अफ़ग़ानिस्तान: स्थानीय आबादी के लिये विनाशकारी नतीजों की आशंका, कार्रवाई की पुकार
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने आगाह किया है कि अफ़ग़ानिस्तान में हिंसा, मानवाधिकार उल्लंघन व दुर्व्यवहारों के बढ़ते मामलों का स्थानीय लोगों पर त्रासदीपूर्ण असर हो रहा है. उन्होंने देश में मौजूदा घटनाक्रम और हिंसा के विनाशकारी नतीजों को टालने के लिये तत्काल कार्रवाई किये जाने का आग्रह किया है.
यूएन में मानवाधिकार मामलों की प्रमुख ने मंगलवार को एक बयान जारी करके सचेत किया कि हाल की कुछ घटनाओं को युद्धापराधों और मानवता के विरुद्ध अपराधों की श्रेणी में रखा जा सकता है.
ग़ौरतलब है कि अफ़ग़ानिस्तान में विदेशी सैनिकों की वापसी शुरू होने के बाद से, तालिबान के हमलों और हिंसक घटनाओं में तेज़ी आई है.
ख़बरों के अनुसार, 9 जुलाई से अब तक चार शहरों – लश्कर गाह, कन्दाहार, हेरात और कुन्दूज़ – में कम से कम 183 आम लोगों की मौत हुई है और एक हज़ार 181 लोग घायल हुए हैं. इनमें बच्चे भी हैं.
यूएन कार्यालय ने चिन्ता जताई है कि हताहतों की वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक होने की आशंका है.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में लोग, अतीत में मानवाधिकार उल्लंघनों के बदतर मामलों की वापसी का गहरा डर बयान कर रहे हैं.
“महिलाओं, अल्पसंख्यकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और नाज़ुक हालात में रह रहे अन्य लोगों को विशेष सुरक्षा की आवश्यकता है.”
“जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध नए सिरे से अत्याचार शुरू होने का जोखिम बेहद वास्तविक है.”
हिंसा पर विराम का आग्रह
यूएन मानवाधिकार कार्यालय प्रमुख ने कहा, “युद्धरत पक्षों को और ज़्यादा रक्त ना बहाने की क़ातिर, लड़ाई रोकनी होगी. तालिबान को शहरों में अपने सैन्य अभियानों पर विराम लगाना होगा.”
उन्होंने चेतावनी जारी करते हुए कहा कि आपसी बातचीत और एक शान्तिपूर्ण समाधान के अभाव में, पहले से बदतर हालात और भी ज़्यादा ख़राब हो जाएंगे.
यूएन की शीर्ष अधिकारी ने सभी देशों से, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तर पर, अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने का आग्रह किया है ताकि लड़ाई रोकी जा सके.
अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन और यूएन मानवाधिकार कार्यालय के मुताबिक़ अधिकांश आम नागरिक, ज़मीनी लड़ाई के दौरान हताहत हुए हैं. हवाई हमलों की वजह से भी जानमाल की हानि हुई है.
मई 2021 में तालेबान के हमलों में आई तेज़ी से अब तक दो लाख 41 हज़ार से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं. शहरी इलाक़ों में लड़ाई के कारण सड़कों, पुलों व अन्य नागरिक प्रतिष्ठानों को गहरा नुक़सान हुआ है.
हेलमन्द प्रान्त की राजधानी लश्कर गाह में शहरी इलाक़ों में आम नागरिकों पर हिंसा का भीषण असर हुआ है. ख़बरों के मुताबिक़ 28 जुलाई से 13 दिनों के भीतर ही, 139 लोगों के मारे जाने और 481 के घायल होने की सूचना है.
हिंसा प्रभावित इलाक़ो में संचार व्यवस्था पर भी असर हुआ है, घायलों के पास अस्पताल जाना भी मुश्किल हो गया है और खाद्य सामग्री व दवाएँ भी ख़त्म हो रही हैं.
तालेबान का बढ़ता प्रभाव
तालेबान ने तेज़ी से आगे बढ़ते हुए अब तक 192 ज़िला प्रशासनिक केन्द्रों पर क़ब्ज़ा कर लिया है.
कन्दाहार, लश्कर गाह, हेरात, ग़ज़नी, फ़ैज़ाबाद, मज़ार-ए-शरीफ़ सहित अन्य प्रान्तीय राजधानियों पर हमलों और कुछ अन्य पर क़ब्ज़ा किये जाने से स्थानीय आबादी में भय व्याप्त है.
यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने बताया कि तालिबान के नियंत्रण में आए इलाक़ों में पूर्व व मौजूदा सरकारी अधिकारियों व उनके परिजनों पर हमलों की ख़बरें हैं. ख़बरों के मुताबिक़ बिना मुक़दमा चलाए या सुनवाई के ही लोगों को मौत की सज़ाएँ दी जा रही है.
घर, स्कूल, स्वास्थ्य केन्द्र तबाह किये गए हैं और बड़े पैमाने पर आईईडी विस्फोटकों का जाल बिछाया गया है.
यूएन एजेंसी के मुताबिक़, व्यथित कर देने वाली ऐसी कुछ घटनाओं की भी रिपोर्टें मिली हैं, जिनमें अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानूनों का उल्लंघन किया गया है.
तालेबान द्वारा अफ़ग़ान सुरक्षा बलों के सदस्यों को मौत के घाट उतारे जाने की भी ख़बरें हैं, जबकि कुछ मामलों में आत्मसमर्पण करने पर उन्हें सुरक्षा की गारण्टी मुहैया कराई गई थी.
स्थानीय अफ़ग़ान राष्ट्रीय पुलिस को ऐसी भी आदेश जारी किये गए हैं जिनमें बन्दी बनाए गए और आत्मसमर्पण कर रहे तालेबान सदस्यों को भी ना बख़्शे जाने की बात कही गई है. ऐसा किया जाने पर अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानूनों के तहत पाबन्दी है.
मिशेल बाशेलेट ने सभी युद्धरत पक्षों से आम लोगों की रक्षा सुनिश्चित किये जाने का आग्रह किया है, विशेषकर आबादी वाले इलाक़ों में.
उन्होंने कहा है कि हमलों में आम लोगों को निशाना बनाया जाना अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानूनों का गम्भीर हनन है और इसे युद्धापराध की श्रेणी में रखा जा सकता है.
मानवाधिकारों पर मंडराता ख़तरा
तालेबान के क़ब्ज़े वाले इलाक़ो में मानवाधिकारों पर थोपी गई सख़्त पाबन्दियों पर भी गहरी चिन्ता ज़ाहिर की गई है. इन पाबन्दियों में, महिलाओं को ख़ास तौर पर निशाना बनाया गया है.
“लोगों का यह डर सही है कि पिछले दो दशकों में मानवाधिकारों में हुई प्रगति, तालेबान के हाथों में सत्ता आने से, पलट जाएगी.”
उन्होंने बताया कि ऐसी क़बरें मिली हैं कि तालेबान के नियंत्रण वाले विभिन्न ज़िलों में महिलाओं व लड़कियों को, किसी पुरुष को साथ लिये बिना, बाहर जाने पर पाबन्दी लगा दी गई है.
उन्होंने ऐसी घटनाओं को महिलाओं के अधिकारों का हनन, और उनके परिवारों के आर्थिक व सामाजिक अधिकारों का उल्लंघन क़रार दिया है.
अनेक स्थानों पर, तालेबान ने कठोर चेतावनी जारी की है कि इन नियमों का उल्लंघन किये जाने पर सख़्त सजाएँ दी जाएंगी.
इन नियमों का उल्लंघन किये जाने पर कुछ महिलाओं की सार्वजनिक रूप से पिटाई किये जाने और कोड़े लगाए जाने की ख़बरें हैं.
बल्ख़ प्रान्त में 3 अगस्त को एक महिला अधिकार कार्यकर्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई.
यूएन एजेंसी ने अभिव्यक्ति की आज़ादी पर लगाई गई सख़्त पाबन्दियों और मौजूदा हालात में पत्रकारों द्वारा कामकाज जारी रखने की क्षमता पर असर पड़ने पर गम्भीर चिन्ता जताई गई है.
यूएन कार्यालय ने कहा कि देश में मानवाधिकारों की स्थिति की निगरानी जारी रहेगी.
साथ ही मानवाधिकार परिषद और सुरक्षा परिषद से आने वाले दिनों में बर्बरतापूर्ण घटनाओं की रोकथाम करने और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये कार्रवाई किये जाने का आहवान किया गया है.