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ऐतिहासिक सन्धि के 34 वर्ष बाद भी, बाल अधिकार ख़तरे में

दुनिया भर में टकरावों और युद्ध की स्थितियों में, बाल अधिकारों को व्यापक नुक़सान पहुँचा है.
© UNICEF/Anmar Rfaat
दुनिया भर में टकरावों और युद्ध की स्थितियों में, बाल अधिकारों को व्यापक नुक़सान पहुँचा है.

ऐतिहासिक सन्धि के 34 वर्ष बाद भी, बाल अधिकार ख़तरे में

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – UNICEF की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल ने सोमवार को कहा है कि एक ऐसी दुनिया में बाल अधिकारों को बरक़रार रखने के लिए, मज़बूत कार्रवाई की दरकार है, जहाँ बच्चे, टकरावों, बढ़ती निर्धनता और जलवायु प्रभावों के कारण, लगातार जोखिम में हैं.

कैथरीन रसैल ने, यह अपील, विश्व बाल दिवस को मनाने के अवसर पर जारी एक वक्तव्य में की है. बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (CRC) के पारित होने के अवसर का जश्न मनाने के लिए, हर साल विश्व बाल दिवस मनाया जाता है. यह कन्वेंशन, इतिहास में अभी तक सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत मानवाधिकार सन्धि है.

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कैथरीन रसैल ने कहा, “34 वर्ष पहले इस कन्वेंशन के पारित होने के बाद से, ऐसा कोई समय नहीं रहा है जब बाल अधिकारों के लिए इतना बड़ा ख़तरा उत्पन्न हुआ हो.”

निशाने के दायरे में बच्चे

कैथरीन रसैल ने कहा कि 1989 में हुई ये सन्धि, वैसे तो ये स्वीकार करती है कि लड़के और लड़कियों को समान, अटूट अधिकार हासिल हैं जिनके लिए, देशों की  सरकारों ने रक्षा करने और उन्हें बरक़रार रखने का वादा किया था, मगर दु”र्भाग्य से, आज के समय में बच्चे एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जो उनके अधिकारों की लगातार ज़्यादा से ज़्यादा दुश्मन होती जा रही है”.

उन्हेंने कहा कि टकरावों से प्रभावित बच्चों के अनुभव की तुलना में, अन्य कोई भी चीज़, अधिक स्वभाविक नहीं है.

यूनीसेफ़ का अनुमान है कि लगभग 40 करोड़ बच्चे, यानि हर 5 में से एक बच्चे, या तो युद्ध व टकराव वाले क्षेत्रों में रह रहे हैं, यहाँ वहाँ से बचकर निकल रहे हैं.

कैथरीन रसैल ने कहा, “बहुत से बच्चे घायल हो रहे हैं, बहुत से मारे जा रहे या बहुत से बच्चों का यौन शोषण हो रहा है. वो अपने परिजनों और मित्रों को खो रहे हैं. और कुछ बच्चों को, सशस्त्र गुट, अपनी युद्धक गतिविधियों में प्रयोग के लिए भर्ती कर रहे हैं.”

उन्होंने कहा कि बहुत से बच्चों को अनेक बार विस्थापित होना पड़ा है, जिस दौरान उन्हें अपने परिवारों से बिछड़ने के जोखिम का भी सामना करना पड़ा है, जिसमें उनकी शिक्षा के अहम साल व्यर्थ हो गए और उन्हें अपने समुदायों से दूर होना पड़ा है. 

एक अरब बच्चों पर, जलवायु जोखिम

उससे भी अधिक, ये देखना और भी परेशान करने वाला है कि ये हालात, बाल अधिकारों के लिए दरपेश अन्य तरह के ख़तरों के समानान्तर ही चल रहे हैं, जिनमें बढ़ती निर्धनता व असमानता, सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदाएँ, और जलवायु संकट.

यूनीसेफ़ के अनुसार, दुनिया भर में इस समय एक अरब से अधिक बच्चे, ऐसे देशों में रहते हैं, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के, ‘अत्यन्त उच्च जोखिम’ का सामना कर रहे हैं.

कैथरीन रसैल का कहना है कि, इसका मतलब है कि जैसे-जैसे हमारी पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही तो, दुनिया के बच्चों की लगभग आधी आबादी, ऐसी हानि का सामना करेगी, जिसकी भरपाई नहीं हो सकती.

उन्होंने कहा, “लगातार हिंसक होते तूफ़ानों में, बच्चों को अपने घर व स्कूल खोने पड़ सकते हैं... उन्हें गम्भीर कुपोषण व कमज़ोरी से तकलीफ़ें उठानी पड़ सकती हैं क्योंकि उनकी स्थानीय फ़सलें सूखे के कारण तबाह हो चुकी होंगी... या फिर वो अपनी ज़िन्दगियाँ, ताप लहरों या वायु प्रदूषण के कारण होने वाले न्यूमोनिया की भेंट चढ़ाने को मजबूर हो सकते हैं.” 

कैमरून सहित अनेक देश, युद्धों और टकरावों से प्रभावित हैं, जिनका बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़ता है.
UNOCHA