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बेहतर भूमि प्रबन्धन व पुनर्बहाली उपायों के लिये, उच्चस्तरीय यूएन सम्मेलन

अक्सर, निर्बल समुदाय, ख़राब मृदा वाले इलाक़ों में गुज़र-बसर करते हैं, जहाँ कृषि भूमि के विस्तार का दबाव बढ़ता है.
UNDP Lao PDR/Tock Soulasen Phomm
अक्सर, निर्बल समुदाय, ख़राब मृदा वाले इलाक़ों में गुज़र-बसर करते हैं, जहाँ कृषि भूमि के विस्तार का दबाव बढ़ता है.

बेहतर भूमि प्रबन्धन व पुनर्बहाली उपायों के लिये, उच्चस्तरीय यूएन सम्मेलन

जलवायु और पर्यावरण

मरुस्थलीकरण से मुक़ाबले के लिये संयुक्त राष्ट्र सन्धि (UNCCD) में शामिल पक्षों के सम्मेलन का 15वाँ सत्र, (कॉप15), सोमवार को आइवरी कोस्ट की राजधानी आबिजान में आरम्भ हुआ है, जहाँ भूमि की रक्षा और उससे प्राप्त होने वाले लाभों को मौजूदा व भावी पीढ़ी के लिये सुनिश्चित किये जाने के उपायों पर चर्चा होगी. 

यूएन एजेंसी ने चेतावनी दी है कि जमे हुए पानी से मुक्त भूमि का क़रीब 40 फ़ीसदी हिस्सा पहले ही क्षरण (degradation) का शिकार हो चुका है, जिससे जलवायु, जैवविविधता और आजीविकाओं पर गम्भीर परिणाम हो सकते हैं. 

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संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भूमि क्षरण से विश्व भर में तीन अरब 20 करोड़ लोगों के जीवन-कल्याण पर ख़तरा है. 

भूमि, कृषि और मृदा प्रबन्धन के ग़ैर-टिकाऊ इस्तेमाल व तौर-तरीक़ों को मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण व सूखे के बड़े कारकों के रूप में देखा जाता है.

बताया गया है कि मानव गतिविधियाँ, विश्व भर में 70 फ़ीसदी भूमि को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं. 

संयुक्त राष्ट्र उपमहासचिव आमिना मोहम्मद ने अपने सम्बोधन में सचेत किया कि दुनिया के सामने दो महत्वपूर्ण विकल्प हैं, जिनमें से एक को चुना जाना होगा.  

“या तो हम भूमि पुनर्बहाली से प्राप्त होने वाले लाभ को अभी पा सकते हैं, या फिर एक ऐसे विनाशकारी रास्ते पर आगे बढ़ सकते हैं, जिसने हमें, जलवायु, जैवविविधता व प्रदूषण, ग्रह के लिये तिहरे संकट पर ला कर छोड़ा है.”

एक अनुमान के अनुसार, हर वर्ष एक करोड़ 20 लाख हैक्टेयेर भूमि की हानि होती है.

मरुस्थलीकरण से मुक़ाबले के लिये यूएन सन्धि ने हाल ही में एक नई रिपोर्ट, Global Land Outlook, रिपोर्ट प्रकाशित की थी. 

यह दर्शाती है कि भूमि प्रबन्धन के मौजूदा तौर-तरीक़ों से, विश्व के क़रीब 50 फ़ीसदी आर्थिक उत्पादन, लगबग 44 हज़ार अरब डॉलर के लिये जोखिम पैदा हो रहा है.

यूएन उपप्रमुख ने कहा कि यह सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है कि जो देश हालात को बेहतर बनाना चाहते हैं, उनके लिये सहायता धनराशि उपलब्ध हो.

साथ ही, उस रक़म का ऐसे मदों में निवेश किया जाना होगा, जिससे सर्वजन के लिये एक अधिक समावेशी, टिकाऊ भविष्य सृजित किया जा सके. 

भूमि पुनर्बहाली

उपमहासचिव आमिना मोहम्मद ने ध्यान दिलाया है कि भूमि पुनर्बहाली, टिकाऊ विकास पर आधारित 2030 एजेण्डा के सभी लक्ष्यों को आपस में जोड़ता है. 

कॉप15 सम्मेलन के दौरान, क्षरण का शिकार एक अरब हैक्टेयर भूमि की वर्ष 2030 तक पुनर्बहाली के लिये ज़रूरी उपायों पर विचार-विमर्श होगा. 

साथ ही जलवायु परिवर्तन के भूमि पर होने वाले असर से निपटने और सूखा, रेत व धूल भरे तूफ़ानों और जंगलों में आग जैसी आपदाओं के बढ़ते जोखिमों से निपटने पर चर्चा होगी. 

यूएन उपप्रमुख के मुताबिक़, महिलाएँ विश्व भर में हर दिन, जल संचय करने में 20 करोड़ घण्टे लगाती हैं, जबकि भूमि की देखरेख में व्यतीत होने वाला समय और भी अधिक है.

इसके बावजूद, उनके लिये भूमि अधिकार और वित्त पोषण की सुलभता का अभाव है, जबकि भूमि पुनर्बहाली पर आधारित अर्थव्यवस्था में महिलाओं की केंद्रीय भूमिका है.

“इन अवरोधों को दूर करना और भूमि स्वामियों व साझीदारों के तौर पर महिलाओं व लड़कियों को सशक्त बनाना, भूमि पुनर्बहाली के लिये, 2030 एजेण्डा के लिये और अफ़्रीकी संघ के एजेण्डा 2063 के लिये, हालात को बदल देने वाला उपाय है.” 

निजेर के कुछ क्षेत्रों में ख़राब भूमि प्रबन्धन के कारण भूमि क्षरण का शिकार हुई है.
© FAO/Giulio Napolitano
निजेर के कुछ क्षेत्रों में ख़राब भूमि प्रबन्धन के कारण भूमि क्षरण का शिकार हुई है.

ठोस कार्रवाई की दरकार

संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद ने भी सम्मेलन को सम्बोधित किया और मानव कल्याण, आजीविकाओं और पर्यावरण को प्रभावित करने वाले गम्भीर मुद्दों से निपटने का आहवान किया.

“इसके ज़रिये, हम... मरुस्थलीकरण का मुक़ाबला करने, क्षरण का शिकार भूमि व मृदा (soil) की पुनर्बहाली करने के लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं. इनमें मरुस्थलीकरण, सूखा और बाढ़ से प्रभावित भूमि है.” 

यूएन महासभा प्रमुख ने स्पष्ट किया कि मौजूदा रुझानों को पलटा जाना, जलवायु और जैवविविधता के मुद्दे पर कारगर कार्रवाई के नज़रिये से अहम है, विशेष रूप से नाज़ुक हालात का सामना करने वाले समुदायों के लिये. 

उन्होंने सभी पक्षों से वर्ष 2030 तक भूमि क्षरण तटस्थता के लक्ष्य को हासिल किये जाने के प्रति फिर से संकल्प व्यक्त किये जाने का आहवान किया है.  

उन्होंने इसे जलवायु परिवर्तन से निपटने, जैवविविधता की रक्षा व संरक्षण करने और महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों को बनाये रखने के लिये अहम बताया है.