महिलाओं को अहम फ़ैसलों से दूर रखा जाना सहन नहीं - यूएन महिला संस्था

महिला सशक्तिकरण के लिये यूएन संस्था – यूएन वीमैन (UN Women) की प्रमुख फ़ूमज़िले म्लाम्बो-न्गुका ने कहा है कि महिलाओं की ज़िन्दगी पर असर डालने वाले निर्णयों से उन्हें दूर रखा जाना ग़लत है और इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिये. उन्होंने, अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर, सोमवार को आयोजित एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए यह बात कही है.
इस कार्यक्रम का उद्देश्य, कोविड-19 संकट के बाद न्यायोचित पुनर्बहाली और समानतापूर्ण भविष्य के निर्माण में महिलाओं व लड़कियों के प्रयासों को रेखांकित करना और उनकी भूमिका पर चर्च करना था.
The future is better with women at the table.Women leaders have been underrepresented, undervalued and undermined for far too long.This #InternationalWomensDay, claim your space: https://t.co/WTwMwJlWQ2#GenerationEquality #IWD2021 pic.twitter.com/ZGsckFMRWr
UN_Women
यूएन संस्था की कार्यकारी निदेशक फ़ूमज़िले म्लाम्बो-न्गुका ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा, “हम उस महामारी से उबरने पर सोच-विचार करते हुए एक चौराहे पर खड़े हैं, जिसका महिलाओं व लड़कियों पर विषमतापूर्ण असर हुआ है.”
“इसलिये, 2021 में इस पड़ाव पर, जब हम चौराहे पर हैं, हमें इसका अन्त करना है.”
महिलाओं पर कोविड-19 महामारी का सबसे ज़्यादा नकारात्मक प्रभाव हुआ है.
यूएन की वरिष्ठ अधिकारी ने इस पृष्ठभूमि में,आगाह किया कि कोविड-19 से पुनर्बहाली के प्रयासों की अगुवाई के लिये महिलाएँ नदारद हैं.
उन्होंने क्षोभ जताते हुए कहा कि अहम संस्थाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है.
म्लाम्बो-न्गुका ने याद दिलाया कि जब तक महिलाओं के जीवन पर असर डालने वाले निर्णयों में उनकी भागीदारी नहीं होगी, तब तक पुनर्निर्माण प्रक्रिया पर्याप्त और समावेशी नहीं होगी.
'यूएन वीमैन' प्रमुख ने, महिलाओं के हालात पर आयोग के आगामी सत्र की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए बताया कि यह महिला नेत्रियों के लिये सभी निर्णय-निर्धारण संस्थाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की आवाज़ देने की ज़िम्मेदारी और अवसर है.
यूएन की वरिष्ठ अधिकारी ने ने कहा कि यह एक ऐसा अवसर है, जिसे खोया नहीं जा सकता.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि कोविड-19 संकट से अपने देशों व समुदायों को उबारने में महिलाएँ आगे बढ़कर योगदान कर रही हैं. “महिला नेताओं वाले देशों में बेहद कम संख्या में मौतें हुई हैं और वे पुनर्बहाली के रास्ते पर हैं.”
यूएन प्रमुख ने बताया कि सेवाएँ और सूचनाएँ सुलभ बनाने में महिला संगठनों और सार्वजनिक स्वास्थ्य सन्देश, लोगों तक पहुँचाने में महिला शान्ति-निर्माताओं ने अहम भूमिका निभाई है.
“अग्रिम मोर्चे पर डटे स्वास्थ्य व देखभालकर्मियों में 70 प्रतिशत महिलाएँ हैं. इनमें अनेक नस्लीय व जातीय रूप से हाशियेकरण के शिकार समूहों से हैं जोकि निचले आर्थिक पायदान से हैं.”
महामारी के दौरान उनके महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद, महिलाधिकारों के क्षेत्र में हुई प्रगति की दिशा पलटी है, जिससे शान्ति व समृद्धि के प्रयासों को झटका पहुँचा है.
“हमें, टिकाऊ विकास लक्ष्य हासिल करने के लिये, इस कार्रवाई के दशक में, हालात को बदलना होगा.”
“अनेक बार ऐसा होता है कि सेवाएँ प्रदान करने वाली तो महिलाएँ होती हैं, लेकिन निर्णय पुरुष लेते हैं.”
केवल 22 देशों में राष्ट्र प्रमुख महिलाएँ हैं, महिला मन्त्रियों का आँकड़ा 21 फ़ीसदी है, और महिला सांसदों की संख्या, प्रतिनिधियों की कुल संख्या की एक चौथाई से भी कम है.
यूएन महासचिव ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि लैंगिक समानता, असल में ताक़त से जुड़ा सवाल है और पुरुषों के दबदबे वाली दुनिया में, समानता अपने आप नहीं आएगी.
उन्होंने, इस क्रम में सामाजिक मानदण्डों को बदलने, महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने वाले क़ानून व नीतियाँ तैयार करने, उच्च पदों पर महिलाओं को नियुक्त किये जाने, महिलाओं के ख़िलाफ़ ऑनलाइन व ऑफ़लाइन हिंसा पर रोक लगाने और महिला नेताओं को हरसम्भव सहायता मुहैया कराने पर ज़ोर दिया है.
संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष वोल्कान बोज़किर ने कहा कि वो लैंगिक समानता को साकार करने के लिये प्रयासरत हैं.
उनका प्रयास लैंगिक समानता के मुद्दे पर चर्चा को बढ़ावा देना है, और इस सिलसिले में, द्विपक्षीय मुलाक़ातों, और उच्चस्तरीय आयोजनों के माध्यम से महिलाओं की आकाँक्षाओं को आवाज़ देने की कोशिश की जा रही है.
महासभा प्रमुख ने उम्मीद जताई कि इससे युवा महिलाओं व लड़कियो को प्रेरणा मिलेगी और वे पारम्परिक रूप से पुरुषों के दबदबे वाले क्षेत्रों में भी, और ज़्यादा भागीदारी कर सकेंगी.