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स्तनपान कराने वाली माताओं की सुरक्षा के लिये त्वरित कार्रवाई की पुकार

नेपाल के पहले मानव दूध बैंक में, एक माँ, अपना स्तन-दूध दान कर रही है.
© UNICEF/Rabik Upadhayay
नेपाल के पहले मानव दूध बैंक में, एक माँ, अपना स्तन-दूध दान कर रही है.

स्तनपान कराने वाली माताओं की सुरक्षा के लिये त्वरित कार्रवाई की पुकार

स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक प्रमुख वैज्ञानिक ने शिशु दुग्ध फ़ॉर्मूला कम्पनियों के शोषणकारी विपणन दाँव-पेचों के ख़िलाफ़ तेज़ी से कार्रवाई करने का आहवान करते हुए, बुधवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा कि स्तनपान कराने वाली माताओं को तत्काल सहायता की आवश्यकता है.

प्रतिवर्ष 55 अरब डॉलर मूल्य के इस उद्योग व उनकी विपणन नीतियों पर, मशहूर पत्रिका लान्सेट में प्रकाशित श्रृंखला के लेखकों में से एक, निगेल रोलिंस ने कहा, "यह नया शोध, बड़ी फ़ॉर्मूला दूध कम्पनियों की विशाल आर्थिक और राजनैतिक शक्ति के साथ-साथ, गम्भीर सार्वजनिक नीति विफलताओं को उजागर करता है, जो लाखों महिलाओं को अपने बच्चों को स्तनपान कराने से रोकती हैं."

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उन्होंने कहा, "समाज के विभिन्न क्षेत्रों में माताओं को, जब तक वे चाहें, तब तक स्तनपान कराने के लिये, बेहतर समर्थन देने की आवश्यकता है. साथ ही, दुग्ध विपणन के शोषणकारी फ़ॉर्मूले से हमेशा के लिये निजात पाने के प्रयास जारी रखने चाहियें."

65 करोड़ को 'मातृत्व सुरक्षा' का अभाव

तीन-लेखों की इस श्रृंखला में भुगतान सहित पर्याप्त मातृत्व अवकाश की गारंटी, व स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों के अन्तर्गत स्तनपान के लिये अधिक समर्थन देने की सिफ़ारिश की गई है.

अध्ययन में कहा गया है कि वर्तमान में, लगभग 65 करोड़ महिलाओं के पास पर्याप्त मातृत्व सुरक्षा का अभाव है.

डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा लिखित, इस श्रृंखला में जाँच की गई है कि कैसे फ़ॉर्मूला मार्केटिंग रणनीतियाँ, स्तनपान को महत्व न देकर, माता-पिता, स्वास्थ्य पेशेवरों व राजनेताओं को लक्षित करती है, और किस तरह महिलाओं के अधिकार एवं स्वास्थ्य परिणाम, शक्ति असन्तुलन तथा राजनैतिक एवं आर्थिक संरचनाओं द्वारा खाद्य प्रथाएँ निर्धारित की जाती हैं.

लेखकों के अनुसार, "स्तनपान कराना केवल महिलाओं की ज़िम्मेदारी नहीं है. इसके लिये ऐसे सामूहिक सामाजिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो लैंगिक असमानताओं को ध्यान में रखे." दरअसल, 2016 से 2021 तक की समीक्षा और देशों पर आधारित अध्ययनों से संकेत मिलता है कि स्तनपान प्रथाओं में बहु-स्तरीय व बहु-घटक हस्तक्षेपों के माध्यम से तेज़ी से सुधार लाया जा सकता है.

डेयरी पैरोकारों के भ्रामक दावे

विश्व स्वास्थ्य सभा में शिशु फ़ॉर्मूला उत्पादकों के बीच सन्दिग्ध विपणन प्रथाओं की दशकों पुरानी चुनौती को सम्बोधित किया गया है. 1970 के दशक के दौरान, निम्न और मध्यम आय वाले देशों में नेस्ले कम्पनी की लक्षित विपणन रणनीति पर एक खोजी रिपोर्ट के बाद, 1981 में ब्रेस्ट-मिल्क विकल्पों की मार्किटिंग के लिये अन्तरराष्ट्रीय कोड विकसित किया गया.

नई श्रृंखला में कहा गया है कि भ्रामक विपणन दावों और डेयरी व फ़ॉर्मूला दूध उद्योगों की रणनीतिक पैरवी, माता-पिता के सामने नई चुनौतियाँ खड़ी कर देती है.

लेख में कहा गया है कि इनमें ऐसे असंख्य दावे किये जाते हैं कि फ़ॉर्मूला दूध पीने में शिशु नख़रे नहीं करते हैं, इससे पेट में गैस नहीं बनती, और बेहतर नीन्द मिलती है. इन सबसे केवल माता-पिता की चिन्ताएँ बढ़ रही हैं.

दक्षिण अफ़्रीका की यूनिवर्सिटी ऑफ़ विटवाटर्सरैंड, से सम्बन्ध रखने वालीं, श्रृंखला की सह-लेखिका, लिंडा रिक्टर ने कहा कि फ़ॉर्मूला दूध उद्योग "अस्पष्ट विज्ञान" का इस्तेमाल करके, यह सुझाव देने की कोशिश करता है कि उनके उत्पाद "सामान्य शिशु स्वास्थ्य एवं विकास सम्बन्धी चुनौतियों का उपयुक्त समाधान" हैं.

उन्होंने कहा, यह मार्केटिंग तकनीक "1981 की संहिता का स्पष्ट रूप से उल्लंघन करती है, जिसमें कहा गया है कि लेबल को अधिक उत्पाद बेचने के लिये, फ़ॉर्मूला दूध के उपयोग को आदर्श नहीं बनाना चाहिये."

स्तनपान के अपार लाभ

WHO कम से कम छह महीने तक शिशुओं को विशेष रूप से स्तनपान कराने की सलाह देता है. यह प्रथा, शिशुओं और छोटे बच्चों के संक्रमण जोखिम को कम करने से लेकर, भविष्य में मोटापे व पुरानी बीमारियों की दर को कम करने तक, अनगिनत लाभ प्रदान करती है.

हालाँकि, विश्व स्तर पर, केवल आधे नवजात शिशुओं को ही उनके जीवन के पहले घंटे के भीतर, स्तनपान नसीब होता है.

काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य के एक बाल स्वास्थ्य केंद्र में एक मां अपने बच्चे को स्तनपान करा रही है.
© UNICEF/Gwenn Dubourthoumieu

कम्पनियाँ समर्थन की कमी का फ़ायदा उठाती हैं

ऐसे में, जब आधे से कम नवजात शिशुओं को ही स्तनपान नसीब होता है, डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुसार, श्रृंखला में बताया गया है कि किस तरह उद्योग की मार्केटिंग, इस क्षेत्र के लिये सरकारों और समाज के समर्थन की कमी का फ़ायदा उठाती है.

लेखकों ने पाया कि कम्पनियाँ अपने उत्पादों को बेचने के लिये, लैंगिक राजनीति के दाँव-पेच भी अपनाती हैं, स्तनपान की वकालत को "नैतिक निर्णय" के रूप में प्रस्तुत करती हैं, वहीं कामकाजी माताओं के लिये. दूध के फ़ॉर्मूले को "सुविधाजनक और सशक्त समाधान" के रूप में प्रस्तुत करती हैं.

स्तन-दुग्ध का राजनीतिकरण

श्रृंखला में राष्ट्रीय राजनैतिक निर्णयों को प्रभावित करने के लिये फ़ॉर्मूला मिल्क उद्योग की शक्ति की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए, यह भी कहा गया है कि कम्पनियाँ, अन्तरराष्ट्रीय नियामक प्रक्रियाओं में भी दख़ल देती हैं. उदाहरण के लिये, डेयरी और फ़ॉर्मूला दूध उद्योगों ने ग़ैर-जवाबदेह व्यापार संघों का एक नैटवर्क स्थापित किया है जो स्तनपान की सुरक्षा या शिशु फ़ॉर्मूला की गुणवत्ता को नियंत्रित करने के नीतिगत उपायों के विरुद्ध पैरवी करते हैं.

माता-पिता पर पड़ने वाले दबावों के मद्देनज़र,श्रृंखला के लेखकों ने कई सिफ़ारिशें पेश की है, जिनमें कार्यस्थलों, स्वास्थ्य सेवा, सरकारों और समुदायों में व्यापक कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया गया है, ताकि स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्रभावी ढंग से समर्थन दिया जा सके. उन्होंने राष्ट्रीय विकास में महिलाओं के अवैतनिक देखभाल कार्य के योगदान को औपचारिक मान्यता देने का भी आहवान किया है.

सिफ़ारिशों की श्रृंखला

येल सार्वजनिक स्वास्थ्य स्कूल से, सह-लेखक रफ़ाएल पेरेज़-एस्कमिला ने अन्य महत्वपूर्ण क़दमों पर प्रकाश डाला.

उन्होंने कहा, "स्तनपान से उनके परिवार और राष्ट्रीय विकास को होने वाले अपार लाभों को देखते हुए, स्तनपान कराने की इच्छा रखने वाली महिलाओं को बेहतर समर्थन देने की आवश्यकता है, ताकि वे अपने स्तनपान लक्ष्यों को पूरा कर सकें.”

"स्तनपान पर स्वास्थ्य पेशेवर प्रशिक्षण का विस्तार के साथ-साथ, वैधानिक भुगतान सहित मातृत्व अवकाश और अन्य सुरक्षा महत्वपूर्ण हैं."