयों को प्रशिक्षित किया है.