
कॉप27: वार्षिक यूएन जलवायु सम्मेलन मिस्र में, कुछ अहम जानकारी
संयुक्त राष्ट्र का वार्षिक जलवायु सम्मेलन (कॉप27), विश्व भर में चरम मौसम की घटनाओं, यूक्रेन में युद्ध के कारण उपजे ऊर्जा संकट और उन वैज्ञानिक तथ्यों व चेतावनियों की पृष्ठभूमि में, मिस्र के शर्म अल-शेख़ में 6 से 18 नवम्बर तक हो रहा है. इस सम्बन्ध में आगाह किया गया है कि कार्बन उत्सर्जन से निपटने और पृथ्वी के भविष्य की रक्षा के लिये पर्याप्त प्रयास नहीं किये जा रहे हैं.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने ज़ोर देकर कहा है कि कॉप27 सम्मेलन के नतीजे में, मौजूदा समस्या के स्तर के अनुरूप, जलवायु समाधानों पर सहमति बनाई जानी होगी. मगर, क्या ये सम्भव हो पाएगा?
जलवायु सम्मेलन की आधिकारिक शुरुआत 6 नवम्बर को होगी और यूएन न्यूज़ की टीम अगले दो हफ़्तों तक जलवायु वार्ता से जुड़ी सभी जानकारी व मल्टीमीडिया सामग्री आप तक पहुँचाती रहेगी.
मगर, उससे पहले हमने आपके लिये कुछ अहम जानकारी जुटाई है, जिसे जानना आपके लिये अहम होगा...
ये सभी कॉप सम्मेलन आयोजित किये जाने की वजह क्या है?
जलवायु परिवर्तन पर यूएन फ़्रेमवर्क सन्धि (UNFCCC) के सम्बद्ध पक्षों (Conference of the Parties/COP) का वार्षिक सम्मेलन, जलवायु सम्बन्धी विषयों पर सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण आयोजन है.
वर्ष 1992 में ब्राज़ील के रियो डी जैनेरियो में पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर यूएन पृथ्वी सम्मेलन (Earth Summit) के दौरान, जलवायु परिवर्तन पर यूएन फ़्रेमवर्क सन्धि पारित की गई, और इसके लिये समन्वय संस्था - UNFCCC स्थापित की गई.
UNFCCC को घोषित लक्ष्य, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में कटौती लाना है ताकि मानवीय गतिविधियों की वजह से होने वाले जलवायु परिवर्तन के ख़तरनाक दुष्प्रभावों की रोकथाम की जा सके. अब तक 197 पक्षों ने इस पर हस्ताक्षर किये हैं.

वर्ष 1994 से यह सन्धि लागू हो गई, और उसके बाद से हर वर्ष सन्धि के सम्बद्ध पक्षों के सम्मेलन, या COPs, औपचारिक वैश्विक जलवायु शिखर बैठकें आयोजित की जाती रही हैं.
हालाँकि, वर्ष 2020 इसका एक अपवाद है चूँकि कोविड-19 महामारी के कारण कॉप26 के आयोजन में एक वर्ष की देरी हुई है.
इन बैठकों के दौरान, देशों ने मूल सन्धि में विस्तार के लिये वार्ता आगे बढ़ाई गई है, ताकि उत्सर्जनों पर क़ानूनी रूप से बाध्यकारी कटौतियाँ स्थापित की जा सकें.
उदाहरणस्वरूप, वर्ष 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल और 2015 में पेरिस जलवायु समझौता, जिसमें सभी देशों ने वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने और जलवायु कार्रवाई वित्त पोषण को बढ़ावा देने के लिये प्रयासों को मज़बूती देने पर सहमति व्यक्त की है.
मिस्र में यूएन फ़्रेमवर्क सन्धि (UNFCCC) के सम्बद्ध पक्षों (Conference of the Parties/COP) के 27वें सम्मेलन का आयोजन होगा.
अन्य कॉप सम्मेलनों की तुलना में कॉप27 किन मायनों में अलग है?
वर्ष 2015 में हुए पेरिस जलवायु समझौते के बाद, वर्ष 2021 में पाँचवी बार, यूएन वार्षिक जलवायु सम्मेलन (कॉप26) आयोजित किया गया, चूँकि कोविड-19 महामारी के कारण 2020 मे सम्मेलन आयोजित नहीं हो पाया था.
कॉप26 के दौरान ‘ग्लासगो जलवायु समझौते’ (Glasgow Climate Pact) पर सहमति हुई, जिसमें वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की बात कही गई है.
पेरिस समझौते को वास्तविकता में पूर्ण रूप से लागू किये जाने के सिलसिले में भी प्रगति दर्ज की गई, और व्यावहारिक उपायों के लिये पेरिस नियम पुस्तिका (Paris Rulebook) को अन्तिम रूप दिया गया.
कॉप26 बैठक में देशों ने इस वर्ष मज़बूत संकल्प सुनिश्चित किये जाने पर सहमति जताई थी, जिसके तहत राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई योजनाओं को अधिक महत्वाकांक्षी बनाया जाना भी है.
मगर, 193 में से केवल 23 देशों ने ही फ़िलहाल संयुक्त राष्ट्र को अपनी योजनाएँ भेजी हैं.
ग्लासगो सम्मेलन के दौरान वार्ता कक्षों के भीतर व बाहर भी, नैट-शून्य उत्सर्जन, वन संरक्षण और जलवायु वित्त पोषण समेत विभिन्न क्षेत्रों में अनेक संकल्प लिये गए.

अध्यक्षीय वक्तव्य के अनुसार, कॉप27 सम्मेलन के दौरान अब इन सभी वायदों व संकल्पों को लागू किये जाने की योजना पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा.
सम्मेलन के मेज़बान देश मिस्र ने धरातल पर पूर्ण, सामयिक, समावेशी व विस्तृत कार्रवाई की पुकार लगाई है.
विशेषज्ञों के अनुसार, पेरिस नियम पुस्तिका को लागू किये जाने के रास्तों की समीक्षा किये जाने के अलावा, सम्मेलन के दौरान उन बिन्दुओं पर भी चर्चा होगी, जिन पर ग्लासगो में बातचीत का निष्कर्ष नहीं निकल पाया था.
इन मुद्दों में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली ‘हानि व क्षति’ के लिये वित्त पोषण का विषय भी है.
यह जलवायु संकट से अग्रिम मोर्चे पर जूझ रहे उन देशों के लिये विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहाँ इसके दुष्परिणाम उनके अनुकूलन प्रयासों से कहीं अधिक होंगे.
इस क्रम में, अनुकूलन वित्त पोषण के लिये विकसित देशों ने निम्न-आय वाले देशों के लिये हर वर्ष 100 अरब डॉलर की रक़म मुहैया कराने का वायदा किया है, मगर अभी इसे पूरा किया जाना बाक़ी है.
बातचीत के दौरान, तकनीकी मुद्दों पर भी चर्चा होगी. उदाहरणस्वरूप, देशों द्वारा कार्बन उत्सर्जनों को मापने के लिये विशिष्ट रास्तों को चिन्हित किया जाएगा, ताकि हर एक देश का समान मापदंडों पर आकलन किया जा सके.
इन विचार-विमर्श के ज़रिये वर्ष 2023 में होने वाले अगले जलवायु सम्मेलन, कॉप28 का मार्ग प्रशस्त होगा, जिसमें पहली बार वैश्विक आकलन किया जाएगा. यानि, कार्बन उत्सर्जन में कटौती, अनुकूलन और पैरिस समझौते को लागू किये जाने के प्रयासों में सामूहिक प्रगति की समीक्षा.
तो, इस वर्ष सम्मेलन के लिये बड़े उद्देश्य क्या हैं?
1. कार्बन उत्सर्जन में कटौती: देश अपने उत्सर्जनों में किस प्रकार से कटौती कर रहे हैं?
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक महत्वपूर्ण उपाय ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाना या उनकी रोकथाम करना (mitigation) है.
इसका अर्थ नई टैक्नॉलॉजी व नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग करना, पुराने उपकरणों की ऊर्जा दक्षता बेहतर बनाना, प्रबन्धन के तौर-तरीक़ो और उपभोक्ताओं के व्यवहार में बदलाव लाना हो सकता है.
देशों से यह दर्शाने की अपेक्षा है कि वे किस प्रकार ग्लासगो सम्मेलन में हुई सहमति को लागू करने, जलवायु योजनाओं की समीक्षा करने और उत्सर्जन कटौती के लिये कार्य योजना तैयार करने पर काम कर रहे हैं.

इसका मन्तव्य है: और अधिक महत्वाकांक्षी 2030 उत्सर्जन लक्ष्यों को प्रस्तुत करना, चूँकि जलवायु परिवर्तन मामलों के लिये यूएन एजेंसी का कहना है कि वैश्विक तापमान में विनाशकारी वृद्धि को टालने के लिये मौजूदा योजनाएँ पर्याप्त नहीं हैं.
2. अनुकूलन: देश किस तरह अनुकूलन प्रयास करेंगे और दूसरों को ऐसा करने में सहायता देंगे?
जलवायु परिवर्तन दस्तक दे चुका है. ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती और वैश्विक तापमान वृद्धि की गति धीमी करने के लिये हरसम्भव प्रयासों से इतर, देशों को जलवायु परिवर्तन के नतीजों का सामना करने के लिये स्वयं को ढालना होगा, ताकि आम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
इसका असर, इस बात पर भी निर्भर करता है कि कौन सा देश, किस भौगोलिक क्षेत्र में है और किन आपदाओं की चपेट में आ सकता है. जैसेकि आग लगने की घटनाएँ, बाढ़ व सूखा, अत्यधिक गर्मी या सर्दी या फिर समुद्री जलस्तर में वृद्धि.
कॉप26 सम्मेलन के दौरान, प्रतिनिधियों ने एक कार्यक्रम (Work Programme) पारित किया था, जोकि पेरिस समझौते में स्थापित वैश्विक अनुकूलन लक्ष्य पर आधारित है.
इस योजना के ज़रिये समुदायों व देशों द्वारा अपनाए जा रहे अनुकूलन उपायों के लिये ज्ञान व उपाय मुहैया कराना है, ताकि दुनिया को जलवायु-सहनसक्षम भविष्य की दिशा में बढ़ाए जाने में मदद मिल सके.
पिछले वर्ष, विकसित देशों ने अनुकूलन प्रयासों के लिये वित्त पोषण को कम से कम दोगुना किये जाने पर सहमति व्यक्त की थी.
अनेक हितधारकों ने इससे भी अधिक स्तर पर अनुकूलन प्रयासों के लिये धनराशि मुहैया कराए जाने और उसे कार्बन उत्सर्जन में कटौती पर केन्द्रित वित्त पोषण के समकक्ष बनाने की पुकार लगाई है, जैसाकि पेरिस समझौते में उल्लेख किया गया है.
मिस्र के शर्म अल-शेख़ में सम्मेलन के दौरान यह चर्चा का एक बड़ा मुद्दा होगा.
UNFCCC का स्पष्ट रूप से मानना है कि मौजूदा व भावी जलवायु जोखिमों से निपटने के लिये, अनुकूलन वित्त पोषण के स्तर में बड़ी वृद्धि की जानी आवश्यक है. निजी व सार्वजनिक, सभी स्रोतों से यह किया जाना होगा, और सरकारों, वित्तीय संस्थाओं व निजी सैक्टर समेत सभी पक्षों को इसका हिस्सा बनना होगा.
3. जलवायु वित्त पोषण: बातचीत की मेज़ पर सदैव उपस्थित रहने वाला मुद्दा
जलवायु वित्त पोषण एक बार फिर, कॉप27 सम्मेलन के दौरान एक बड़ी थीम होगी. वित्त पोषण सम्बन्धी चर्चाएँ पहले से ही एजेंडा का हिस्सा हैं.
विकासशील देशों ने पर्याप्त व उपयुक्त वित्त पोषण सुनिश्चित करने के लिये विकसित देशों से आग्रह किया है, विशेष रूप से सर्वाधिक संवेदनशील हालात का सामना करने वाले देशों के लिये.
बैठक के दौरान, विकसित देशों द्वारा प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर मुहैया कराए जाने का वायदा सम्भवत: गहन चर्चा के केन्द्र में रहेगा, जिसे अभी पूरा नहीं किया जा सका है.
वर्ष 2009 में कोपेनहागन सम्मेलन के दौरान, धनी देशों ने इस वित्त पोषण का संकल्प लिया था, लेकिन आधिकारिक जानकारी के अनुसार, यह लक्ष्य अभी अधूरा है.
विशेषज्ञों ने उम्मीद जताई है कि वर्ष 2023 में कॉप27 के दौरान इस संकल्प को अन्तत: वास्तविकता में बदल दिया जाएगा.
सम्मेलन के अध्यक्ष देश मिस्र ने इस मुद्दे के साथ-साथ अतीत में किये गए अन्य संकल्पों व प्रतिज्ञाओं को ध्यानार्थ लाने का इरादा जताया है.

चर्चा में घिरा रहने वाला जलवायु ‘हानि व क्षति’ मुद्दा आख़िरकार क्या है?
जलवायु परिवर्तन, चरम मौसम घटनाओं जैसेकि चक्रवाती तूफ़ान, मरुस्थलीकरण और समुद्री जल के बढ़ते स्तर के ज़रिये, देशों को क्षति पहुँचाता है, जिसकी उन्हें एक बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ती है.
आम तौर पर इन घटनाओं को प्राकृतिक आपदाओं के रूप में देखा जाता है मगर अब इन जलवायु प्रभावों की गहनता बढ़ रही है, जिसकी वजह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के स्तर में उछाल है.
इसके लिये मुख्यत: धनी औद्योगिक देश ज़िम्मेदार हैं, जबकि इससे सबसे अधिक विकासशील देश प्रभावित होते हैं, और उनकी मांग है कि इसके लिये उन्हें मुआवज़ा दिया जाए.
वर्ष 2022 में यूएन महासभा के उच्चस्तरीय सप्ताह के दौरान डेनमार्क ने जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली क्षति की भरपाई के लिये विकासशील देशों को एक करोड़ 30 डॉलर प्रदान करने की घोषणा की. ये क़दम उठाने वाला, डेनमार्क पहला देश है.
इन भुगतानों का मुद्दा, जिसे ‘हानि व क्षति’ भी कहा जाता है, वो कॉप27 में विचार-विमर्श का एक बड़ा विषय रहेगा, जबकि वो अभी आधिकारिक एजेंडा का हिस्सा भी नहीं है.
समूह 77 और चीन में क़रीब सभी विकासशील देश शामिल हैं, और उन्होंने इसे एजेंडे में शामिल किये जाने का अनुरोध किया है.
इसके लिये, जलवायु सम्मेलन के पहले दिन सभी देशों में आम सहमति होने की आवश्यकता होगी. अब तक, एक ‘हानि व क्षति’ कोष स्थापित किये जाने पर चर्चा हुई है, मगर ठोस क़दम नहीं उठाए गए हैं.
मानवाधिकार व जलवायु पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर इयान फ़्राय समेत अन्य विशेषज्ञों ने इस दिशा में प्रयासों की गति बढ़ने और इस लक्ष्य को हासिल किये जाने की आशा जताई है.
उन्होंने यूएन न्यूज़ को बताया कि समय आ गया है कि मुख्य उत्सर्जक बड़े देश खड़े हों और कहें, “हमें कुछ करना होगा, हमें इन निर्बल देशों के लिये अपना योगदान देना होगा.”

यूक्रेन में युद्ध मौजूदा हालात को किस तरह प्रभावित कर रहा है?
संयुक्त राष्ट्र में पलाऊ की स्थाई प्रतिनिधि और जलवायु वार्ताकार इलाना साइड ने बताया कि मौजूदा सामाजिक-राजनैतिक भूदृश्य और ऊर्जा संकट के कारण कॉप सम्मेलन ‘भ्रामक’ हो सकता है.
“यूक्रेन में युद्ध हुआ, इसलिये ऐसी अनेक बाते हैं जिन पर देशों में सहमति हुई और अब वे उन्हें नहीं कर सकते हैं. इस युद्ध के परिणामस्वरूप, भूदृश्य में परिवर्तन हुआ है.”
निसन्देह, यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद से महंगाई बढ़ी है और वैश्विक ऊर्जा, खाद्य व सप्लाई चेन में संकट उपजा है.
जर्मनी जैसे देशों को अल्पावधि के लिये अपने जलवायु लक्ष्यों का स्तर कम करना पड़ रहा है, जबकि ग्लासगो में चीन-अमेरिका के जिस ऐतिहासिक कार्यसमूह की घोषणा की गई थी, उसे फ़िलहाल स्थगित कर दिया गया है.
कॉप27 के दौरान उन संकल्पों व प्रतिबद्धताओं को झटका लगने की आशंका है, जिन्हें देशों ने पिछले वर्ष किया था.
मगर, यूएन के विशेष रैपोर्टेयर इयान फ़्राय का मानना है कि ये युद्ध देशों के लिये, ऊर्जा में आत्म-निर्भरता के लिये नीन्द से जगा देने वाली घंटी हो सकती है.
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ का मानना है कि इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये सबसे किफ़ायती तरीक़ा नवीकरणीय ऊर्जा का सहारा लेना है, जोकि उत्सर्जन घटाने के नज़रिये से अहम हैं.
“हम देख रहे हैं कि पोर्तुगल 100 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में आगे बढ़ रहा है. हम जानते हैं कि डेनमार्क भी ऐसा कर रहा है, और मेरा सोचना है कि इससे अन्य देश भी नवीकरणीय और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की आवश्यकता समझेंगे और उस दिशा में आगे बढ़ेंगे.”

क्या कॉप27 सम्मेलन के दौरान नागरिक समाज की भी भागेदारी होगी?
मुख्य कार्यक्रम शर्म अल-शेख़ के अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन केन्द्र में 6 नवम्बर से 18 नवम्बर तक आयोजित होगा.
अब तक लगभग 30 हज़ार देशों ने सम्मेलन में शिरकत करने के लिये पंजीकरण कराया है, जोकि सरकारों, व्यवसायों, ग़ैर-सरकारी संगठनों व नागरिक समाज समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
यूएन सन्धि में सम्बद्ध पक्षों की संख्या 197 है, जोकि वार्ता के लिये अक्सर समूहों (blocs) में संगठित होते हैं, जैसेकि जी77 और चीन, अफ़्रीका समूह, सबसे कम विकसित देशों का समूह, लातिन अमेरिका व कैरीबियाई देशों का स्वतंत्र सहबंधन.
वार्ताओं में पर्यवेक्षक भी हिस्सा लेंगे, जिनकी औपचारिक रूप से कोई भूमिका नहीं है, मगर वे हस्तक्षेप कर सकते हैं और पारदर्शिता बनाए रखने में मदद भी.
इन पर्यवेक्षकों में यूएन एजेंसी, अन्तरसरकारी संगठन, ग़ैर-सरकारी संगठन, आस्था-आधारित समूह और मीडिया हैं.
आधिकारिक स्तर पर विचार-विमर्श के अलावा, सम्मेलन कक्षों, मंडप स्थल का भी प्रबन्धन किया जाएगा, और इसके समानान्तर हज़ारों अन्य कार्यक्रम, एक दिवसीय थीम के अन्तर्गत आयोजित किये जाएंगे.
इस वर्ष की थीम हैं: वित्त पोषण, विज्ञान, युवजन व भावी पीढ़ियाँ, विकार्बनीकरण, अनुकूलन व कृषि, लैंगिक मुद्दे, जल, युवजन व नागरिक समाज, ऊर्जा, जैवविविधता और समाधान (यह कॉप की नवीनतम थीम है).
हमेशा की तरह इस बार भी जलवायु सम्मेलन दो अलग-अलग ज़ोन में आयोजित होगा – ‘ब्लू ज़ोन’ और ‘ग्रीन ज़ोन’, जोकि इस वर्ष एक दूसरे के आमने सामने मौजूद होंगे.
‘ब्लू ज़ोन’ का प्रबन्धन संयुक्त राष्ट्र के पास होगा, जहाँ वार्ता आयोजित की जाएगी और जहाँ प्रवेश के लिये सभी प्रतिभागियों को UNFCCC सचिवालय की स्वीकृति ज़रूरी होगी.

इस वर्ष ‘ब्लू ज़ोन’ में 156 मंडप (pavilions) होंगे, जोकि ग्लासगो की तुलना में दोगुनी संख्या है. यूएन की अनेक एजेंसी, देशों और क्षेत्रों का यहाँ प्रतिनिधित्व होगा, और पहली बार युवजन और कृषि-खाद्य के लिये भी एक मंडप स्थापित किया जाएगा.
‘ग्रीन ज़ोन’ का प्रबन्धन मिस्र सरकार की देखरेख में होगा. पंजीकरण होने पर इसमें प्रवेश सम्भव होगा, जहाँ सम्वाद, जागरूकता, शिक्षा व जलवायु कार्रवाई के लिये संकल्प को बढ़ावा देने के इरादे से विभिन्न कार्यक्रम, प्रदर्शनी, और कार्यशालाएँ आयोजित की जाएंगी.
मिस्र के अनुसार, ‘ग्रीन ज़ोन’ एक ऐसा मंच है जहाँ व्यावसायिक समुदाय, युवजन, नागरिक व आदिवासी समाज, शिक्षाविद, कलाकार समेत अन्य समुदायों व क्षेत्रों से लोग स्वयं को अभिव्यक्त कर पाएंगे और उनकी आवाज़ों को सुना जा सकेगा.
इस वर्ष, ‘ग्रीन ज़ोन’ में एक विशेष ‘विरोध ज़ोन’ (protest zone) के साथ बाहर स्थित एक विश्राम स्थल और छत का प्रबन्ध किया जाएगा.