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इसराइल से, फ़लस्तीनियों की जबरन बेदख़ली तुरन्त रोकने का आग्रह

इसराइल द्वारा क़ब्ज़ा किये हुए फ़लस्तीनी इलाक़े - पश्चिमी तट में, एक बच्चा, 2017 में, अपने परिवार का मकान ध्वस्त किये जाने के बाद, मलबे में खड़ा हुआ. (फ़ाइल फ़ोटो)
UNRWA/Lara Jonasdottir
इसराइल द्वारा क़ब्ज़ा किये हुए फ़लस्तीनी इलाक़े - पश्चिमी तट में, एक बच्चा, 2017 में, अपने परिवार का मकान ध्वस्त किये जाने के बाद, मलबे में खड़ा हुआ. (फ़ाइल फ़ोटो)

इसराइल से, फ़लस्तीनियों की जबरन बेदख़ली तुरन्त रोकने का आग्रह

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) ने इसराइल से, पूर्वी येरूशलम में, फ़लस्तीनी लोगों को उनके घरों से जबरन बेदख़ल किये जाने की कार्रवाई को तुरन्त रोके जाने का आहवान किया है. साथ ही, शेख़ जर्राह बस्ती और अन्य इलाक़ों में, सुरक्षा व व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिये, बल प्रयोग करने में अधिकतम संयम बरते जाने का भी आग्रह किया है.

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के अनुसार, पूर्वी येरूशलम की शेख़ जर्राह बस्ती में, 8 शरणार्थी फ़लस्तीनी परिवारों पर, एक यहूदी बस्ती संगठन – नहालात शिमॉन द्वारा दायर क़ानूनी चुनौती के बाद, बेदख़ली की तलवार लटक रही है. चार परिवारों पर तो तत्काल जोखिम है.

यूएन मानवाधिकार एजेंसी के प्रवक्ता रूपर्ट कॉलविले ने गुरूवार को कहा कि अगर इस बेदख़ली के लिये आदेश दिये जाते हैं और उन पर अमल किया जाता है तो ऐसा किया जाना, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून में, इसराइल की ज़िम्मेदारियों का उल्लंघन होगा. 

प्रवक्ता ने कहा, “शेख़ जर्राह बस्ती में, पिछले कुछ दिनों के दौरान व्यथित करने वाले दृश्य देखने के बाद, हम ये ज़ोर देकर कहना चाहते हैं कि पूर्वी येरूशलम, इसराइल द्वारा क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र का हिस्सा है, जहाँ अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून लागू होता हैं.”

“क़ाबिज़ शक्ति यानि, इसराइल को सम्मान दिखाना होगा और काबिज़ इलाक़े में निजी सम्पत्तियों पर क़ब्ज़ा नहीं किया जा सकता, और जब तक निर्विवाद रूप से रोक ना दिया जाए, देश में लागू क़ानूनों का सम्मान किया जाए.”

प्रवक्ता ने यह भी कहा कि इसराइल, क़ब्ज़ा किये हुए फ़लस्तीनी इलाक़ों में, फ़लस्तीनी लोगों को उनके घरों से बेदख़ल करने के लिये, अपनी मर्ज़ी के क़ानून नहीं थोप सकता, जिनमें पूर्वी येरूशलम भी शामिल है.

मध्य पूर्व शान्ति प्रक्रिया के लिये, संयुक्त राष्ट्र के विशेष, संयोजक टॉर वैनेसलैण्ड ने भी, गुरूवार को इसराइल से, बस्ती में बेदख़ली और मकानों को ध्वस्त किये जाने की कार्रवाई तुरन्त रोके जाने का आग्रह किया था. उनके अनुसार, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के तहत, इसराइल की ये ज़िम्मेदारी है.

अन्तरराष्ट्रीय क़ानून में प्रतिबन्धित

यूएन मानवाधिकार एजेंसी के प्रवक्ता रूपर्ट कॉलविले ने कहा, ”इसके अतिरिक्त, अनुपस्थित सम्पत्ति क़ानून और वैधानिक व प्रशासनिक मामलों के क़ानून, लगातार भेदभावपूर्ण तरीक़े से लागू किये जा रहे हैं, केवल सम्पत्ति मालिक की राष्ट्रीयता या मूल व पृष्ठभूमि के आधार पर.”

प्रवक्ता ने कहा, “वास्तविकता ये है कि इन क़ानूनों पर अमल किये जाने से, इसराइल के लिये अपनी आबादी को, क़ाबिज़ किये हुए पूर्वी येरूशलम में बसाने का रास्ता आसान बनता है."

"क़ाबिज़ शक्ति द्वारा अपनी सिविल आबादी का कोई हिस्सा, उसके क़ब्ज़े वाले इलाक़े में स्थानान्तरित करना, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के अन्तर्गत प्रतिबन्धित है, और ऐसा करना युद्धापराध की श्रेणी में आ सकता है.”

समुचित आवास के अधिकार का हनन

यूएन मानवाधिकार एजेंसी के प्रवक्ता ने ये भी कहा कि फ़लस्तीनी लोगों को जबरन बेदख़ल किये जाने से, उनके पर्याप्त आवास व निजता के अधिकारों के साथ-साथ, उनके अन्य अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है. 

“लोगों को जबरन बेदख़ल किया जाना, दरअसल डर व दहशत का माहौल बनाने का एक मुख्य औज़ार है जो जबरन स्थानान्तरण के दायरे में आ सकता है,  जोकि चौथे जिनीवा कन्वेन्शन के तहत प्रतिबन्धित है, और ऐसा किया जाना इस कन्वेन्शन का गम्भीर उल्लंघन है.”

प्रवक्ता रूपर्ट कॉलविले ने इसराइल से, लोगों की अभिव्यक्ति व सभाएँ करने की स्वतंत्रताओं का सम्मान किये जाने का भी आहवान किया, इनमें वो लोग भी शामिल हैं जो जबरन बेदख़ली के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं. 

प्रवक्ता ने, पूर्वी येरूशलम में, सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने के लिये, बल प्रयोग करते समय, अधिकतम संयम बरते जाने का भी आहवान किया है.