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भारत: झारखंड की सामुदायिक पशु स्वास्थ्य कार्यकर्ता, ‘पशु सखियाँ’

भारत में जौहर परियोजना के तहत अब तक एक हज़ार से अधिक पशु सखियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है.
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भारत में जौहर परियोजना के तहत अब तक एक हज़ार से अधिक पशु सखियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है.

भारत: झारखंड की सामुदायिक पशु स्वास्थ्य कार्यकर्ता, ‘पशु सखियाँ’

आर्थिक विकास

भारत के झारखंड प्रदेश में विश्व बैंक समर्थित जौहर परियोजना के तहत महिलाओं को पशु स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के रूप में प्रशिक्षित किया जा रहा है. ये ‘पशु सखियाँ’ किसानों को पशुओं की देखभाल के तरीक़ों पर सलाह देती हैं, और उन्हें किसान समूहों व बाज़ारों से जोड़कर पशु-पालन व बिक्री में मदद करती हैं. ‘पशु सखी मॉडल’ को हाल ही में संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन और अन्तरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान ने, किसानों के लिए सेवा वितरण के शीर्ष 8 वैश्विक सर्वोत्कृष्ट मॉडल में से एक के रूप में चुना है.

भारत के मध्य-पूर्वी प्रदेश झारखंड के गुमला ज़िले में स्थित गाँव टेंगरिया में लगभग एक सप्ताह तक बादल छाए रहने और बारिश के बाद सितम्बर की चमकदार धूप खिली है. बत्तीस वर्षीय सोमती ने घर की साफ़-सफ़ाई करके, अपने दो बच्चों को स्कूल भेजा है, और अपने ससुराल के लोगों व पति को भोजन खिलाकर अभी निपटी हैं.

वह जल्दी-जल्दी अपनी वर्दी पहनती हैं - एक गहरे नीले रंग की साड़ी, मैचिंग रंग का ऐप्रिन, टोपी और फिर एक स्मार्टफोन व बक्सा लेकर, तेज़ क़दमों से चलते हुए गाँव के पूर्वी हिस्से का रुख़ करती हैं, जहाँ वो अगले चार-पाँच घंटे बिताएंगी.

सोमती एक प्रशिक्षित पशु सखी हैं जिसका शाब्दिक अर्थ है, जानवरों की दोस्त. वह लगभग 10 परिवारों का दौरा करती हैं, जिनके पास पशुधन है.ज़्यादातर परिवारों के पास बकरियाँ हैं. वह समय पर उनके पशुओं की स्वास्थ्य जाँच में मदद करती हैं, जिसमें टीकाकरण, कृमिनाशक व प्राथमिक चिकित्सा शामिल है. वह उन्हें पशुओं की स्वच्छता, प्रजनन और भोजन के बारे में सलाह देती हैं, जैसेकि खेत को कैसे साफ़ रखें व पशु अपशिष्ट का उचित प्रबन्धन कैसे करें.

प्रशिक्षण के बाद, पशु सखी न केवल जानवरों की देखभाल को लेकर सलाह देने का काम करती हैं, बल्कि वे किसानों को व्यावसायिक पशुपालन से जुड़े आर्थिक लाभों के बारे में भी समझाती हैं
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वो बताती हैं, “हमारे पास चार बकरियाँ थीं लेकिन हमें उनके पालन-पोषण, चारा खिलाने व प्रजनन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. फिर बकरियाँ एक अल्प आजीविका स्रोत ही थीं और हमें गुज़र-बसर करने के लिए संघर्ष करना पड़ता था. अब, इस प्रशिक्षण के बाद, मैं न केवल अपने पशुओं की अच्छी तरह से देखभाल करने में सक्षम हूँ, बल्कि मैं दूसरों की मदद भी कर पाती हूँ."

आठवीं कक्षा तक पढ़ाई करने वाली सोमती, 2018 में, विश्व बैंक द्वारा समर्थित, झारखंड सरकार द्वारा संचालित जौहर परियोजना – 'झारखंड ग्रामीण प्रगति के लिए अवसरों का दोहन' (The Jharkhand Opportunities for Harnessing Rural Growth) के तहत आयोजित, 30-दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में शिरकत करने के बाद पशु सखी बनीं.

सोमती, अंशकालिक काम करते हुए अब प्रतिमाह लगभग 10 से 20 हज़ार रुपए कमाती हैं, जबकि पहले वो प्रति माह केवल 3000 से 5000 प्रतिमाह ही अर्जित कर पाती थीं. सोमती, अपनी पारिवारिक आय में योगदान करने में सक्षम होने पर बहुत गर्व महसूस करती हैं. उनके दोनों बच्चे अब निजी स्कूल में पढ़ते हैं. वह कहती हैं, “मुझे ख़ुशी होती है जब ग्रामीण जन मुझे 'बकरी डॉक्टर' (बकरियों की डॉक्टर) कहते हैं. मैं और भी कड़ी मेहनत करके, आने वाले वर्षों में अपनी आय दोगुनी करना चाहती हूँ.”

झारखंड में पशुधन उत्पादकता में कमी

झारखंड का पशुधन उत्पादन सीमान्त और भूमिहीन किसानों के हाथों में है, जिसमें महिलाओं का हिस्सा 70 प्रतिशत से अधिक है. पिछले एक दशक में, देश भर में माँस और अंडों की क़ीमतों में लगभग 70-100 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. लेकिन कम आय वाले राज्य झारखंड में पशुपालक अपनी आय बढ़ाने के अवसर का उपयोग करने में असमर्थ रहे. न तो उन्हें पशुधन के प्रबन्धन के बारे में पर्याप्त जानकारी थी, न ही गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल और प्रजनन में सहायता तक उचित पहुँच हासिल थी. राज्य में पशु चिकित्सकों एवं पशुधन का अनुपात भी देश में सबसे कम था और सीमित संसाधनों व सेवाओं की बेहद कमी थी.

नतीजतन, पशुधन की उच्च मृत्यु दर - बकरियों में 30 प्रतिशत से अधिक, और सुअरों व कुक्कुटों में लगभग 80 प्रतिशत, जिसके कारण अंडे एवं माँस का उत्पादन कम होता था और किसान मात्र 800 रुपए प्रति माह ही कमा पाते थे.

पशु-पालन में किसानों की मदद

समुदाय के पशु स्वास्थ्य-सेवा कर्मियों  को मुर्गी, बत्तख, बकरी और सुअर जैसे जानवरों की देखभाल के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है.
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कृषक समुदाय की महिलाएँ आमतौर पर अपने घरों के पिछवाड़े वाले हिस्से में पशुओं को पालने का काम करती हैं. इसलिए, स्थानीय महिलाओं को 'पशु सखी' बनने के लिए प्रशिक्षित करना, पशुधन उत्पादकता और व्यापार में सुधार करने व किसानों की आय बढ़ाने के लिए सबसे उपयुक्त मॉडल समझा गया.

जौहर परियोजना के तहत, इन सामुदायिक पशु स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को मुर्ग़ी-मुर्ग़ों, बकरी और सूअर की देखभाल करने के तरीक़ों में प्रशिक्षित किया गया है. ये पशु सखियाँ, प्रशिक्षण के बाद न केवल पशुओं की देखभाल करने के बारे में सलाह देती हैं, बल्कि किसानों को बिक्री के लिए पशुधन पालन के आर्थिक लाभों के बारे में भी जागरूक करती हैं.

वे उन्हें उत्पादक समूहों और व्यापारियों से जोड़ती हैं, जिससे उन्हें अपनी उत्पाद बेचने के लिए बाज़ारों तक बेहतर पहुँच बनाने में मदद मिलती है.

परियोजना के तहत अब तक एक हज़ार से अधिक पशु सखियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है और सेवाओं का उच्च मानक सुनिश्चित करने के लिए, प्रशिक्षित लोगों में से 70 प्रतिशत को भारतीय कृषि कौशल परिषद (ASCI) ने प्रमाणित किया है.

पशु सखियाँ, किसानों के लिए नियमित फ़ील्ड प्रशिक्षण भी आयोजित करती हैं. चिटामी गाँव की मंजू, पिछले दो साल से मुर्ग़ी पालन कर रही हैं. मंजू अपने गाँव की एक पशु सखी से तीन दिन का संक्षिप्त प्रशिक्षण लेने के बाद, अब अपने मुर्ग़ी पालन फ़ॉर्म को बेहतर ढंग से प्रबन्धित करने में सक्षम हैं.

मंजू बताती हैं, "हमें पहले इस बात का ज्ञान नहीं था कि मुर्ग़ियों के लिए सही आहार क्या है, या बीमारी फैलने पर क्या करना चाहिए.अब मैं अपने आप छोटे-छोटे काम कर लेती हूँ और अगर मुझे मदद की ज़रूरत पड़े तो पशु सखी को फोन कर सकती हूँ.”

पशु सखियाँ, अपनी सेवाएँ मुहैया कराने वाले उद्यमियों के रूप में आय अर्जित करती हैं.

 अपने गांव की एक पशु सखी से तीन दिनों तक प्रशिक्षण लेने के बाद, मंजू अब अपने मुर्गी पालन केंद्र को बेहतर ढंग से प्रबंधित कर पा रही हैं.
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राँची ज़िले के खानबिता गाँव की तीस वर्षीय हसीबा ख़ातून, किसानों को मुर्ग़ियों के बच्चे बेचती हैं. वह लगभग 3 से 4 हज़ार चूज़ों का प्रजनन करके, लगभग एक लाख रुपए तक कमा लेती हैं.

वो पशुधन प्रबन्धन में 45 दिनों का अतिरिक्त प्रशिक्षण पूरा करके, एक मास्टर प्रशिक्षक भी बन गई हैं. स्नातक की डिग्री प्राप्त हसीबा, इससे पहले अपने तीन बच्चों की परवरिश के लिए सिलाई का काम करती थीं, जिससे वो केवल 4 से 5 हज़ार रुपए प्रति माह कमा पाती थीं.

हसीबा, मास्टर ट्रेनर के रूप में अक्सर प्रदेश के अन्य ज़िलों का दौरा करती रहती हैं. उनका कहना है, “मैं भाग्यशाली रही हूँ कि पहले एक पशु सखी के रूप में और अब एक मास्टर ट्रेनर के रूप में मुझे अपने पति का समर्थन मिला है. इस प्रशिक्षण से मेरी आय में तेज़ी से वृद्धि हुई हैं.”

परियोजना का असर

झारखंड में जौहर परियोजना में ASCI द्वारा प्रमाणित ऐसे 29 मास्टर ट्रेनर हैं.

विश्व बैंक समर्थित जौहर परियोजना लगभग 57 हज़ार लाभार्थी किसानों की मदद कर रही है, जिनमें से 90 प्रतिशत महिलाएँ हैं.

ब्रिटेन के ऑक्सफ़र्ड समूह द्वारा एक स्वतंत्र निगरानी एवं मूल्यांकन अध्ययन ने, घरों के पिछवाड़े वाले हिस्से में पशुधन उत्पादन से छोटे किसानों को लगभग 45 हज़ार रुपए प्रति माह की आमदनी की पुष्टि की है. यह जौहर परियोजना से पहले की औसत आय से 55 से 125 गुना अधिक की वृद्धि को दर्शाती है.

‘जौहर’ के तहत पशु सखी मॉडल को हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) और अन्तरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसन्धान संस्थान ने, किसानों के लिए सेवा वितरण के शीर्ष 8 वैश्विक सर्वोत्कृष्ट मॉडल में से एक के रूप में चुना.

यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ.