वनों पर यूएन फ़ोरम: जानने योग्य 5 बातें
दुनिया भर में जंगलों यानि वनों के टिकाऊ प्रबन्धन का मुद्दा, न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में सोमवार को शुरू हुए, वनों पर यूएन फ़ोरम में प्रमुखता हासिल कर रहा है. इस फ़ोरम में, दुनिया भर से हितधारक, सदस्य देशों से लेकर सिविल सोसायटी और साझीदारों तक के प्रतिनिधि, पृथ्वी के इस अति महत्वपूर्ण संसाधन पर विचार करने के लिए एकत्र हो रहे हैं. यहाँ पेश हैं - आपके जानने योग्य पाँच बातें...
1. वन, पृथ्वी के जीवन के लिए अनिवार्य हैं
पृथ्वी के लगभग 31 प्रतिशत क्षेत्रफल पर वन फैले हुए हैं, और उनमें दुनिया की लगभग 80 प्रतिशत ज़मीनी जैव-विविधता समाई हुई है. साथ ही ये वन, सम्पूर्ण वातावरण की तुलना में कहीं ज़्यादा कार्बन को सोखते हैं.
संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के अवर महासचिव ली जुनहुआ इस फ़ोरम के उदघाटन सत्र में कहा, “जंगल, पृथ्वी की सर्वाधिक मूल्यवान पारिस्थितिकी का एक अहम हिस्सा हैं.”
“वन, कुछ ऐसे समुदायों को सामाजिक व सुरक्षा कवच भी मुहैया कराते हैं, जो अपनी खान-पान ज़रूरतों और आजीविका के लिए, जंगलों पर निर्भर हैं.”
2. जंगल हमारे रहन-सहन और आजीविका का भी सहारा हैं
दुनिया भर में एक अरब 60 करोड़ से ज़्यादा लोग जीवित रहने, आजीविका, रोज़गार और आमदनी के लिए, जंगलों पर निर्भर हैं. दुनिया की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा, यानि क़रीब दो अरब लोग – भोजन पकाने और अपने घरों व स्थानों को गर्म रखने के लिए, अब भी लकड़ी पर निर्भर हैं.
यूएन आर्थिक व सामाजिक परिषद (ECOSOC) की अध्यक्ष लैशेज़ारा स्टोवा का कहना है कि जंगल, निर्धनता का मुक़ाबला करने, अच्छी परिस्थितियों वाले कामकाज, और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में अति अहम भूमिका निभाते हैं, जोकि टिकाऊ विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए अनिवार्य तत्व हैं.
3. स्वस्थ जंगलों से लोगों को स्वस्थ रखने में मदद
जंगल और वृक्ष हमें स्वच्छ वायु और पानी मुहैया कराते हैं, और हमें चाहें कहीं भी रहते हैं, हमारे रहन-सहन में मदद करते हैं. संक्रमण से फैलने वाली तमाम बीमारियों में, जानवरों से इनसानों में और इनसानों से जानवरों में फैलने वाली बीमारियों (Zoonotic) का हिस्सा, 75 प्रतिशत है, जो तब फैलती हैं जब जंगलों जैसे प्राकृतिक क्षेत्रों का सफ़ाया किया जाता है. लोगों, प्रजातियों और पृथ्वी ग्रह की ख़ातिर एकीकृत – एकल स्वास्थ्य – का रुख़ अपनाने के लिए, जंगलों की पुनर्बहाली और नया वृक्षारोपण, अनिवार्य हिस्सा है.
फ़ोरम के अध्यक्ष ज़ैफ़िरीन मनीरैटंगा ने मरुस्थलीकरण, भूक्षरण, और जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला करने में, जलवायु कार्रवाई की तमाम सम्बन्धित प्रक्रियाओं में सभी वन समुदायों की और ज़्यादा भागेदारी को प्रोत्साहित करते हुए कहा, “जंगल समाधान पेश करते हैं.”
4. जंगल लगातार जोखिम में हैं
प्रति वर्ष, लगभग एक करोड़ हैक्टेयर के क्षेत्रफल वाले जंगल ख़त्म हो जाते हैं, जो लगभग कोरिया गणराज्य के क्षेत्र के बराबर है. दुनिया भर के वन, अवैध या ग़ैर-टिकाऊ वर्गीकरण, जंगली आगों, प्रदूषण, बीमारियों और कीड़े-मकौड़ों, क्षय, और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसी गतिविधियों से जोखिम का सामना कर रहे हैं, जिनमें अत्यन्त गम्भीर तूफ़ान और मौसम सम्बन्धी अन्य घटनाएँ शामिल हैं.
5. जंगलों की पुनर्बहाली में छिपी है टिकाऊ भविष्य की कुंजी
ऐसा अनुमान है कि दुनिया भर में क्षय का शिकार हुई लगभग दो अरब हैक्टेयर भूमि ऐसी है जिसकी सम्भवतः पुनर्बहाली की जा सकती है.
क्षय का शिकार हो चुके जंगलों की पुनर्बहाली, वर्ष 2030 तक, वैश्विक वन क्षेत्र में लगभग 3 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी के, यूएन लक्ष्य प्राप्ति में बहुत अहम है.
ऐसा करने से बहुत से देशों को अपने यहाँ रोज़गार सृजित करने, मिट्टी क्षय रोकने, जलविभाजन बिन्दुओं के संरक्षण, जलवायु परिवर्तन शमन, और जैव-विविधता की संरक्षा करने में भी मदद मिलेगी. इस सन्दर्भ में ये कहना भी अहम होगा कि टिकाऊ विकास लक्ष्यों और वनों पर संयुक्त राष्ट्र की रणनैतिक योजना के वैश्विक वन लक्ष्यों की प्राप्ति में, टिकाऊ तरीक़े से प्रबन्धित वनों के योगदान का विचार, 2030 के टिकाऊ विकास एजेंडा के साथ सम्बन्ध पर आधारित है.
संयुक्त राष्ट्र वन संरक्षण के लिए किस तरह काम कर रहा है, इस बारे में और अधिका जानने के लिए यहाँ क्लिक करें.