'युद्धापराध' माना जा सकता है दक्षिण सूडान में मानवाधिकारों का हनन

हिंसा पीड़ित लोगों को विस्थापन के लिए मजबूर होना पड़ा है.
UNICEF/UN0236862/Rich
हिंसा पीड़ित लोगों को विस्थापन के लिए मजबूर होना पड़ा है.

'युद्धापराध' माना जा सकता है दक्षिण सूडान में मानवाधिकारों का हनन

मानवाधिकार

दक्षिण सूडान में जारी मानवाधिकार हनन के मामलों के चलते हज़ारों लोग घर छोड़ने के लिए मजबूर हुए हैं. इससे चिंतित मानवाधिकार आयोग ने स्थानीय प्रशासन और अन्य पक्षों से पांच महीने पहले शांति समझौते पर नए सिरे से हुई सहमति का सम्मान करने और उसे लागू करने का आग्रह किया है. 

दक्षिण सूडान की स्थिति पर जिनिवा में मानवाधिकार परिषद को सौंपी जाने वाली तीसरी रिपोर्ट में ये बातें सामने आई हैं. इसके अनुसार लगातार हो रहे बलात्कार, यौन अपराधों और मानवाधिकारों के हनन को युद्धापराध की श्रेणी में रखा जा सकता है.

आयोग की अध्यक्ष यासमीन सूका ने बताया, "लड़ाके जिस तरह से गांवों पर हमले और लूटपाट कर रहे हैं, महिलाओं को यौन दासी बना रहे हैं और घरों को आग लगा रहे हैं, उसका एक निश्चित स्वरूप है. बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, जननांग विकृति, अपहरण और मारकाट होना दक्षिण सूडान में आम बात होती जा रही है. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ये अपराध इसलिए हो रहे हैं क्योंकि दंडमुक्ति इतना रच बस गई है कि हर तरह से नियमों को तोड़ा जाता है."

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) का कहना है कि यौन हिंसा का शिकार होने वालों में 25 फ़ीसदी बच्चे हैं. यहां तक कि 7 साल जितनी छोटी बच्चियां भी बलात्कार का शिकार हुई हैं. बुज़ुर्ग और गर्भवती महिलाओं का भी बलात्कार हुआ है. आयोग को ऐसी भी रिपोर्टें मिली हैं जिनके मुताबिक़ पुरुषों को यौन हिंसा का शिकार होना पड़ा है. पुरुषों और लड़कों के प्रति यौन और लिंग आधारित हिंसा के मामले कम ही सामने आते हैं क्योंकि पीड़ितों को सामने आने से समाज में बदनामी का भय रहता है. 

दक्षिण में स्थित यूनिटी प्रांत के लीर में मामलों की जांच में पाया गया कि आठ हज़ार से ज़्यादा युवाओं को इन शब्दों के साथ हिंसा के लिए उकसाया गया: "तुम जाओ और मवेशियों को ले आओ, सुंदर महिलाओं का अपहरण और बलात्कार करो, उनकी संपत्ति को लूट लो. " उन्हें ये भी कहा गया कि लड़ाई में मारे गए परिजनों का बदला लेने के लिए यही उपयुक्त समय हैऔर ऐसा अवसर उन्हें फिर नहीं मिलेगा. 

रिपोर्ट में कहा गया है कि आज़ादी के लिए दशकों तक हिंसा होने और जवाबदेही तय न हो पाने की वजह से ही दक्षिण सूडान में फिर से हिंसा हो रही है. स्थायी शांति के लिए वास्तविक और विश्वसनीय ढंग से जवाबदेही निर्धारण और न्याय सुनिश्चित करना आवश्यक है ताकि हज़ारों पीड़ितों की ज़रूरतों को पूरा किया ज सके. 

आयुक्त एंड्रयू क्लैपहैम ने कहा, "मानवाधिकार हनन और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों के उल्लंघन के लिए ज़िम्मेदार कुछ लोगों की जवाबदेही तय करने में हम मानते हैं कि सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं..लेकिन हमें समझना होगा कि सज़ा का भय न होना आम बात हो गई है."

2015 के शांति समझौते के अनुसार हाइब्रिड अदालत के साथ साथ सत्य, समन्वय और बेहतरी के लिए आयोग का गठन होना है लेकिन आयोग चिंता जताता रहा है कि संक्रमणकालीन न्यायिक तंत्र तैयार करने में प्रगति नहीं हो पा रही है. ऐसे में आशा व्यक्त की गई है कि स्थायी शांति के लिए इन संस्थाओं की अहमियत को समझते हुए  इनके गठन के लिए ठोस प्रयास किए जाएंगे. 

संक्रमणकालीन न्यायिक एजेंडा की रूपरेखा तैयार करते समय पीड़ित समुदायों, विशेषकर महिलाओं. शरणार्थियों और विस्थापितों, को शामिल किया जाना चाहिए .  हाल ही में नए समझौते पर नए सिरे से जो रज़ामंदी हुई है कि उसमें सरकारी संस्थानों में महिलाओं की 35 फ़ीसदी तक हिस्सेदारी का प्रावधान रखा गया है और सभी पार्टियों से इसका सम्मान करने और लागू करने का अनुरोध किया गया है.