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अफ़ग़ानिस्तान: महिला मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को तत्काल रिहा किए जाने की मांग

अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल का एक दृश्य.
© Unsplash/Mohammad Husaini
अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल का एक दृश्य.

अफ़ग़ानिस्तान: महिला मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को तत्काल रिहा किए जाने की मांग

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने अफ़ग़ानिस्तान में उन दो महिला मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जल्द से जल्द रिहा किए जाने की मांग है कि जिन्हें तालेबान प्रशासन ने लगभग एक महीने पहले हिरासत में लिया था.

नेदा परवान और ज़ोलिया पारसी, दोनों मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और महिलाओं के पक्ष में मुहिम चलाने वाले एक संगठन से जुड़ी हैं. नेदा परवान के पति और ज़ोलिया पारसी के वयस्क बेटे को भी हिरासत में रखा गया है.  

मानवाधिकार विशेषज्ञों के अनुसार उनकी गिरफ़्तारियों का कोई कारण नहीं बताया गया है, मगर ऐसे हालात में गिरफ़्तार किए गए अन्य व्यक्तियों को पहले शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों में हिस्सा लेने के अधिकार का इस्तेमाल करने के आरोप में गिरफ़्तार किया जा चुका है.

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विशेष रैपोर्टेयर के समूह ने मंगलवार को जारी अपने वक्तव्य मे कहा कि नेदा परवान, ज़ोलिया पारसी और उनके परिजन को हिरासत से रिहा किया जाना एक ज़रूरी विषय है. 

“एक महीने से अधिक समय की हिरासत से, उनके शारीरिक व मानसिक कल्याण के प्रति हमारी चिन्ता बढ़ती जा रही है.”

इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और उनके परिजनों को गिरफ़्तार किए जाने के बाद एक महीने से अधिक समय बीत चुका है, मगर अभी तक ना तो उनके विरुद्ध कोई आरोप लगाए गए हैं और ना ही उन्हें अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया गया है. 

उन्हें क़ानूनी प्रतिनिधित्व के लिए किसी वकील से बात करने की भी अनुमति नहीं दी गई है. स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने शान्तिपूर्ण ढंग से एकत्र होने व किसी संगठन से जुड़ने के अधिकार की रक्षा करने की अहमियत को रेखांकित किया है. 

उनके अनुसार, यह अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून का एक बुनियादी पहलू है, और व्यक्तियों को केवल असहमति के स्वर जताने या अपनी राय व्यक्त करने के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए.  

“महिला अधिकार कार्यकर्ताओं पर विशेष रूप से जोखिम है, और उन्हें लैंगिक कारणों से निशाना बनाए जाने की आशंका अधिक है.”

पाबन्दियाँ हटाने का आग्रह

संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों के अनुसार, अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर तालेबान का वर्चस्व स्थापित होने के बाद से ही महिला अधिकारों के लिए संकट उपजा है, और देश में मानवाधिकारों की स्थिति बिगड़ी है.

यूएन विशेषज्ञों ने क्षोभ प्रकट किया है कि तालेबान द्वारा नागरिक समाज पर सख़्त पाबन्दियाँ लगाई जा रही हैं, और महिलाओं व लड़कियों की आवाज़ों को दबाया जा रहा है, जिसका सुन्न कर देने वाला असर हो रहा है.

इस क्रम में, उन्होंने तालेबान प्रशासन से अभिव्यक्ति की आज़ादी, आवाजादी की स्वतंत्रता और शान्तिपूर्ण ढंग से प्रदर्शनों में हिस्सा लेने के अधिकार का सम्मान करने का आग्रह किया है. 

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने हाल ही में, अफ़ग़ान-फ़्रेंच पत्रकार मोर्तज़ा बेहबूदी और शिक्षा क्षेत्र में सक्रिय नागरिक समाज संगठन ‘पेन पाथ’ के संस्थापक मतिउल्लाह वेसा की रिहाई का स्वागत किया है.

इस पृष्ठभूमि में, विशेष रैपोर्टेयर के समूह ने तालेबान प्रशासन से दोनों महिला मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और उनके परिवारजनों को तत्काल रिहा करने की अपील की है, और कहा कि उन्हें हिरासत में रखा जाना, किसी भी नज़रिये से न्यायसंगत नहीं है. 

मानवाधिकार विशेषज्ञ

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं. 

उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है. ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.

इस वक्तव्य पर दस्तख़त करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों के नाम यहाँ देखे जा सकते हैं.