मध्य पूर्व में बिगड़ते हालात के बीच, यमन संकट को नज़रअन्दाज़ ना करने की अपील
यमन के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत हैंस ग्रुंडबर्ग ने सचेत किया है कि मध्य पूर्व क्षेत्र में गहराते तनाव के बीच, यमन में पहले से क़ायम संकट अब भूराजनैतिक घटनाक्रम व समीकरणों से भी प्रभावित हो रहा है.
उन्होंने सोमवार को सुरक्षा परिषद में सदस्य देशों को जानकारी देते हुए बताया कि वृहद क्षेत्रीय संकट की पृष्ठभूमि में यमन में नाज़ुक स्थिरता को नज़रअन्दाज़ करने के नतीजे जोखिम भरे हो सकते हैं.
इसके मद्देनज़र, उन्होंने यमन में शान्ति स्थापना के लिए अवसर पर मंडराते जोखिम से निपटने पर बल दिया.
विशेष दूत ग्रुंडबर्ग ने कहा कि यदि यमन की राजनैतिक प्रक्रिया को प्रतीक्षा कक्ष में छोड़ दिया गया और तनाव का यूँ बढ़ना जारी रहा, तो इसके विनाशकारी नतीजे हो सकते हैं. ना केवल यमन के लिए बल्कि वृहद क्षेत्र के लिए भी.
उन्होंने कहा कि ग़ाज़ा पट्टी में लड़ाई जारी है और इसलिए यहाँ तनाव गहराने का ख़तरा बना हुआ है. “इसराइल और ईरान से जुड़ा हालिया घटनाक्रम इस मामले की तात्कालिकता को रेखांकित करता है.”
बदतरीन हालात
हैंस ग्रुंडबर्ग ने ज़ोर देकर कहा कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के समर्थन से, सह-अस्तित्व के रास्तों की तलाश की जानी होगी, और इसके लिए भरोसा बढ़ाने, पारिस्परिक सुरक्षा का ख़याल रखना होगा.
इस बीच, यमन में हूती लड़ाकों – अंसार अल्लाह आन्दोलन -- द्वारा वाणिज्यिक व सैन्य जहाज़ों को निशाना बनाया जाना जारी है, जिसके जवाब में अमेरिका और ब्रिटेन ने हुदायदाह, हज्जाज, सना और ताइज़ में हमले किए हैं.
विशेष दूत ने रमदान के पवित्र महीने के दौरान पारस्परिक मेलमिलाप के अवसरों को याद किया, जिनका लाभ नहीं उठाया जा सका.
पिछले वर्षों में युद्धरत पक्षों ने युद्धविराम और बन्दियों को रिहा किए जाने पर सहमति जताई है, मगर इस वर्ष ऐसा नहीं हो पाया. बन्दी अब भी हिरासत में हैं और महिलाओं व बच्चों समेत आम लोगों का हताहत होना भी जारी है.
हैंस ग्रुंडबर्ग ने कहा कि आपसी मतभेद घटने और भरोसा बढ़ने के बजाय, युद्धरत पक्षों में दूरियाँ बढ़ रही हैं, जोकि परेशानी बढ़ाने वाली बात है.
मानवीय संकट
यमन में लम्बे समय से जारी राजनैतिक व सुरक्षा संकट के बीच, मानवीय हालात गम्भीर बने हुए हैं और हैज़ा व कुपोषण के मामले फिर से उभर रहे हैं.
देश की सर्वाधिक निर्बल आबादी, जिनमें महिलाएँ, लड़कियाँ, विस्थापित व हाशिए पर रहने वाले समुदाय हैं, अब भी गुज़र-बसर के लिए मानवीय सहायता पर निर्भर हैं.
लेकिन मानवीय सहायता योजना 2024 के लिए पर्याप्त मात्रा में रक़म नहीं जुट पाई है, जिससे राहत प्रयासों पर असर पड़ा है.
इस वर्ष के महीने बीतने के साथ अब तक केवल 10 प्रतिशत धनराशि का ही प्रबन्ध हो पाया है, जिसके मद्देनज़र उन्होंने रक़म का प्रबन्ध करने और ज़रूरतमन्दों तक जीवनरक्षक सहायता पहुँचाने की अपील की है.