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अफ़ग़ानिस्तान: महिलाधिकारों पर तालेबानी पाबन्दियाँ क्षोभपूर्ण, सुधार के लिए संवाद पर बल

अफ़ग़ानिस्तान में, कुछ महिलाएँ, एक जच्चा-बच्चा अस्पताल के बाहर अपनी बारी का इन्तज़ार करते हुए, जो देश में अपनी तरह का पहला अस्पताल है.
© UNICEF/Shehzad Noorani
अफ़ग़ानिस्तान में, कुछ महिलाएँ, एक जच्चा-बच्चा अस्पताल के बाहर अपनी बारी का इन्तज़ार करते हुए, जो देश में अपनी तरह का पहला अस्पताल है.

अफ़ग़ानिस्तान: महिलाधिकारों पर तालेबानी पाबन्दियाँ क्षोभपूर्ण, सुधार के लिए संवाद पर बल

शान्ति और सुरक्षा

अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि रोज़ा ओटुनबायेवा ने महिला अधिकारों व समावेशी शासन व्यवस्था के मुद्दों पर गहरे मतभेदों के बावजूद तालेबान नेताओं के साथ सम्पर्क व बातचीत जारी रखने का आग्रह किया है.

अफ़ग़ानिस्तान में विशेष प्रतिनिधि और यूएन सहायता मिशन की प्रमुख रोज़ा ओटुनबायेवा ने मंगलवार को सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए देश में मौजूदा प्रयासों के सकारात्मक दिशा में ना जाने पर चिन्ता जताई.

इसके मद्देनज़र, उन्होंने कहा कि तालेबान के साथ सम्पर्क व बातचीत के लिए रणनीति को नए सांचे में ढालने की बात कही. “सभी पक्षों में भरोसे की कमी, विश्वास निर्माण में एक गम्भीर अवरोध है, लेकिन संवाद के लिए दरवाज़े अब भी खुले हुए हैं.”

“यह क्षण, अपनी समस्याओं के बावजूद, एक अवसर है. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि संवाद के लिए दरवाज़े बन्द नहीं हुए.”

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रोज़ा ओटुनबायेवा ने कहा कि तालेबान द्वारा 50 से ज़्यादा आधिकारिक आदेश जारी किए गए हैं, जिनका लक्ष्य महिलाओं को सार्वजनिक जीवन व शिक्षा से दूर रखना है.

उनके अनुसार, इन आधिकारिक आदेशों के कारण तालेबान के साथ सम्पर्क व बातचीत कमज़ोर हुआ है. “महिलाओं के बहिष्करण को आगे बढ़ाने वाली नीतियाँ, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के लिए अस्वीकार्य हैं.”

यूएन मिशन (UNAMA) प्रमुख ने एक यूएन रिपोर्ट का उल्लेख किया, जोकि अफ़ग़ान महिलाओं के साथ किए गए 500 से अधिक इंटरव्यू पर आधारित है.

इनमें से 46 फ़ीसदी का कहना है कि तालेबान को किसी भी हालात में मान्यता नहीं दी जानी चाहिए. 

उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि क्या इन नीतियों के बावजूद तालेबान प्रशासन के साथ सम्पर्क जारी रखा जाए, या फिर इनकी वजह से उसे रोक दिया जाए. 

“यूएन मिशन का रुख़ है कि हमें सम्पर्क व बातचीत को जारी और संवाद बनाए रखना होगा.”

“संवाद कोई मान्यता नहीं है. इन नीतियों के लिए सम्पर्क व बातचीत स्वीकार्य नहीं है. इसके विपरीत: संवाद और सम्पर्क व बातचीत इसलिए है कि हम किस तरह से इन नीतियों को बदलने की कोशिश कर रहे हैं.”

नए सांचे में रणनीति

रोज़ा ओटुनबायेवा ने सुरक्षा परिषद को बताया कि सैद्धान्तिक रूख़ के साथ इस प्रक्रिया को पहले से कहीं अधिक ढांचागत व उद्देश्य के साथ आगे बढ़ाया जा सकता है.

इसके लिए पहले यह स्वीकार करना होगा कि तालेबान प्रशासन का दायित्व, सभी आयामों में अफ़ग़ान जनता का कल्याण सुनिश्चित करना है, विशेष रूप से महिलाओं के मामले में.

इसके अलावा, तालेबान की दीर्घकालिक चिन्ताओं से निपटने के लिए व्यवस्था को स्थापित किया जाना होगा, और विभिन्न अफ़गान धड़ों के बीच वैसा ही संवाद शुरू किया जाना होगा, जैसाकि अगस्त 2021 में तालेबान द्वारा सत्ता हथियाने से पहले था.

इसके समानान्तर, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा एक सामंजस्यपूर्ण रुख़ को अपनाया जाना होगा. 

भेदभाव की क़ीमत

महिला सशक्तिकरण के लिए प्रयासरत यूएन संस्था (UN Women) सीमा बाहउस ने सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधियों को बताया कि अफ़ग़ानिस्तान को तालेबान के आधिकारिक आदेशों की हर वर्ष एक अरब डॉलर की क़ीमत चुकानी पड़ती है, जोकि समय के साथ और बढ़ेगी. 

उन्होंने क्षोभ प्रकट किया कि इस वजह से, देश में हालात बद से बदतर हो रहे हैं, जबकि दो-तिहाई आबादी गुज़र-बसर के लिए सहायता पर निर्भर है, और दो करोड़ महिलाएँ व लड़कियाँ भूख की मार झेल रही हैं.

यूएन एजेंसी प्रमुख ने कहा कि महिलाओं की आवाज़ों को ध्यान में रखते हुए और यूएन चार्टर के सिद्धान्तों के अनुरूप, आगे का रास्ता तय किया जाना होगा.

उनके अनुसार, अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति को बयां करते समय यह ध्यान रखना होगा कि हम किस तरह का सन्देश भेज रहे हैं. 

“यह एक आर्थिक संकट है, एक मानसिक स्वास्थ्य संकट है, एक विकास संकट है, और भी बहुत कुछ. और इन सभी भिन्न-भिन्न पहलुओं को जो डोर बांधती है, वह अन्तर्निहित महिला अधिकारों का संकट है.”

यूएन वीमैन की कार्यकारी निदेशक ने सदस्य देशों के प्रतिनिधियों से अन्तरराष्ट्रीय क़ानून में लैंगिक रंगभेद को स्पष्ट रूप से संहिताबद्ध (codify) करने के प्रयासों को समर्थन देने का आग्रह किया.