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अफ़ग़ानिस्तान: सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे जाने और मौत की सज़ा पर रोक लगाने का आग्रह

अफ़ग़ानिस्तान के ज़िन्दाजान ज़िले के एक गाँव में एक महिला, एक गलियारे से गुज़रते हुए.
© UNICEF/Shehzad Noorani
अफ़ग़ानिस्तान के ज़िन्दाजान ज़िले के एक गाँव में एक महिला, एक गलियारे से गुज़रते हुए.

अफ़ग़ानिस्तान: सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे जाने और मौत की सज़ा पर रोक लगाने का आग्रह

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक समूह ने शुक्रवार को तालेबान नेतृत्व से आग्रह किया है कि अफ़ग़ानिस्तान में सार्वजनिक रूप से कोड़े बरसाए जाने और मौत की सज़ा को फिर से शुरू किये जाने पर तत्काल रोक लगाई जानी होगी.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय, (OHCHR) ने, अफ़ग़ानिस्तान में, अगस्त 2021 में, तालेबान द्वारा सत्ता पर नियंत्रण किए जाने के बाद सार्वजनिक फाँसी दिए जाने की पहली घटना की भी कड़ी आलोचना की थी.

तालेबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा ने पिछले महीने न्यायाधीशों को इस्लामी क़ानून के पहलुओं को बरकरार रखने का आदेश दिया था जिसके बाद फिर से ये दंड दिये जा रहे हैं.

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विशेषज्ञों ने एक वक्तव्य में कहा कि, "हम सत्ता पर क़ाबिज़ अधिकारियों से मृत्युदंड पर तुरन्त स्वैच्छिक रोक लगाये जाने, कोड़े मारने समेत ऐसे अन्य शारीरिक दंडों पर पाबन्दी लगाने का आग्रह करते हैं, जो यातना, या अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक बर्ताव या दंड का एक रूप हैं.”

“साथ ही, निष्पक्ष अदालती कार्रवाई और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार उचित प्रक्रिया के आश्वासन की मांग करते हैं.”

18 नवम्बर के बाद से अब तक, ताख़र, लोगर, लागहमन, परवान और काबुल सहित अनेक अफ़ग़ान प्रान्तों में 100 से अधिक पुरुषों और महिलाओं को सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे गए हैं.

स्टेडियम में स्थानीय निवासियों और तालेबानी अधिकारियों के वरिष्ठ सदस्यों की उपस्थिति में कोड़े मारने की सज़ा दी गई.

चोरी, नाजायज़ रिश्ता या सामाजिक व्यवहार संहिंता का उल्लंघन करने जैसे तथाकथित अपराधों के लिये हर एक व्यक्ति को 20 से 100 कोड़े मारे गए.

विशेष रैपोर्टेयर के अनुसार, वैवाहिक रिश्ते से बाहर सम्बन्ध बनाने का अपराधीकरण लैंगिक दृष्टि से तटस्थ प्रतीत होता है, लेकिन असल में, महिलाओं और लड़कियों को बड़े पैमाने पर सज़ा दी जा रही है.

मृत्युदंड के प्रत्यक्षदर्शी

अफ़ग़ानिस्तान में अगस्त 2021 में, तालेबान द्वारा सत्ता पर नियंत्रण किए जाने के बाद पहली बार, पिछले सप्ताह सार्वजनिक रूप से मौत की सज़ा दिए जाने की पहली घटना सामने आई थी.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने इसे "बेहद परेशान करने वाला" और चिन्ताजनक घटनाक्रम बताया था.

समाचारों के अनुसार, जिस व्यक्ति को मौत की सज़ा दी गई, उस पर हत्या करने का आरोप था. समाचार माध्यमों के अनुसार आरोपित व्यक्ति को मृतक के पिता द्वारा गोली मार कर सज़ा दी गई.

ये सज़ा, 7 दिसम्बर को दक्षिण-पश्चिमी अफ़ग़ानिस्तान में स्थित फ़राह प्रान्त के एक भीड़-भाड़ वाले स्टेडियम में दी गई.

उस दौरान, उपप्रधान मंत्री और मुख्य न्यायाधीश सहित तालेबान के अनेक वरिष्ठ अधिकारी वहाँ उपस्थित थे.

‘अप्रिय और अशोभनीय'

संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के मुताबिक़ 13 नवम्बर को सर्वोच्च नेता द्वारा न्यायपालिका को हुदूद (ईश्वर के विरुद्ध अपराध) और क़िसास (बदला लेना) दंड लागू करने का आदेश दिया गया.

इस आदेश के बाद से ही सार्वजनिक रूप से कोड़े बरसाए जाने और मौत की सज़ा दिये जाने की घटनाएँ शुरू हो गईं.

विशेष रैपोर्टेयर के समूह ने बताया कि, "सार्वजनिक कोड़े मारना और मृत्युदंड, यातना व अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक बर्ताव या दंड देने के सार्वभौमिक सिद्धान्तों का उल्लंघन करते हैं."

विशेषज्ञों के अनुसार, "इन दंडों का सार्वजनिक प्रदर्शन उन्हें विशेष रूप से अशोभनीय बनाता है."

निष्पक्ष सुनवाई पर संदेह

विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है की अफ़ग़ानिस्तान संयुक्त राष्ट्र की उस सन्धि पर मुहर लगाई है जोकि यातना, अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक सज़ा पर रोक लगाती है.

साथ ही, विशेषज्ञों ने ये दंड सुनाए जाने से पहले अदालती कार्रवाई की निष्पक्षता पर भी संदेह व्यक्त किया है, जोकि बुनियादी निष्पक्ष सुनवाई के मानकों पर खरे उतरते नज़र नहीं आते हैं.

उन्होंने स्पष्ट किया कि अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून में ऐसे क्रूर दंडों को अमल में लाए जाने पर पाबन्दी लगाई गई है, विशेष रूप से मृत्युदंड पर.

मानवाधिकार विशेषज्ञ

इस वक्तव्य को जारी करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों की सूची यहाँ देखी जा सकती है.

सभी स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, जिनीवा स्थित यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त किये जाते हैं, और वो अपनी निजी हैसियत में, स्वैच्छिक आधार पर काम करते हैं.

ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं, और ना ही उन्हें उनके काम के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.