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लीबिया: महिलाओं के लिए 'भेदभावपूर्ण यात्रा नीति' पर चिन्ता, वापिस लिए जाने की मांग

लीबिया की राजधानी त्रिीपोली के एक मुख्य चौराहे का दृश्य.
© UN Photo/Abel Kavangh
लीबिया की राजधानी त्रिीपोली के एक मुख्य चौराहे का दृश्य.

लीबिया: महिलाओं के लिए 'भेदभावपूर्ण यात्रा नीति' पर चिन्ता, वापिस लिए जाने की मांग

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने लीबिया में राष्ट्रीय एकता सरकार की उस भेदभावपूर्ण नीति पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है, जिसमें महिलाओं और लड़कियों के पुरूष अभिभावक या संरक्षण के बिना विदेश यात्रा करने पर मोटे तौर पर पाबन्दी लगा दी गई है.

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इस नीति के तहत, यदि महिलाओं और लड़किओं ने अतीत में बिना किसी पुरूष अभिभावक या संरक्षक के बिना यात्रा की है तो उनके लिए एक विस्तृत फ़ॉर्म में अपनी व्यक्तिगत जानकारी, यात्रा करने का कारण और यात्रा के पिछले रिकार्ड को भरना अनिवार्य है. 

इस प्रक्रिया से इन्क़ार करने या फ़ॉर्म ना भरने पर उनके लिए बाहर निकलने की अनुमति को नकारा जा सकता है.

विशेषज्ञों ने अपने वक्तव्य में कहा कि ये नीति ना केवल भेदभावपूर्ण है, बल्कि ये महिलाओं और लड़कियों की आवाजाही की स्वतंत्रता पर भी पाबन्दी लगाती है, उन छात्राओं पर भी जो विदेश में पढ़ने के लिए देश से बाहर यात्रा करती है. 

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इस भेदभावपूर्ण प्रक्रिया से महिलाओं और लड़कियों के मौलिक अधिकारों और स्वतन्त्रता पर होने वाले नकारात्मक असर पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है. 

उन्होंने सचेत किया कि यह लीबिया के “ग़ैर-भेदभाव, समानता और निजता के अधिकार पर लीबिया के लिए तय अन्तरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय दायित्वों के विपरीत है.

प्रशासनिक एजेंसियों से अपील

विशेष रैपोर्टेयर ने लीबिया की आन्तरिक सुरक्षा एजेंसी (ISA) द्वारा इन नीतियों का विरोध करने वाली महिलाओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को डराए धमकाए जाने की घटनाओं पर क्षोभ प्रकट किया है.

यूएन विशेषज्ञों ने स्थानीय प्रशासन से इस भेदभावपूर्ण अनिवार्यता को वापिस लेने और इस नीति के विरोध में आवाज़ उठाने वाली महिलाओं व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को डराने धमकाने, उनके उत्पीड़न और उन पर हमलों की घटनाओं को रोकने का आग्रह किया है.

उन्होंने कहा, “इस प्रतिबन्ध के कारण लीबिया में रह रही महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की स्थिति बद से बदतर हो जाने की आंशका है और यह एक ग़लत संदेश देता है.” 

“महिलाओं की समानता और गरिमा सुनिश्चित की जानी होगी.”

मानवाधिकार विशेषज्ञ

सभी स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, जिनीवा स्थित यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त किए जाते हैं, और वो अपनी निजी हैसियत में, स्वैच्छिक आधार पर काम करते हैं.

ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं, और ना ही उन्हें उनके काम के लिए, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.