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ईरान: बलोच क़ैदी को मृत्यु दण्ड दिये जाने की निन्दा

मुल्तान की यूनिवर्सिटी में लेक्चरर जुनैद हफ़ीज़ को मार्च 2013 को गिरफ़्तार किया गया था.
©UNICEF/Josh Estey
मुल्तान की यूनिवर्सिटी में लेक्चरर जुनैद हफ़ीज़ को मार्च 2013 को गिरफ़्तार किया गया था.

ईरान: बलोच क़ैदी को मृत्यु दण्ड दिये जाने की निन्दा

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ईरान में बलोच अल्पसंख्यक समुदाय के एक क़ैदी को फाँसी पर लटकाए जाने की निन्दा की है, उन्होंने ये भी भय व्यक्त किया है कि हाल के समय में, बलोच समुदाय के सदस्यों को मृत्यु दण्ड दिये जाने के मामलों में हुई बढ़ोत्तरी, आगे भी जारी रह सकती है.

स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि वो ये देखकर व्यथित और दुखी हैं कि ईरान सरकार से, इस फाँसी को रोक दिये जाने की उनकी अपील के बावजूद, जावेद देहग़ान को, 30 जनवरी को फाँसी दे दी गई.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय और सिविल सोसायटी ने भी इस फाँसी को रोकने का आग्रह किया था.

इन विशेषज्ञों ने कहा है, “हमने ईरान सरकार को सूचित किया था कि जावेद देहग़ान को मौत की सज़ा, उन्हें निष्पक्ष मुक़दमे के अभाव व क़ानूनी प्रक्रिया के उल्लंघन के बाद सुनाई गई थी."

"इनमें जावेद के ये दावे भी शामिल थे कि उन्हें प्रताड़ित किया गया, बहुत लम्बे समय तक एकान्तवास में बन्द रखा गया, जबरन लापता रखा गया और उनसे जबरन इक़बालिया बयान दिलवाया गया. इन तमाम चिन्ताओं की, ईरानी अधिकारियों ने सटीक जाँच-पड़ताल नहीं कराई.” 

मानवाधिकर विशेषज्ञों द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, जावेद देहग़ान को, एक सशस्त्र गुट के साथ सम्बन्ध होने और एक ऐसे हमले में शामिल होने के आरोपों में, जुलाई 2015 में गिरफ़्तार किया गया था, जिसमें इस्लामी रिवॉल्यूशनरी गार्ड कोर के दो अधिकारियों की मौत हुई थी.

मई, 2017 में, एक विशेष रिवॉल्यूशनरी अदालत ने, जावेद देहग़ान को मृत्यु दण्ड का फ़ैसला सुनाया था, जबकि जावेद ने अदालत को ये भी बताया था कि उन्हें प्रताड़ित किया गया है, और उनसे अपराध का इक़बालिया बयान जबरन हासिल किया गया. 

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि 25 जनवरी को उनकी अपील भी नामंज़ूर कर दी गई थी, उनके वकील को बताया गया कि ईरानी सर्वोच्च न्यायालय ने, न्यायिक समीक्षा की उनकी अन्य अर्ज़ी भी ख़ारिज कर दी.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, “इस मामले में, एक निष्पक्ष मुक़दमे और न्यायसंगत क़ानूनी प्रक्रिया के उल्लंघन के सम्बन्ध में उठाई गई चिन्ताओं में, अपील का एक प्रभावशाली अधिकार नहीं मुहैया कराना और प्रताड़ना के बल पर इक़बालिया बयान हासिल किया जाना शामिल हैं. इसका मतलब ये निकलता है कि ईरान सरकार द्वारा, जावेद देहग़ान को मृत्यु दण्ड दिया जाना, मनमाने दण्ड की श्रेणी में आता है.”

हाल के समय में मृत्यु दण्ड

संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने चिन्ता व्यक्त करते हुए ये भी कहा है कि जावेद देहग़ान को फाँसी की सज़ा दिया जाना, ईरान में बलोच अल्पसंख्यक समुदाय के अन्य अनेक क़ैदियों को भी हाल के समय में, मौत की सज़ा दिये जाने के मामलों में शामिल है. 

मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि प्राप्त जानकारी के अनुसार, मध्य दिसम्बर 2020 से लेकर, ज़ाहेदान, मशहाद और इसफ़ाहान में, कम से कम 21 बलोच क़ैदियों को फाँसी की सज़ा दी गई है.

इनमें से अधिकतर को, ड्रग्स और राष्ट्रीय सुरक्षा सम्बन्धी आरोपों में, त्रुटिपूर्ण क़ानूनी प्रक्रिया के बाद, दोषी ठहराया गया.

केवल ज़ाहेदान जेल में ही, 124 क़ैदी ऐसे हैं जिन्हें मौत की सज़ा सुनाई जा चुकी है और वो मृत्यु दण्ड की क़तार में हैं. उन पर ऐसे अपराधों के भी आरोप हैं जिनमें इरादतन हत्या किया जाना शामिल नहीं है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, “बलोच अल्पसंख्यक समुदाय के क़ैदियों को इस तरह मौत की सज़ा की क़तार में रखे जाने और समुदाय के सदस्यों को जबरन लापता किये जाने के चलन पर, वो बहुत व्यथित हैं.”

विशेषज्ञों ने, देश में, अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों पर भी मृत्यु दण्ड की लटकती तलवार, और कुछ को, पहले ही फाँसी पर लटकाए जाने पर भी गहरी चिन्ता व्यक्त की है.

उन्होंने कहा है, “हम इस्लामी गणराज्य-ईरान का आहवान करते हैं कि वो इन फाँसी की सज़ाओं के अमल पर तुरन्त रोक लगा दे, और इस तरह की जो सज़ाएँ, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के प्रावधानों के विपरीत या उनका उल्लंघन करके सुनाई गई हैं, उन्हें पलट दिया जाए.”

“हम सरकार से ये भी आग्रह करते हैं कि मृत्यु दण्ड को पूरी तरह रोकने की दिशा में पहले क़दम के रूप में, इस पर तत्काल स्वैच्छिक रोक लगाई जाए.”

इन मामलों में ये चिन्ताजनक आवाज़ उठाने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों में शामिल हैं:
•    ईरान में मानवाधिकार स्थिति पर विशेष रैपोर्टेयर.
•    न्यायेतर, मनमाने और त्वरित मृत्यु दण्ड पर विशेष रैपोर्टेयर.
•    प्रताड़ना और अन्य क्रूर, अमानवीय व अमानवीय बर्ताव और दण्ड पर विशेष रैपोर्येटर.
•    अल्पसंख्यक मुद्दों पर विशेष रैपोर्टेयर.
•    जबरन और मर्ज़ी के ख़िलाफ़ लापता किये जाने के मामलों पर कार्यकारी दल के सदस्य.

विशेष रैपोर्टेयर और कार्यकारी दल, यूएन मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेषज्ञ स्वैच्छिक रूप में काम करते हैं, वो संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है. वो किसी सरकार या संगठन से स्वतन्त्र होते हैं और अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.