शिशु दुग्ध पदार्थों की छलपूर्ण ऑनलाइन मार्केटिंग पर रोक की माँग
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक नए अध्ययन के अनुसार, शिशुओं के लिये फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थ बनाने वाली कम्पनियाँ, गर्भवती महिलाओं व माताओं तक सीधी पहुँच बनाने के लिये, सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म व प्रभावशाली हस्तियों को धन का भुगतान कर रही है. इसके तहत, लक्षित ऑनलाइन सामग्री तैयार की व भेजी जाती है, जिसे विज्ञापन के तौर पर पहचान पाना अक्सर कठिन होता है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने ज़ोर देकर कहा है कि 55 अरब डॉलर मूल्य के बेबी फ़ॉर्मूला उद्योग को अभिभावकों, विशेष रूप से माताओं पर शोषणकारी ऑनलाइन मार्केटिंग के इस्तेमाल पर विराम लगाना होगा.
🆕 WHO report reveals shocking extent of exploitative formula milk marketingThe formula milk industry, valued at US$55 billion, is paying social media platforms & influencers to gain direct access to pregnant women & mothers.#EndExploitativeMarketing👉https://t.co/0dciNxB0fQ pic.twitter.com/hhAnyp0ueH
WHO
रिपोर्ट के मुताबिक़ मोबाइल ऐप, वर्चुअल समर्थन समूह या ‘बेबी क्लब’, प्रसार व प्रतिस्पर्धाएँ, परामर्श फ़ोरम व सेवाओं जैसे तौर-तरीक़ों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
संगठन का कहना है कि मार्केटिंग व प्रचार के कारण, स्तन-दुग्ध विकल्पों की ख़रीद बढ़ रही है, और माताएँ, केवल स्तनपान पर निर्भर रहने से पीछे हट रही हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन में पोषण और खाद्य सुरक्षा विभाग में निदेशक डॉक्टर फ़्रैन्सेस्को ब्रान्का ने बताया कि, “व्यावसायिक दुग्ध फ़ॉर्मूलों के प्रचार-प्रसार का दशकों पहले अन्त कर दिया जाना चाहिये था.”
उन्होंने कहा कि फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थ बनाने वाली कम्पनियाँ, अपनी बिक्री बढ़ाने के लिये अब पहले से कहीं अधिक प्रभावी और छलपूर्ण मार्केटिंग तकनीकें अपना रही हैं, जो किसी भी तरह से सही नहीं है और इसे रोका जाना होगा.
प्रति दिन 90 सन्देश
‘Scope and impact of digital marketing strategies for promoting breast-milk substitutes’, नामक इस रिपोर्ट से पहले भी इस विषय में एक अध्ययन फ़रवरी महीने में प्रकाशित किया गया था.
उस रिपोर्ट में बताया गया था कि किस तरह दुनिया भर में माता-पिता, अभिभावक और गर्भवती महिलाएँ, बेबी फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थों की आक्रामक मार्केटिंग का आसान निशाना बनने के दायरे में हैं.
शुक्रवार को जारी की गई इस श्रृंखला की दूसरी रिपोर्ट में, 40 लाख सोशल मीडिया सन्देशों का विश्लेषण किया गया है, जोकि जनवरी व जून 2021 के दौरान प्रकाशित किये गए.
इन सन्देशों के ज़रिये लगभग ढाई अरब लोगों तक पहुँचा गया, एक करोड़ 20 लाख लोगों ने इन सन्देशों को पसन्द व साझा किया (like, share) या फिर उन पर टिप्पणी की.
बताया गया है कि फॉर्मूला कम्पनियाँ प्रति दिन अपने सोशल मीडिया अकाउंट के ज़रिये 90 सन्देश भेजती हैं, और 22 करोड़ 90 लाख यूज़र्स तक अपनी पहुँच बनाती है.
ग़ैर-व्यावसायिक अकाउंट से स्तनपान सम्बन्धी जानकारीपरक सन्देशों की तुलना में यह आँकड़ा तीन गुना अधिक है.
विशेषज्ञों के अनुसार भ्रामक मार्केटिंग के ज़रिये स्तनपान, स्तन-दुग्ध के सम्बन्ध में मिथकों को फैलाया जाता है और सफलतापूर्वक स्तनपान करा पाने की महिलाओं की क्षमता व आत्मविश्वास के प्रति सन्देह पैदा किया जाता है.

विज्ञापनों पर रोक लगाने की माँग
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने शिशुओं के लिये भोजन तैयार करने वाले उद्योग से, शोषणकारी फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थों की मार्केटिंग का अन्त करने का आग्रह किया है.
साथ ही देशों की सरकारों से बच्चों व परिवारों की रक्षा सुनिश्चित किये जाने का आहवान किया गया है.
इसके तहत, ज़रूरी क़ानून बनाये जाने व उन्हें लागू करने, और फ़ॉर्मूला दुग्ध उत्पादों के सभी प्रकार के विज्ञापनों की निगरानी व उन्हें रोके जाने पर बल दिया गया है.
रिपोर्ट के अनुसार, फ़ॉर्मूला दुग्ध पदार्थ की वैश्विक डिजिटल मार्केटिंग से खुले तौर पर, स्तन-दुग्घ विकल्पों की मार्केटिंग पर महत्वपूर्ण अन्तरराष्ट्रीय कोड का भी उल्लंघन होता है, जिसे 40 वर्ष पहले तयार किया गया था.
इस समझौते के ज़रिये आक्रामक मार्केटिंग तौर-तरीक़ों से आम जनता व माताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है.
संगठन ने कहा कि डिजिटल मार्केटिंग के नए स्वरूप, राष्ट्रीय निगरानी व स्वास्थ्य प्राधिकरण की नज़र से बच रहे हैं, जिसके मद्देनज़र, नए नियामन व उन्हें सख़्ती से लागू किये जाने की ज़रूरत है.