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भारत: लैंगिक रूढ़िवादिता से निपटने पर लक्षित, सुप्रीम कोर्ट की नई हैंडबुक का स्वागत

नेपाल में एक महिला पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता की पुकार लगाते हुए.
©World Bank/Stephan Bachenheimer
नेपाल में एक महिला पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता की पुकार लगाते हुए.

भारत: लैंगिक रूढ़िवादिता से निपटने पर लक्षित, सुप्रीम कोर्ट की नई हैंडबुक का स्वागत

महिलाएँ

भारत में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ने न्यायिक कार्यवाही में लैंगिक रूढ़िवादिता से बचने और लैंगिक सम्वेदनशीलता को बढ़ावा देने में मार्गदर्शन के लिए, सर्वोच्च न्यायालय ने द्वारा एक नई विवरण पुस्तिका (हैंडबुक) जारी किए जाने का स्वागत किया है.

अगस्त महीने में जारी की गई इस हैंडबुक से, देश के न्यायाधीशों और वकीलों को अपने कामकाज में ऐसे शब्दों या वाक्यांशों के इस्तेमाल से बचने में मदद मिलेगी, जिनसे लैंगिक रूढ़िवादिता या दकियानूसी सोच को बढ़ावा मिलता हो. 

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इन गाइडलाइन में क़ानूनी शब्दावली व अदालती आदेशों के लिए कई सुझाव दिए गए हैं, जैसेकि वेश्या के बजाय यौन कर्मी, कामकाजी महिला के स्थान पर महिला, छेड़खानी के बजाय सड़क पर यौन उत्पीड़न समेत अन्य शब्दों का इस्तेमाल. 

भारत में संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था (UN Women) की प्रतिनिधि सूसन फ़र्ग्यूसन ने इस हैंडबुक को लैंगिक पूर्वाग्रह, विशेष रूप से यौन हमलों व घरेलू हिंसा के मामलों में, भारतीय न्यायपालिका के लिए एक सामयिक हस्तक्षेप क़रार दिया.

इस विवरण पुस्तिका में यह रेखांकित किया गया है कि भाषा, रूढ़िवादिता को गहरा बना सकती है, जिससे महिलाओं की न्याय तक पहुँच काफ़ी हद तक प्रभावित होती है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश, डी वाई चन्द्रचूड़ ने हैंडबुक की प्रस्तावना में कहा है कि इस विवरण पुस्तिका को जारी किए जाने का इरादा, अतीत में लिए गए अदालती निर्णयों की आलोचना करना नहीं है, बल्कि यह समझाना है कि किस तरह अनजाने में बार-बार पूर्वाग्रह का प्रयोग किया जाता रहा है.

उन्होंने कहा, "यह हैंडबुक, लैंगिक दृष्टि से क़ानूनी व्यवस्था को न्यायोचित बनाने की दिशा में नई गति प्रदान करेगी” ताकि सर्वजन को "समान एवं निष्पक्ष न्याय" सुनिश्चित हो सके.”

यूएन महिला संस्था, इस वर्ष भारत सरकार और सिविल सेवा स्तर पर लैंगिक दृष्टि से सम्वेदनशील भाषा को प्रोत्साहित करने के लिए, ‘बिल एंड मैलिन्डा गेट्स फ़ाउंडेशन की साझेदारी में, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के साथ मिलकर प्रशिक्षण कार्यशालाएँ आयोजित कर रही है. 

इसका उद्देश्य, समावेशिता को बढ़ावा देना, पूर्वाग्रहों से निपटना, आपसी विश्वास क़ायम करना और प्रभावी नीति परिणामों को बढ़ावा देना है. साथ ही, यह समानता के लक्ष्यों, संघर्ष की रोकथाम और वैश्विक विकास उद्देश्यों के भी अनुरूप है.

प्रशिक्षण के दौरान, भारत के सभी हिस्सों से आए प्रतिभागियों ने यह समझने की कोशिश की कि कितनी आसानी से उचित भाषा के उपयोग को कम करके आँका जा सकता है, फिर चाहे वो क़ानूनी फ़ैसलों में हो, चिकित्सीय निदान में या सरकारी निर्णयों में.

इस वर्ष के अन्त तक यूएन वीमैन, एक प्रशिक्षण मॉड्यूल को अन्तिम रूप देने के लिए भी प्रयासरत है, जिसे भर्ती अधिकारियों समेत, सम्पूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र के साथ साझा किया जाएगा.