वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

चरम मौसम घटनाएँ: 50 वर्षों में जान-माल की भीषण क्षति, समय पूर्व चेतावनी से जीवनरक्षा में मदद

बांग्लादेश के चिट्टागाँग में मौसम बारिश के कारण नियमित रूप से बाढ़ आती है.
WMO/Muhammad Amdad Hossain
बांग्लादेश के चिट्टागाँग में मौसम बारिश के कारण नियमित रूप से बाढ़ आती है.

चरम मौसम घटनाएँ: 50 वर्षों में जान-माल की भीषण क्षति, समय पूर्व चेतावनी से जीवनरक्षा में मदद

जलवायु और पर्यावरण

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने कहा है कि वैश्विक तापमान में मानव-जनित बढ़ोत्तरी से चरम मौसम घटनाओं ने और अधिक रफ़्तार पकड़ी है, और उनकी वजह से पिछले पाँच दशकों में 20 लाख लोगों की मौत और चार हज़ार अरब डॉलर से अधिक की आर्थिक हानि हुई है. मगर, समय पूर्व चेतावनी प्रणालियों के बेहतर होने से, लोगों की जीवनरक्षा करने और आर्थिक नुक़सान में कमी लाने में मदद मिली है.

WMO ने मौसम-जनित आपदाओं की मानवीय व आर्थिक क़ीमत पर यह नवीनतम जानकारी, सोमवार को जिनीवा में आरम्भ हुई विश्व मौसम विज्ञान कांग्रेस के लिए जारी की है.

इस कांग्रेस के दौरान, सर्वजन के लिए समय पूर्व चेतावनी प्रणाली पर यूएन की पहल पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा.

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यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी के अनुसार, मौसम, जलवायु और जल-सम्बन्धी जोखिमों के कारण वर्ष 1970 से 2021 के दौरान, विश्व को क़रीब 12 हज़ार आपदाओं का सामना करना पड़ा.

इन आपदाओं से विकासशील देश सर्वाधिक प्रभावित हुए, जहाँ जलवायु झटकों और चरम मौसम के कारण होने वाली हर 10 में से 9 मौतें और कुल आर्थिक हानि का 60 प्रतिशत दर्ज किया गया.

मौसम विज्ञान संगठन ने बताया कि सबसे कम विकसित देशों और लघु द्वीपीय विकासशील देशों को उनकी अर्थव्यवस्थाओं के आकार की तुलना में बहुत ऊँची क़ीमत चुकानी पड़ी है.

यूएन एजेंसी के महासचिव पेटेरी टालस के अनुसार, “सबसे संवेदनशील हालात का सामना करने वाले समुदायों को, दुर्भाग्यवश, मौसम, जलवायु और जल-सम्बन्धी जोखिमों का ख़मियाज़ा भुगतना पड़ता है.”

गहरी विषमताएँ

विश्लेषण के अनुसार, सबसे कम विकसित देशों में पिछली आधी सदी में अनेक आपदाओं की वजह से, सकल घरेलू उत्पाद की लगभग 30 प्रतिशत आर्थिक हानि हुई है.

लघु द्वीपीय विकासशील देशों में, हर पाँच में से एक आपदा के कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के क़रीब पाँच फ़ीसदी का नुक़सान हुआ है, जबकि कुछ आपदाओं की वजह से पूरी जीडीपी बर्बाद हो गई.

एशिया में चरम मौसम घटनाओं, जलवायु और जल-सम्बन्धी घटनाओं के कारण, पिछले 50 वर्षों में लगभग 10 लाख मौतें हुईं, जोकि सबसे अधिक मृतक संख्या है. इनमें से आधी से अधिक मौतें केवल बांग्लादेश में हुईं.

वहीं अफ़्रीका में, जलवायु आपदाओं से होने वाली सात लाख 33 हज़ार से अधिक मौतों में, 95 प्रतिशत से अधिक मौतों के लिए सूखा पड़ने की घटनाएँ ज़िम्मेदार थीं.

विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने ज़ोर देकर कहा है कि समय पूर्व चेतावनी प्रणाली के बेहतर होने और समन्वित आपदा प्रबन्धन से, प्राकृतिक आपदाओं के जानलेवा प्रभावों को कम करने में मदद मिली है.

समय पूर्व चेतावनी प्रणाली अहम

बताया गया है कि आपदाओं की वजह से, वर्ष 2020 और 2021 के दौरान दर्ज की गई मृतक संख्या, पिछले दशक के औसत की तुलना में कम है.

महासचिव पेटेरी टालस ने पिछले सप्ताह आए चक्रवाती तूफ़ान ‘मोका’ का उल्लेख किया, जो अपने साथ म्याँमार और बांग्लादेश के तटीय इलाक़ों में बड़ी तबाही लेकर आया.

इस तूफ़ान से सबसे निर्धन समुदाय सर्वाधिक प्रभावित हुआ है. उन्होंने ध्यान दिलाया कि अतीत में इस तरह की मौसमी आपदाओं के कारण, दोनों ही देशों में हज़ारों-लाखों मौतें हुई हैं.  

“समय रहते चेतावनी और आपदा प्रबन्धन की मदद से, ये विनाशकारी मृत्यु दरें अब इतिहास बन गई हैं.”

केवल एक तिहाई लघु द्वीपीय विकासशील देशों में ही समय पूर्व चेतावनी प्रणाली की व्यवस्था है. सबसे कम विकसित देशों में यह आँकड़ा 50 फ़ीसदी है.
UNDRR/Chris Huby

यूएन एजेंसी के अतीत के अध्ययन के अनुसार, किसी भी मौसमी जोखिम के बारे में, 24 घंटे पहले सूचना मिलने से सम्भावित क्षति में 30 प्रतिशत तक की कमी लाई जा सकती है.

इसके मद्देनज़र, समय पूर्व चेतावनी प्रणालियों को जलवायु परिवर्तन अनुकूलन में एक ऐसा उपाय बताया गया है, जिसे अपेक्षाकृत आसानी से हासिल किया जा सकता है, और उनमें किए गए निवेश से 10 गुना लाभ होता है.

कोई भी पीछे ना छूटने पाए

संयुक्त राष्ट्र की पहल के तहत, वर्ष 2027 तक सर्वजन को समय पूर्व चेतावनी प्रणालियों के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा गया है. यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने मिस्र के शर्म अल शेख़ में पिछले वर्ष नवम्बर में कॉप27 सम्मेलन के दौरान इसकी शुरुआत की थी.

फ़िलहाल, विश्व की केवल आधी आबादी के पास समय पूर्व चेतावनी की व्यवस्था है, जबकि लघु द्वीपीय विकासशील देश और सबसे कम विकसित देश बहुत पीछे हैं.

इस वर्ष, महासचिव गुटेरेश ने सभी यूएन एजेंसियों व साझीदार संगठनों के शीर्ष अधिकारों से, इस पहल के लिए तेज़ी से प्रयास किए जाने का आग्रह किया था.

पहली सूची में, गम्भीर जोखिम का सामना कर रहे 30 देशों को रखा गया है, जिनमें से लगभग आधे देश अफ़्रीका में हैं.