सूखे का संकट: बेहतर प्रबन्धन और सहनक्षमता विकास पर बल

मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र सन्धि (UNCCD) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, सूखा प्रबन्धन के विषय में, मानवता एक दोराहे पर खड़ी है, और सूखे की घटनाओं में कमी लाने के लिये जल्द से जल्द रोकथाम उपाय किये जाने की आवश्यकता है.
Drought in Numbers, 2022, शीर्षक वाली इस रिपोर्ट को आइवरी कोस्ट के आबिजान में, 9 से 20 मई तक आयोजित, सन्धि के सम्बद्ध पक्षों के 15वें सम्मेलन (कॉप15) के दौरान जारी किया गया है.
Humanity is at a crossroads when it comes to managing drought.🏜️“Drought In Numbers, 2022,” launched today at #UNCCDCOP15 calls nations to make a strong commitment to making #drought preparedness and resilience a top priority globally 🌍Press release: https://t.co/DHG5Vp5M5a pic.twitter.com/DJDdG6Egzf
UNCCD
रिपोर्ट में सूखे से निपटने के लिये वैश्विक स्तर पर पूर्ण संकल्प लिये जाने और सभी क्षेत्रों में सहनक्षमता को मज़बूती प्रदान करने की अपील की गई है.
यूएन संस्था के कार्यकारी सचिव इब्राहिम चियाउ ने कहा कि, “इस प्रकाशन के तथ्य व आँकड़े, सभी एक दिशा में इंगित करते हैं: सूखे की अवधि और असर की गम्भीरता में उठान आ रहा है, जिससे ना सिर्फ़ मानव समाज प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र पर भी असर पड़ रहा है, जिस पर सम्पूर्ण जीवन निर्भर है.”
यूएन विशेषज्ञों का मानना है कि विश्व के अनेक हिस्सों में मृदा की नमी में कमी आई है और कृषि उत्पादन के लिये यह बेहद चौंका देने वाली बात है.
साथ ही, हिमनद पिघलने की रफ़्तार में तेज़ी आई है, जिससे नदियों में ताज़ा पानी की मात्रा कम हुई है. साथ ही वर्षा रुझानों में भी परिवर्तन आया है. कुछ देशों में शुष्क परिस्थितियाँ पैदा हो रही हैं, जबकि अन्य क्षेत्रों में बाढ़ आने की घटनाएँ बढ़ रही हैं.
वर्ष 2000 से, सूखा पड़ने की घटनाओं की संख्या और अवधि में 29 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है. 1970 से 2019 के दौरान, सभी प्राकृतिक आपदाओं में से 15 फ़ीसदी सूखे की घटनाएँ थी, मगर उनकी वजह से सबसे बड़ी संख्या में मौतें (साढ़े छह लाख) हुईं.
1998 से 2017 के बीच, सूखे से लगभग 124 अरब डॉलर का वैश्विक आर्थिक नुक़सान हुआ है.
2022 में, दो अरब से अधिक जल की क़िल्लत का सामना करने के लिये मजबूर थे, और क़रीब 16 करोड़ से अधिक बच्चे, गम्भीर और लम्बी अवधि तक जारी रहने वाले सूखे का शिकार थे.
रिपोर्ट बताती है कि इस चुनौती से निपटने का सर्वोत्तम उपाय, भूमि की पुनर्बहाली है, जिसके ज़रिये मृदा (soil) की उर्वरता और जल की चक्रीय प्रक्रिया में क्षरण (जल का एक रूप से दूसरे रूप में बदलना) जैसी बुनियादी वजहों से निपटा जा सकता है.
भूदृश्यों (landscapes) का बेहतर ढँग से पुनर्निर्माण किये जाने की आवश्यकता है, जहाँ तक सम्भव हो सके, प्रकृति को सृजित करना होगा और सुसंचालित पारिस्थितिकी तंत्रों का निर्माण किया जाना होगा.
इसके समानान्तर, संकट-आधारित या प्रतिक्रियात्मक स्वरूप उठाये गए क़दमों के बजाय, सम्पूर्ण पद्धति में बदलाव लाये जाने की आवश्यकता है.
इसके लिये, संकट से पहले और जोखिमों को ध्यान में रखते हुए, बेहतर समन्वय व सहयोग के साथ सूखा प्रबन्धन तौर-तरीक़ों को अपनाया जाना होगा, जिसके लिये राजनैतिक इच्छाशक्ति व पर्याप्त वित्त पोषण की आवश्यकता होगी.
- टिकाऊ व दक्ष कृषि प्रबन्धन तकनीकों का इस्तेमाल, जिनसे कम भूमि पर, कम जल के उपयोग से ज़्यादा भोजन उगाया जाना
- पशुओं की खपत में कमी लाना या उसे पूरी तरह रोकना, और पौधे-आधारित आहार को बढ़ावा देना
- सीमाओं से परे जाकर करने वाली कारगर समय-पूर्व चेतावनी प्रणालियों को स्थापित किया जाना
- सैटेलाइट निगरानी व कृत्रिम बुद्धिमता की तैनाती के सहारे अचूक निर्णय लिये जाने पर बल देना
- मृदा स्वास्थ्य में निवेश करना
- किसानों, स्थानीय समुदायों, व्यवसायों, उपभोक्ताओं, निवेशकों व युवनज को साथ लेकर संगठित प्रयास करना