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प्रकृति पर तीन बड़े ख़तरे - एक अरब हैक्टेयर क्षरित भूमि की बहाली पर बल

प्राकृतिक पर्यावासों को बहाल कर, जलवायु व जैविविविधता संकटों से निपटने में मदद मिल सकती है.
CIFOR/Terry Sunderland
प्राकृतिक पर्यावासों को बहाल कर, जलवायु व जैविविविधता संकटों से निपटने में मदद मिल सकती है.

प्रकृति पर तीन बड़े ख़तरे - एक अरब हैक्टेयर क्षरित भूमि की बहाली पर बल

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन, प्रकृति क्षरण और प्रदूषण – तीन बड़े ख़तरों से निपटने के लिये, अगले एक दशक में चीन के आकार के बराबर क्षेत्र को बहाल किये जाने की आवश्यकता है. खाद्य एवँ कृषि संगठन (FAO) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने गुरुवार को एक नई रिपोर्ट जारी करते हुए सचेत किया है कि प्रकृति जितनी मात्रा में संसाधनों को टिकाऊ ढँग से प्रदान कर सकती है, मानवता उसका करीब डेढ़ गुना इस्तेमाल कर रही है.

पारिस्थितिकी तंत्रों की पुनर्बहाली के दशक की शुरुआत पर एक रिपोर्ट जारी की गई है, जिसमें वर्ष 2030 तक, कम से कम एक अरब हैक्टेयर क्षरित भूमि को बहाल किये जाने की पुकार लगाई है.

साथ ही, इस प्रतिबद्धता को महासागरों के लिये भी लागू किये जाने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है. इसके अभाव में वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिये ख़तरा बढ़ने की आशंका व्यक्त की गई है.

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यूएन पर्यावरण एजेंसी की कार्यकारी निदेशक इन्गर एण्डरसन और यूएन कृषि एजेंसी के महानिदेशक क्यू डोन्गयू ने रिपोर्ट को जारी करते हुए सभी देशों से वैश्विक पुनर्बहाली प्रयासों का संकल्प लिये जाने का आग्रह किया है.

उन्होंने कहा कि इन प्रयासों के ज़रिये प्राकृतिक स्थलों की रक्षा व उन्हें बढ़ावा मिलेगा, स्वच्छ वायु व जल सुनिश्चित किया जा सकेगा, चरम मौसम की घटनाओं में कमी आएगी और मानव स्वास्थ्य, जैवविविधता को बढ़ावा मिलेगा.

यूएन एजेंसियों के प्रमुखों ने बताया कि क्षरण की वजह से तीन अरब से अधिक लोगों के कल्याण पर असर पड़ा रहा है, जोकि विश्व आबादी का 40 फ़ीसदी है.

यूएन एजेंसियों ने इस रिपोर्ट में चेतावनी जारी की है कि प्रकृति जितनी मात्रा में संसाधनों को टिकाऊ ढँग से प्रदान कर सकती है, मानवता उसका 1.6 गुना इस्तेमाल कर रही है.

वनों को नुक़सान

यूएन रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1990 के दशक से अब तक, 42 करोड़ हैक्टेयर वनभूमि की कटाई हुई है, और सदस्य देश वर्ष 2030 तक वनभूमि को तीन फ़ीसदी बढ़ाने के संकल्प को पूरा करने से दूर हैं.

यूएन एजेंसियों ने स्पष्ट किया है कि व्यापक स्तर पर पारिस्थितिकी तंत्रों को ढहने और जैवविविधता को लुप्त होने से बचाने के लिये, महज़ संरक्षण प्रयासों पर निर्भरता अपर्याप्त होगी.

इस क्रम में उन्होंने देशों से आग्रह किया है कि कोविड-19 से पुनर्बहाली योजनाओं में कार्बन उत्सर्जन पर निर्भर सैक्टरों से सब्सिडी को हटाया जाना होगा.

यूएन पर्यावरण एजेंसी में जलवायु एवँ प्रकृति शाखा के प्रमुख टिम क्रिस्टोफ़रसन ने बताया कि संरक्षण प्रयासों के साथ-साथ, पेरिस जलवायु समझौते में तय लक्ष्यों को भी पूरा किया जाना होगा.

इस समझौते में वैश्विक औसत तापमान में बढ़ोत्तरी को पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर से दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने का लक्ष्य रखा गया है और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किये जाने के प्रयास किये जाने हैं.   

प्राकृतिक संरक्षा

उन्होंने कहा, “अगर हम ऐसा ज़रूरी स्तर पर करते हैं, तो इसके जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता से इतर भी लाभ होंगे...खाद्य सुरक्षा के लिये, स्वास्थ्य के लिये, स्वच्छ जल के लिये, रोज़गारों के लिये.”

उनके मुताबिक पुनर्बहाली से इन सभी टिकाऊ विकास लक्ष्यों में मदद मिल सकती है.

वन, नदी, महासागर और तटीय इलाक़े – ये पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु परिवर्तन, प्रकृति क्षरण और प्रदूषण के तिहरे ख़तरों से प्राकृतिक संरक्षण प्रदान करते हैं.

मगर मौजूदा हालात में भावी पीढ़ियों के कल्याण के लिये ख़तरा पैदा हो रहा है.

रिपोर्ट के मुताबिक खेती योग्य भूमि, वनों घास के मैदानों, पर्वतों, शहरी इलाक़ों, ताज़े पानी के क्षेत्र और महासागरों पर सबसे अधिक ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है.

यूएन एजेंसियों ने ज़ोर देकर कहा कि दो अरब हैक्टेयर क्षरित भूमि पर विश्व के सबसे निर्धन और हाशिएकरण का शिकार लोग रहते हैं.

रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि भूमि की पुनर्बहाली के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये, वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 200 अरब डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी.