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दक्षिण सूडान: महिलाओं व लड़कियों के लिये ‘नारकीय माहौल’, एक यूएन रिपोर्ट

दक्षिण सूडान में संघर्ष सम्बन्धी यौन हिंसा के जो मामले दर्ज किये जाते हैं, उनमें से लगभग एक चौथाई मामले, बच्चों के ख़िलाफ़ हिंसा के होते हैं.
© UNICEF/Mackenzie Knowles-Coursin
दक्षिण सूडान में संघर्ष सम्बन्धी यौन हिंसा के जो मामले दर्ज किये जाते हैं, उनमें से लगभग एक चौथाई मामले, बच्चों के ख़िलाफ़ हिंसा के होते हैं.

दक्षिण सूडान: महिलाओं व लड़कियों के लिये ‘नारकीय माहौल’, एक यूएन रिपोर्ट

क़ानून और अपराध रोकथाम

दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि युद्धक गतिविधियों के दौरान महिलाओं व लड़कियों के ख़िलाफ़ व्यापक पैमाने पर हो रही यौन हिंसा को व्यवस्थागत लापरवाही और दण्डमुक्ति के माहौल से और बढ़ावा मिल रहा है.

सोमवार को जारी आयोग की नई रिपोर्ट, अनेक वर्षों के दौरान अनेक पीड़ितों, भुक्तभोगियों व प्रत्यक्षदर्शियों के साथ हुई बातचीत पर आधारित है. इसमें बताया गया है कि देश भर में सभी हथियारबन्द गुटों द्वारा बड़े पैमाने पर बलात्कार का प्रयोग किया जा रहा है जिसने “महिलाओं व लड़कियों के अस्तित्व को नारकीय” बना दिया है.

यूएन आयोग के अनुसार, यौन हिंसा को, युद्धक गतिविधियों में भाग लेने वाले युवाओं और पुरुषों के लिये, एक पुरस्कार व अधिकार की तरह प्रयोग किया जा रहा है.

रिपोर्ट कहती है कि इस चलन का उद्देश्य समुदायों के सामाजिक ताने-बाने को तार-तार करने के लिये अधिकतम नुक़सान पहुँचाना है, जिसमें समुदायों का लगातार विस्थापन भी शामिल है.

आयोग के अनुसार, बलात्कार को अक्सर “सैन्य रणनीति के रूप में प्रयोग किया जाता है जिसके लिये सरकार और मिलिशिया नेता ज़िम्मेदार हैं, या तो इन कृत्यों को रोकने में उनकी नाकामी के कारण, या फिर ज़िम्मेदार तत्वों को दण्डित करने में नाकाम रहने के कारण”.

शरीर, केवल युद्ध का पुरस्कार

इस भयावह रिपोर्ट की बारीकियाँ पढने वाले किसी भी व्यक्ति को ये अन्दाज़ा आसानी से हो जाएगा कि इन हादसों के पीड़ितों का जीवन किस तरह का हो जाता है. ये आपबीतियाँ, दुर्भाग्य से एक विशाल दायरे वाली समस्या की केवल छोटी झलक है. - यूएन आयोग के एक सदस्य ऐण्ड्रयू क्लैपहम

दक्षिण सूडान में यूएन मानवाधिकार आयोग की अध्यक्षा यासमीन सूका का कहना है, “ये देखना भयावह और पूर्ण रूप से अस्वीकार्य है कि महिलाओं के शरीरों को, युद्ध के पुरस्कार के रूप में व्यवस्थागत रूप में इतने बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है.”

यासमीन सूका ने सरकार व अधिकारों द्वारा तत्काल और नज़र आने वाली कार्रवाई किये जाने की पुकार लगाते हुए कहा, “दक्षिण सूडान के पुरुषों को, महिलाओं के शरीरों को अपने स्वामित्व और नियंत्रण वाली ऐसी सम्पत्ति मानना बन्द करना होगा जिसका वो शोषण कर सकें.”

यौन हिंसा की भुक्तभोगियों व पीड़ितों ने बयान किया है कि किस तरह उन्हें क्रूर तरीक़े से सामूहिक बलात्कार का लम्बे समय तक निशाना बनाया गया है और अक्सर, उनके पति, माता-पिता और बच्चों को, असहाय देखने के लिये विवश किया गया है.

हर आयु की महिलाओं के साथ बार-बार बलात्कार किया गया है जबकि आसपास ही अन्य महिलाओं का भी बलात्कार किया गया है.

छह पुरुषों द्वारा बलात्कार की पीड़िता एक महिला ने बताया कि उसके हमलावरों ने उसे अपने साथ हुए बलात्कार को “अच्छा” बताने के लिये विवश किया, वरना उसके साथ और भी ज़्यादा बलात्कार करने की धमकी दी.

यूएन आयोग का कहना है कि इन हादसों के परिमाणस्वरूप उत्पन्न होने वाले सदमों और तकलीफ़ों से सामाजिक ताने-बाने का पूर्ण विध्वंस पक्का है.

भयावह हमले

यूएन आयोग के एक सदस्य ऐण्ड्रयू क्लैपहम का कहना है, “इस भयावह रिपोर्ट की बारीकियाँ पढने वाले किसी भी व्यक्ति को ये अन्दाज़ा आसानी से हो जाएगा कि इन हादसों के पीड़ितों का जीवन किस तरह का हो जाता है. ये आपबीतियाँ, दुर्भाग्य से एक विशाल दायरे वाली समस्या की केवल छोटी झलक है.”

“सरकार के भीतर व बाहर सभी लोगों को इस बारे में सोचना होगा कि यौन हिंसा को तत्काल रोकने और पीड़ितों को पर्याप्त सहायता व देखभाल मुहैया कराने के लिये क्या किया जा सकता है.”

एक महिला ने बताया कि उसकी एक मित्र महिला के साथ, एक पुरुष ने जंगल में बलात्कार किया और बाद में कहा कि वो और ज़्यादा आनन्द लेना चाहता है. और फिर उसने एक जलाऊ लकड़ी से तब तक उस महिला के साथ बलात्कार किया जब तक कि अत्यधिक रक्तस्राव से उसकी मृत्यु नहीं हो गई.

किशोर वय लड़कियों ने बताया है कि उनके साथ बलात्कार करने वालों ने उन्हें अत्यधिक रक्तस्राव होते हुए भी मरने के लिये बेसहारा छोड़ दिया था.

चिकित्सा कर्मियों ने भी बताया है कि बहुत सी महिलाओं के साथ तो उनके जीवन में अनेक बार बलात्कार किया गया है.

दक्षिण सूडान की एक महिला जिन्हें उनके पति ने मारा-पीटा, जिसके बाद उन्होंने अपने भाई के घर में पनाह ली है.
© UNICEF/Albert Gonzalez Farran
दक्षिण सूडान की एक महिला जिन्हें उनके पति ने मारा-पीटा, जिसके बाद उन्होंने अपने भाई के घर में पनाह ली है.

जीवन भर के लिये सदमा

रिपोर्ट में बताया गया है कि अनेक ऐसी महिलाएँ जो बलात्कार के परिणाम स्वरूप हुए बच्चों को पाल रही हैं, और रिपोर्ट के अनुसार बलात्कार की शिकार कुछ महिलाओं ने ये भी बताया कि उन्हें यौन संक्रमण हो गया, जिसमें एचआईवी का संक्रमण भी शामिल था.

महिलाओं के साथ बलात्कार और गर्भावस्था के बाद, अक्सर उनके पति व परिवार उन्हें छोड़ देते हैं जोकि निराश्रित व निःसहाय हालात में रह जाती हैं. कुछ गर्भवती महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया तो उनका गर्भ गिर गया.

बहुत से पति अपनी पत्नी और बहुत से पिता अपनी बेटियों की तलाश वर्षों से, उनके बारे में किसी ठोस जानकारी के बिना ही करते रहे हैं. उनमें से कुछ को मालूम हुआ कि उनसे सम्बन्धित महिलाओं व लड़कियों को, उनके प्रतिद्वन्दी नस्लीय गुटों ने अग़वा किया और उनके साथ अपने बहुत से बच्चे पैदा किये. ऐसा ही एक पुरुष तो इतने सदमें में था कि उसने आत्महत्या करने की इच्छा ज़ाहिर की.

यूएन आयोग ने बताया है कि इस तरह के यौन हमले कोई इक्का-दुक्का या अचानक हुई गतिविधियाँ नहीं थीं, बल्कि आमतौर पर देखा गया है कि सशस्त्र गुट, जानबूझकर व सक्रिय रूप से महिलाओं व लड़कियों की तलाश करते हैं, गाँवों पर हमलों के दौरान बलात्कार किये जाते हैं, और ये सब योजनाबद्ध तरीक़े से और बहुत बड़ै पैमाने पर होता है.

जवाबदेही बनाम दण्डमुक्ति

यूएन आयोग ने बताया है कि राजनैतिक अभिजात्य वर्ग द्वारा, सुरक्षा क्षेत्र में सुधार करने में नाकामी और तमाम पक्षों से सम्बद्ध सुरक्षा बलों की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में नाकाम रहने के कारण, एक ऐसा माहौल है जिसमें दक्षिण सूडान में महिलाओं को एक मुद्रा की तरह समझा जाता है.

बलात्कार व यौन हिंसा के मामलों के लिये, लगभग सर्वव्यापक दण्डमुक्ति के माहौल के कारण, इन अत्याचारों के लिये ज़िम्मेदार तत्व, अक्सर किसी क़ानूनी कार्रवाई या दण्ड से बच जाते हैं.

यूएन आयोग ने, दक्षिण सूडान की सरकार से गम्भीर अपराधों के लिये दण्डमुक्ति को समाप्त करने की ज़िम्मेदारी पूरी करने का आहवान किया है.

यूएन आयोग का कार्यक्षेत्र

दक्षिण सूडान में यूएन मानवाधिकार आयोग एक स्वतंत्र संगठन है जिसका शासनादेश (Mandate) यूएन मानवाधिकार परिषद से जारी हुआ था, जिसके अनुरूप, मार्च 2016 में इस आयोग का गठन हुआ था.

इस आयोग पर दक्षिण सूडान में मानवाधिकारों की स्थिति की जाँच-पड़ताल करने और, मानवाधिकार उल्लंघन व दुर्व्यवहार से सम्बन्धित तथ्यों व परिस्थितियों के बारे में रिपोर्ट तैयार करने की ज़िम्मेदारी है.

इनमें ऐसे उल्लंघन मामलों की ज़िम्मेदारी के बारे में स्पष्टता किया जाना भी शामिल है जो राष्ट्रीय या अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अन्तर्गत अपराध हैं.