वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

'बलात्कार ग़लत है, मगर बधियाकरण और मृत्युदण्ड भी उपयुक्त जवाब नहीं'

लाइबेरिया में बलात्कार विरोधी पोस्टरों के साथ पुरुषों का मार्च
Photo: UNMIL/Staton Winter
लाइबेरिया में बलात्कार विरोधी पोस्टरों के साथ पुरुषों का मार्च

'बलात्कार ग़लत है, मगर बधियाकरण और मृत्युदण्ड भी उपयुक्त जवाब नहीं'

क़ानून और अपराध रोकथाम

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने कहा है कि बलात्कार और अन्य तरह की यौन हिंसा करने वालों को न्याय के कटघरे में अवश्य लाया जाए, मगर उन्हें मृत्युदण्ड या किसी अन्य तरह की प्रताड़ना का शिकार बनाया जाना कोई उपयुक्त जवाब नहीं है.

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने एक वक्तव्य जारी करके तमाम देशों की सरकारों से बलात्कार और अन्य तरह की यौन हिंसा के अपराधों के ख़िलाफ़ कार्रवाई तेज़ करने, न्याय की उपलब्धता बेहतर बनाने और पीड़ितों को हर ज़रूरी सहायता मुहैया कराने का आहवान किया है.

Tweet URL

साथ ही, इस तरह के अपराधों की त्वरित जाँच सुनिश्चित करने और इन अपराधों के ज़िम्मेदार तत्वों को न्याय के कटघरे में लाने के ठोस इन्तज़ाम किये जाएँ.

वीभत्स अपराध और न्याय की पुकार

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त का ये बयान ऐसे समय में आया है जब हाल के समय में दुनिया के अनेक हिस्सों में वीभत्स बलात्कार के अनेक मामले सामने आए हैं, इनमें अल्जीरिया, बांग्लादेश, भारत, मोरक्को, नाईजीरिया, पाकिस्तान और ट्यूनीशिया भी शामिल हैं.

इन वीभत्स यौन हिंसा अपराधों ने लोगों में भारी ग़ुस्सा भर दिया है और पीड़ितों को न्याय मुहैया कराने की माँग बढ़ी है.

मिशेल बाशेलेट ने कहा, “मैं लोगों के ग़ुस्से में उनकी भागीदार हूँ और इन हिंसक अपराधों के पीड़ितों, और जो लोग न्याय की माँग के लिये आवाज़ बुलन्द कर रहे हैं, उनके साथ एकजुटता से खड़ी हूँ.”

“लेकिन मैं इस बात को लेकर चिन्तित भी हूँ कि कुछ स्थानों पर क्रूर और अमानवीय दण्ड की माँग बढ़ रही है, और कुछ देशों में तो इस तरह के क़ानून भी बना दिये गए हैं जिनमें यौन हिंसक अपराधों के लिये ज़िम्मेदार लोगों को मृत्युदण्ड का प्रावधान कर दिया गया है.”

नसबन्दी (बधियाकरण) और मृत्युदण्ड

संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार प्रमुख ने इस तरह के क्रूर क़ानूनों का उदाहरण देते हुए बताया कि नाइजीरिया के कदूना प्रान्त में पिछले महीने एक ऐसा ही क़ानूनी संशोन किया गया है. इसमें पुरुष बलात्कारियों की नसबन्दी (बधियाकरण) करने और इस तरह के अपराधों की दोषी पाई गई महिलाओं की डिम्बवाही नलिकाएँ (Fallopian Tubes) निकाल दिये जाने का प्रावधान किया गया है. 

अगर दोषी की उम्र 14 वर्ष से कम है तो उसे ये प्रक्रियाएँ पूरी करने के बाद मृत्युदण्ड दिया जाएगा.

इस सप्ताह ही, बांग्लादेश की सरकार ने एक क़ानूनी संशोधन को मंज़ूरी दी है जिसमें बलात्कार करने वालों को मृत्युदण्ड का प्रावधान किया गया है.

पाकिस्तान में भी, बलात्कार के दोषियों को सार्वजनिक रूप से फाँसी दिया जाने और उनकी नसबन्दी किये जाने की माँग उठती रही है.

अन्य स्थानों पर मृत्युदण्ड का प्रावधान किये जाने की माँगें उठी हैं.

न्याय की सुनिश्चितता कुँजी है

मिशेल बाशेलेट ने कहा कि मृत्युदण्ड की माँग करने के पीछे ये दलील दी जाती है और समझा जाता है कि ऐसा करने से बलात्कार होने से रोकने में मदद मिलेगी, लेकिन इसके समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं हैं.

“सबूतों से मालूम होता है कि दण्ड दिये जाने की सुनिश्चितता इस तरह के अपराध होने से रोकने में मदद करती है, ना कि दण्ड की गम्भीरता.”

उन्होंने कहा, “दुनिया भर के ज़्यादातर देशों में, एक प्रमुख समस्या ये है कि यौन हिंसा के पीड़ितों को प्रथमतः तो न्याय मिलता ही नहीं है – इसके पीछे, कलंकित होने की मानसिकता, या फिर बदले की कार्रवाई होने का भय, लैंगिक पूर्वाग्रह और सत्ता का असन्तुलन, पुलिस और न्यायिक प्रशिक्षण की कमी,  ऐसे क़ानून जो किछ तरह की यौन हिंसा का नज़रअन्दाज़ करते हैं या उनके बारे में नरमी बरतते हैं, और पीड़ितों को सुरक्षा की कमी जैसले कारक ज़िम्मेदार हैं.”

महिलाओं की वृहद भूमिका

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने ज़ोर देकर कहा कि मृत्युदण्ड और नसबन्दी, बधियाकरण या डिम्बवाही नलिकाएँ हटाए जाने जैसी सज़ाओं से, ना तो न्याय प्राप्ति के रास्ते में मौजूद अनगिनत बाधाओं दूर होंगी, और ना ही बलात्कार और यौन हिंसा की पहले से रोकथाम कनरे में कोई मदद मिलेगी.

“सच तो ये है कि मृत्युदण्ड ग़रीबों और हाशियें पर रहने वाले लोगों के ख़िलाफ़ लगातार और ग़ैर-आनुपातिक रूप में भेदभाव करती है, और अक्सर इसका नतीजा मानवाधिकारों के और ज़्यादा उल्लंघन के रूप में होता है.”

उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि किसी व्यक्ति की नसबन्दी करना या उसे बधिया करना भी अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून का उल्लंघन है. 

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने कहा, “मैं देशों से अपील करती हूँ कि बलात्कार और अन्य तरह की यौन हिंसा जैसे अभिशाप पर क़ाबू पाने के लिये पीड़ित केन्द्रित रुख़ अपनाया जाए. ये बहुत ज़रूरी है कि इस तरह के अपराधों को रोकने और उनसे निपटने के लिये उपाय निर्धारित करने की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जाए.”

“साथ ही, क़ानून लागू करने वाली एजेंसियाँ (पुलिस व जाँच एजेंसियाँ) और न्यायिक अधिकारों को इस तरह के मामले सम्भालने के लिये समुचित व उपयुक्त प्रशिक्षण दिया जाए.”

उन्होंने कहा, “इस तरह के वीभत्स और हैवानियत भरे कृत्य करने वालों के लिये क्रूर और बेरहम दण्ड देने की माँग कितनी भी गहरी लगे, हमें ख़ुद को भी मानवाधिकारों के और ज़्यादा उल्लंघन करने में शामिल करने से बचना होगा.”