आगों और बाढ़ों के मौसम को शान्त करने के लिये जलवायु कार्रवाई की दरकार
संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद ने दुनिया भर में चरम मौसम की बढ़ती घटनाओं से प्रभावित होने वाले देशों की बढ़ती संख्या की पृष्ठभूमि में, सोमवार को ध्यान दिलाते हुए, विश्व में तापमान वृद्धि को, अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत डेढ़ डिग्री तक सीमित रखने की अहमियत को रेखांकित किया है.
Addressing the climate crisis, bold #ClimateAction is urgent before it's too late.This requires a renewed action from donors to allocate at least half of public climate finance to adaptation and resilience, ensuring we keep the promise of the #ParisAgreement. pic.twitter.com/WRwuoEXztb
AminaJMohammed
आमिना जे मोहम्मद ने जलवायु कार्रवाई पर एक उच्चस्तरीय बैठक में कहा, “पूरी पृथ्वी में आग और बाढ़ों का मौसम फैला हुआ नज़र आता है, जिनसे निर्धन और धनी दोनों ही तरह के देशों में, बेहद कमज़ोर हालात में जीवन जीने वाली आबादी ज़्यादा प्रभावित हो रही है.”
आमिना जे मोहम्मद ने, नवम्बर 2021 में, स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो शहर में होने वाले जलवायु सम्मेलन कॉप26 के सन्दर्भ में आयोजित जलवायु कार्रवाई बैठक को, वीडियो के ज़रिये सम्बोधित करते हुए कहा कि 1.2 डिग्री की वृद्धि के प्रभाव पहले ही नज़र आ रहे हैं.
उन्होंने कहा, “दुनिया भर में और ज़्यादा देश व आबादियों को और भी ज़्यादा विनाशकारी परिणाम भुगतने पड़ेंगे, ख़ासतौर से बेहद कमज़ोर हालात में रहने वालों को, जो जलवायु परिवर्तन के लिये भी बहुत कम ज़िम्मेदार हैं.”
“ये प्रभाव अर्थव्यवस्थाओं, समुदायों और पारिस्थितिकि तंत्रों से भी पार हो जाएंगे, जो विकास के लाभों को ख़त्म कर देंगे, जिनसे निर्धनता और ज़्यादा गहरी होगी, प्रवासन बढ़ेगा और तनाव भी बढ़ेंगे.”
जलवायु न्याय
उप महासचिव ने कहा है कि वर्ष 2050 तक नैट शून्य वैश्विक अर्थव्यवस्था की तरफ़, साहसिक और निर्णायक क़दम उठाकर, दुनिया अब भी वैश्विक तापमान वृद्धि को, डेढ़ डिग्री के नीचे तक सीमित कर सकती है.
उन्होंने कहा, “अभी कार्रवाई करना, दरअसल जलवायु न्याय का एक प्रश्न है. और हमारे पास समाधन भी हैं.”
अन्तर को ख़त्म करना
अनुकूलन और सहनक्षमता निर्माण में शुरुआती स्तर पर ही संसाधन निवेश करना, एक नैतिक ज़रूरत होने के साथ-साथ, एक स्पष्ट आर्थिक दलील भी है.
उन्होंने कहा, “ज़िन्दगियाँ बचाई जाएंगी, और आजीविकाओं की रक्षा होगी.”
इसीलिये, महासचिव ने दानदाताओं और बहुपक्षीय विकास बैंकों से, कुल सार्वजनिक जलवायु वित्त का, लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा, अनुकूलन व सहनक्षमता निर्माण के लिये निर्धारित करने का आग्रह किया है.
इसके बावजूद जिन देशों को इस सहायता की ज़रूरत है, उन्हें जलवायु वित्त हासिल करने में गम्भीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.