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जलवायु परिवर्तन मामलों के लिये यूएन संस्था के कार्यकारी सचिव साइमन स्टील, मिस्र में कॉप27 आरम्भ होने पर प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर रहे हैं.

कॉप27 सम्मेलन मिस्र में, जलवायु कार्रवाई के लिए एक 'नए युग' की शुरुआत

UN Japan/Momoko Sato
जलवायु परिवर्तन मामलों के लिये यूएन संस्था के कार्यकारी सचिव साइमन स्टील, मिस्र में कॉप27 आरम्भ होने पर प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर रहे हैं.

कॉप27 सम्मेलन मिस्र में, जलवायु कार्रवाई के लिए एक 'नए युग' की शुरुआत

जलवायु और पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन मामलों के लिये यूएन संस्थान (UNFCCC) के नए कार्यकारी सचिव साइमन स्टील ने रविवार को मिस्र के तटीय शहर शर्म अल-शेख़ में संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक जलवायु सम्मेलन (कॉप27) के उदघाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि इस आयोजन से विश्व को मानवता की विशालतम चुनौती से निपटने कि दिशा में आगे बढ़ाने में मदद मिलनी चाहिए. इस क्रम में उन योजनाओं को लागू किया जाना महत्वपूर्ण है जिन पर अतीत में सहमति बनी है. 

उन्होंने रविवार को शर्म अल-शेख़ में सम्मेलन स्थल के मुख्य आयोजन कक्ष में एकत्र प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि “आज एक नया युग आरम्भ हुआ है, और हम चीज़ों को अलग ढंग से करना शुरू करेंगे.”  

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“पेरिस ने हमें समझौता दिया. कैटोविच और ग्लासगो ने हमें योजना दी. शर्म अल-शेख़ हमें इन्हें लागू करने की दिशा में आगे बढ़ाता है.”

“इस यात्रा में कोई भी पक्ष केवल यात्री नहीं रह सकता है. यह एक संकेत है कि समय बदल गया है.”

जलवायु मामलों के लिये संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष अधिकारी साइमन स्टील के अनुसार नेताओं ने पिछले वर्ष ग्लासगो सम्मेलन (कॉप26) के दौरान जो वादे किये, उन पर उनसे जवाब मांगा जाएगा.

“चूँकि हमारी नीतियाँ, हमारे व्यवसायों, हमारे बुनियादी ढाँचों, हमारी निजी या सार्वजनिक कार्रवाई, को पेरिस समझौते और [यूएन जलवायु] सन्धि के अनुरूप बनाया जाना होगा.”

जलवायु परिवर्तन पर यूएन फ़्रेमवर्क सन्धि को, 21 मार्च 1994 को अमली जामा पहनाया गया, और इसका लक्ष्य जलवायु प्रणाली के साथ ख़तरनाक मानवीय गतिविधियों के हस्तक्षेप की रोकथाम करना है.

“आज, 198 देश इस पर मोहर लगा चुके हैं और इसकी लगभग सार्वभौमिक सदस्यता है. पेरिस समझौते पर 2015 में सहमति बनी और यह इसी सन्धि का एक विस्तारित रूप है.”

वादों को साकार करना

साइमन स्टील ने बताया कि मौजूदा सामाजिक-आर्थिक व भूराजनैतिक हालात बेहद जटिल हैं.

इसे ध्यान में रखते हुए, उन्होंने कॉप27 को एक ऐसा अवसर बताया है जिससे एक सुरक्षित राजनैतिक स्थल सृजित करने में मदद मिलेगी, ताकि बदलाव की दिशा में अग्रसर हुआ जा सके.

“यहाँ शर्म अल-शेख़ में, हमारा दायित्व, शब्दों को कार्रवाई में बदलने के लिये अन्तरराष्ट्रीय प्रयासों में तेज़ी लाना है.”

यूएन संस्था के कार्यकारी सचिव ने सम्मेलन के लिये तीन अहम क्षेत्रों में कार्रवाई पर बल दिया है:

- रूपान्तरकारी परिवर्तन को दर्शाने के लिये वार्ताओं को ठोस कार्रवाई की दिशा में ले जाना.

- अहम क्षेत्रों  – कार्बन उत्सर्जन में कटौती, अनुकूलन, वित्त पोषण और हानि व क्षति  – में प्रगति को मज़बूत करना.

- इस प्रक्रिया के दौरान पारदर्शिता व जवाबदेही के सिद्धान्तों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाना.

मिस्र के शर्म अल-शेख़ में कॉप27 सम्मेलन के आयोजन स्थल पर मुख्य कक्ष के बाहर का दृश्य.
UNFCCC/Kiara Worth
मिस्र के शर्म अल-शेख़ में कॉप27 सम्मेलन के आयोजन स्थल पर मुख्य कक्ष के बाहर का दृश्य.

'पीछे लौटने की अनुमति नहीं'

साइमन स्टील ने स्वयं को ‘जवाबदेही प्रमुख’ क़रार देते हुए कहा कि कॉप26 सम्मेलन के बाद से अब तक 29 देशों ने सख़्त राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई योजनाएँ प्रस्तुत की हैं.

उन्होंने बताया कि वो उन 170 देशों की ओर देख रहे हैं जिन्हें इस वर्ष अपने राष्ट्रीय संकल्पों पर पुनर्विचार करना होगा और उन्हें मज़बूती देनी है.

कार्यकारी सचिव ने प्रतिनिधियों को ध्यान दिलाया कि पिछले वर्ष कॉप26 के दौरान ‘ग्लासगो जलवायु समझौते’ पर सहमति बनी थी और उन्हें आशा है कि देश अपनी बात से पीछे नहीं हटेंगे.

“अपने संकल्पों पर बने रहिए. यहाँ मिस्र में उन्हें और आगे बढ़ाइए. मैं पीछे की दिशा में चलने के लिये रखवाला नहीं हूँ.”

संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष जलवायु अधिकारी ने कहा कि जलवायु कार्रवाई और निर्णय-निर्धारण प्रक्रिया में महिलाओं व लड़कियों को केन्द्र में रखा जाना होगा.

नई अध्यक्षता

कॉप26 सम्मेलन का अध्यक्ष ब्रिटेन था, और उसका प्रतिनिधित्व कर रहे आलोक शर्मा ने मुख्य आयोजन के दौरान कॉप27 के लिये कमान आधिकारिक रूप से मिस्र के प्रतिनिधि सामेह शुक़्री को सौंपी.

आलोक शर्मा ने पिछले वर्ष ग्लासगो सम्मेलन की उपलब्धियों का ख़ाका प्रस्तुत करते हुए, पेरिस नियम-पुस्तिका को अन्तिम रूप दिये जाने का उल्लेख किया, जिसके अन्तर्गत समझौते को लागू करने के लिये दिशानिर्देश जारी किये गए हैं.

कच्चे तेल के शोधन से निकलने वाले उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन के कुल उत्सर्जनों में एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.
© Unsplash/Zbynek Burival
कच्चे तेल के शोधन से निकलने वाले उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन के कुल उत्सर्जनों में एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.

कॉप26 के अध्यक्ष के अनुसार, पिछले वर्ष लिये गए संकल्पों को यदि लागू किया जाता है तो इस सदी के अन्त तक दुनिया वैश्विक तापमान में 1.7 डिग्री सेल्सियस वृद्धि के रास्ते पर होगी.

उन्होंने दुनिया के समक्ष मौजूद विकराल चुनौती को रेखांकित करते हुए कहा कि “यह अब भी 1.5 डिग्री सेल्सियस नहीं है, मगर प्रगति है.”

आलोक शर्मा ने कार्यकारी सचिव साइमन स्टीएल की बात को दोहराते हुए कहा कि मौजूदा भूराजनैतिक चुनौतियों के बावजूद नेताओं को कार्रवाई करनी होगी.

मिस्र का आग्रह

कॉप27 के अध्यक्ष देश मिस्र के प्रतिनिधि सामेह शुक़्री ने प्रतिनिधियों से महत्वाकाक्षा का स्तर बढ़ाने और अतीत में किये गए वायदों को पूरा करने का आग्रह किया.

उन्होंने कहा कि वार्ताओं व संकल्पों से आगे बढ़ते हुए अब उन्हें लागू किये जाने के युग को प्राथमकिता बनाना होगा.

इस क्रम में अध्यक्ष शुक़्री ने संशोधित राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई योजनाओं को साझा करने वाले देशों की सराहना की है.

उन्होंने कहा कि विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों में अनुकूलन के लिये 100 अरब डॉलर की सहायता धनराशि के वायदे को पूरा किया जाना चाहिए, और बातचीत के दौरान वित्त पोषण पर चर्चा की जानी होगी.

सामेह शुक़्री ने आगाह किया कि वार्ता के नतीजों से दुनिया भर में उन लाखों-करोड़ों लोगों का जीवन व आजीविका पर असर होगा, जोकि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझ रहे हैं.  

उन्होंने कहा कि हम किसी भी प्रकार की लापरवाही का जोखिम मोल नहीं ले सकते हैं, और ना ही भावी पीढ़ियों के भविष्य को ख़तरे में डाल सकते हैं.

जर्मनी के न्यूरेनबर्ग शहर में वैश्विक जलवायु कार्रवाई की मांग कर रहे प्रदर्शनकारी.
© Unsplash/Markus Spiske
जर्मनी के न्यूरेनबर्ग शहर में वैश्विक जलवायु कार्रवाई की मांग कर रहे प्रदर्शनकारी.

'हानि व क्षति' पर चर्चा

रविवार को सम्मेलन की प्रक्रियात्मक शुरुआत के दौरान उस एजेंडा पर भी सहमति बनी, जिसमें शामिल विषयों पर कॉप27 के दौरान अगले दो हफ़्तों तक चर्चा होगी.

सम्मेलन से पहले ‘हानि व क्षति’ के मुद्दे पर अनिश्चितता थी, मगर ‘समूह 77’ और चीन के वार्ताकारों द्वारा इसे आगे बढ़ाए जाने और यूएन जलवायु सन्धि के 194 पक्षों में गहन चर्चा के बाद यह भी एजेंडा में शामिल कर लिया गया है.

विश्व के अनेक हिस्सों में प्राकृतिक आपदाएँ गहन हो रही हैं और उनकी आवृत्ति भी बढ़ रही है, जिसकी वजह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बढ़ने की आशंका है.

इन उत्सर्जनों के लिये मुख्यत: धनी, औद्योगिक देश ज़िम्मेदार हैं, और विकासशील देशों की मांग है कि चूँकि जलवायु परिवर्तन के प्रभावो को सर्वाधिक वही झेल रहे हैं, उन्हें इसका मुआवज़ा मिलना चाहिए.

इस मुआवज़े के मुद्दे को ‘हानि व क्षति’ के रूप में देखा जाता है और कॉप27 सम्मेलन के दौरान इस पर विस्तृत चर्चा होने की सम्भावना है.