फ़िलिपीन्स: नोबेल विजेता पत्रकार की सज़ा को पलटे जाने का आग्रह
संयुक्त राष्ट्र की एक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने फ़िलिपीन्स की नवनिर्वाचित सरकार से नोबेल पुरस्कार विजेता पत्रकार मारिया रेस्सा को छह वर्ष से अधिक कारावास की सज़ा दिये जाने के फ़ैसले को पलटने का आग्रह किया है. देश की एक अदालत ने कथित मानहानि के एक मामले में उन्हें दोषी पाये जाने के निर्णय को बरक़रार रखा है, जिसकी यूएन विशेषज्ञ ने निन्दा करते हुए समीक्षा किये जाने की मांग की है.
अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा के लिये प्रयासों को ध्यान में रखते हुए, पत्रकार मारिया रेस्सा को वर्ष 2021 में नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
एक स्वतंत्र समाचार माध्यम ‘रैपलर’ की सह-संस्थापक, मारिया रेस्सा को 2020 में इण्टरनैट पर मानहानि से सम्बन्धित जानकारी प्रकाशित करने का दोषी पाया गया था.
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UN_SPExperts
यह मामला फ़िलिपीन्स में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के कथित रूप से भ्रष्टाचार में शामिल होने के आरोप पर आधारित एक लेख के सिलसिले में है.
बताया गया है कि इस महीने, कोर्ट ऑफ़ अपील का यह आदेश, इसी लेख से जुड़े एक अन्य लेखक, रेनाल्डो सेण्टोस जूनियर पर भी लागू होगा.
मारिया रेस्सा के साथ उनके भी कारावास की अवधि को अनेक महीनों के लिये बढ़ा दिया गया है और यह अब छह वर्ष आठ महीने से भी अधिक हो गई है.
अभिव्यक्ति की आज़ादी व राय रखने के अधिकार पर यूएन की विशेष रैपोर्टेयर आयरीन ख़ान ने कहा कि फ़िलिपीन्स में हाल के दिनों में खोजी व स्वतंत्र पत्रकारिता को चुप कराने के लिये घटनाक्रम से उन्हें गहरी चिन्ता है.
इसके मद्देनज़र, उन्होंने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति फ़र्डिनाण्ड मार्कोस जूनियर की सरकार से मारिया रेस्सा के विरुद्ध लगाये गए आरोपों को वापिस लेने का आग्रह किया है.
पत्रकारिता पर 'अंकुश से चिन्तित'
साथ ही, ‘रैपलर’ और अन्य ऑनलाइन न्यूज़ माध्यमों के विरुद्ध लिये गए निर्णयों को भी वापिस लेने का अनुरोध किया गया है और पत्रकारों पर किये गए हमलों व हत्याओं के मामलों की जाँच कराने की भी मांग की गई है.
उन्होंने कहा, “मैं राष्ट्रपति मारकोस से आग्रह करती हूँ कि फ़िलिपीन्स में प्रैस आज़ादी के दमन का अन्त करने के लिये इस अवसर का इस्तेमाल करें.”
विशेष रैपोर्टेयर ने फ़िलिपीन्स में मानहानि के मामलों में पत्रकारों के आपराधिकरण के विरुद्ध भी अपनी आवाज़ उठाई.
आयरीन ख़ान का कहना है कि मानहानि का सहारा लिये जाने से सार्वजनिक हित में की जाने वाली रिपोर्टिंग प्रभावित होती है और यह अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार से मेल नहीं खाता है और इसलिये इसे वापिस लिया जाना चाहिये.
उन्होंने क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि आपराधिक मानहानि क़ानून का लोकतांत्रिक देश में कोई स्थान नहीं है.
मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त यूएन की विशेष रैपोर्टेयर ने चिन्ता जताई है कि 2012 में साइबर अपराध रोकथाम क़ानून, मारिया रेस्सा के मामले में पूर्व प्रभाव (retroactively) से लागू किया गया है.
उन्होंने ध्यान दिलाया कि रैपलर का जो लेख सवालों के घेरे में है, वो यह क़ानून पारित होने से पहले प्रकाशित हुआ था.
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि सत्ता के समक्ष सच बोलने का साहस करने के लिये, मारिया रेस्सा पर लगातार हमले किये जाने का यह एक और उदाहरण है.
मारिया रेस्सा फ़िलिपीन्स में अपने कामकाज के सिलसिले में अनेक आपराधिक व अन्य मामलों का सामना कर रही हैं.
रैपलर ने अपनी कवरेज में, पूर्व राष्ट्रपति रोड्रिगो डुअर्ते द्वारा ‘ड्रग्स के विरुद्ध छेड़ी गई लड़ाई’ की नियमित रूप से समीक्षा की गई.
इस विषय में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने भी व्यवस्थागत ढँग से हज़ारों संदिग्धों की मौत पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त की थी.
ऑनलाइन न्यूज़ वैबसाइट ने इण्टरनैट व सोशल मीडिया पर ग़लत सूचनाओं के प्रसार के मामलों की भी पड़ताल की, और देश में प्रैस की स्वतंत्रता, सत्यता, और लोकतंत्र की पैरवी की.
बढ़ती पाबन्दी
इस वर्ष 28 जून को, फ़िलिपीन्स के प्रतिभूति व विनिमय आयोग ने अपने 2018 के उस निर्णय पर फिर से मोहर लगा दी, जिसके तहत ‘रैपलर’ प्रकाशन की मान्यता वापिस ले ली गई थी.
आयरीन ख़ान ने अपने वक्तव्य में कहा कि इससे वहाँ कामकाज ठप होने की पुष्टि हो गई.
उन्होंने कहा कि 8 जून को, फ़िलिपीन्स के राष्ट्रीय दूरसंचार आयोग ने इण्टरनैट प्रदाताओं को स्थानीय न्यूज़ वैबसाइट्स, ‘बुलैटलेट’ और ‘पिनोये वीकली’ पर पाबन्दी लगाने के आदेश दिये थे.
इसकी वजह, कथित रूप से आतंकवाद-विरोधी क़ानूनों का हनन बताई गई है, जबकि यूएन रैपोर्टेयर के अनुसार इस आरोप के पक्ष में कोई तथ्य प्रस्तुत नहीं किये गए हैं.
मानवाधिकार विशेषज्ञ
यह वक्तव्य अभिव्यक्ति की आज़ादी व राय रखने के अधिकार पर यूएन की विशेष रैपोर्टेयर आयरीन ख़ान ने जारी किया है.
सभी स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, जिनीवा में यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त किये जाते हैं, और वो अपनी निजी हैसियत में, स्वैच्छिक आधार पर काम करते हैं.
ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और ना ही उन्हें उनके काम के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.